शिमला: आज हिमाचल की सियासत के 'राजा साहब' की जयंती (virbhadra singh birth anniversary) है. पांच दशक से भी अधिक समय से हिमाचल की राजनीति की धुरी रहे वीरभद्र सिंह की अब सिर्फ स्मृतियां ही शेष (memories of virbhadra singh) हैं. पिछले साल जुलाई महीने में वीरभद्र सिंह का देहावसान हो गया था. सियासत में जिस तरह के गुण एक सफल राजनेता में होने चाहिए, वो सभी वीरभद्र सिंह में समाहित थे. आम जनता के साथ उनका व्यवहार रूह को स्पर्श करता था. विकास को लेकर उनका विजन क्लियर था. प्रदेश के कोने-कोने में उन्होंने यात्रा की थी. अफसरशाही से काम लेने की कला में वे माहिर थे. सियासी विरोधियों को पस्त करने में वे साम-दाम-दंड-भेद का प्रयोग करने की कला जानते थे. कब किसे पुचकारना है और कब किसे फटकारना है, इसे वीरभद्र सिंह बेहतर जानते थे. कई बार वे पार्टी लाइन से हटकर भी अपनी बात कहते थे. वीरभद्र सिंह राम मंदिर निर्माण के प्रबल पक्षधर थे. यही कारण है कि उनके देहावसान पर विश्व हिंदू परिषद ने भी बाकायदा अपने लेटर हैड पर शोक संदेश जारी किया था.
बिना वीरभद्र के हिमाचल का चुनाव- दशकों बाद ये पहला अवसर है, जब विधानसभा चुनाव के रण में वीरभद्र सिंह देह रूप में मौजूद नहीं होंगे. कांग्रेस को उनका मार्गदर्शन नहीं मिलेगा, इससे पहले चुनावी रण में कांग्रेस के लिए वीरभद्र सिंह ही व्यूह रचना करते थे. टिकट वितरण से लेकर प्रचार तक हर मोर्चे पर वीरभद्र सिंह खड़े दिखते थे. वीरभद्र सिंह के रहते कांग्रेस हाईकमान को सीएम पद के लिए कोई चिंता नहीं थी. वीरभद्र सिंह वो वट वृक्ष थे, जिसके नीचे भविष्य का कोई नेता नहीं पनप पाया. इसके कुछ लाभ भी थे और कुछ सियासी नुकसान भी, लेकिन वीरभद्र सिंह की मौजूदगी में उनको चुनौती देने का हिम्मत किसी में नहीं थी. यदा-कदा प्रयास भी हुए, लेकिन विफल रहे.
वीरभद्र सिंह के बिना हिमाचल कांग्रेस- साल 2012 के चुनाव में वीरभद्र सिंह ने गिरती सेहत के बावजूद पूरे प्रदेश में दौरा कर कांग्रेस की सत्ता में वापसी करवाई थी. पांच साल तक मुख्यमंत्री का पद संभाला और फिर 2017 के चुनाव में भी वे सीएम फेस थे. कांग्रेस 2017 का चुनाव हार गई, लेकिन वीरभद्र सिंह ने न केवल अपनी सीट जीती, बल्कि उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह भी पहली बार विधायक बने. अब वीरभद्र सिंह के बिना कांग्रेस में उथल-पुथल है. नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू के बीच हालिया कशमकश सभी ने देखी. सिरमौर कांग्रेस में गुटबाजी भी चरम पर पहुंची. वीरभद्र सिंह के रहते ऐसा नहीं होता था, वे पक्ष और विपक्ष यानी किसी भी गुट के नेता को हैंडल करने की कला जानते थे. वीरभद्र सिंह का राजनीति में कद ही उनके अजेय होने का कारण था. वीरभद्र सिंह की जयंती को कांग्रेस विकास के रूप में मना रही है.
कांग्रेस को अब भी वीरभद्र सिंह का सहारा- कांग्रेस और वीरभद्र सिंह हिमाचल में कांग्रेस की राजनीति के पर्याय रहे हैं. उनके नाम का ही असर है कि प्रतिभा सिंह को प्रदेश कांग्रेस का मुखिया बनाने के समय जो लेटर जारी हुआ, उसमें उनका नाम प्रतिभा वीरभद्र सिंह लिखा था. उसके बाद एक रैली में मुकेश अग्निहोत्री ने भी प्रतिभा सिंह को प्रतिभा वीरभद्र सिंह के नाम से संबोधित किया. खुद प्रतिभा सिंह ने कहा कि उन्हें सोच-समझकर हाईकमान ने पार्टी की कमान सौंपी है. सोनिया गांधी ने एक सर्वे करवाया था, जिसमें ये रिपोर्ट सामने आई कि अभी भी प्रदेश में वीरभद्र सिंह के नाम का जलवा बरकरार है. खुद प्रतिभा सिंह हर मंच से ये कहती हैं कि हिमाचल के विकास में वीरभद्र सिंह के योगदान को सभी जानते हैं. विक्रमादित्य सिंह भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चलने का संकल्प दोहराते हैं.
चुनाव में वीरभद्र का इमोशन- ये सभी जानते हैं कि हिमाचल में वीरभद्र सिंह का नाम सत्ता दिलाने की सीढ़ी है. यही कारण है कि चुनाव प्रचार में वीरभद्र सिंह के नाम का भावनात्मक कार्ड खेला जाएगा. राजनीतिक विश्लेषक संजीव कुमार शर्मा का कहना है कि वीरभद्र सिंह के कद से सभी वाकिफ हैं. सियासत में जिस तरह का व्यक्तित्व चाहिए, वीरभद्र सिंह में वो सभी गुण थे. यही कारण है कि कांग्रेस चुनावी साल में वीरभद्र सिंह के नाम को अपने पक्ष में बड़ा हथियार मान रही है. हिमाचल में जिस तरह के जननेता की जरूरत है, वीरभद्र सिंह के बाद कांग्रेस में उसकी कमी दिखती है. जननेता बनने के लिए एक लंबा सफर तय करना होता है और राजनीति संघर्ष मांगती है. वीरभद्र सिंह ने संघर्ष से सियासी मुकाम बनाया था.
जब जयराम ठाकुर ने किया था वीरभद्र सिंह को याद- वीरभद्र सिंह के निधन के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी उनसे जुड़ी यादों को सांझा किया था. उन्होंने कहा था कि वीरभद्र सिंह ने प्रदेश ही नहीं देश की राजनीति में भी अपना अलग ही स्थान बनाया था. लंबे अरसे तक सत्ता में रहने के बावजूद वो हमेशा जमीन से जुड़े रहे. जयराम ठाकुर के अनुसार राजनीति में कब क्या कहना है और कैसे कहना है, ये वीरभद्र सिंह से सीखना चाहिए. वैचारिक दृष्टि से अलग लोगों को भी अपने साथ जोड़ने की कला वीरभद्र सिंह के पास थी.
जयराम ठाकुर की यादों में वीरभद्र सिंह- मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सदन में शोक उद्गार के समय वीरभद्र सिंह (Jairam thakur on virbhadra singh) से अपने व्यक्तिगत संबंधों की बात की. जयराम ठाकुर ने तब कहा था कि वे प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार में ग्रामीण विकास व पंचायती राज मंत्री थे. अगले चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई और वीरभद्र सिंह सीएम बने. जयराम ठाकुर तब सिराज से विधायक थे और उनके निर्वाचन क्षेत्र के जंजैहली में ब्लाक के एक भवन का उद्घाटन होना था. जयराम ठाकुर ने कहा कि वो स्थानीय विधायक होने के नाते सीएम का स्वागत करने के लिए पहुंचे थे. गाड़ी के पास पहुंचकर वीरभद्र सिंह का अभिवादन किया तो वे बोले, तुम स्थानीय विधायक हो, हमारे साथ मंच पर रहोगे और संबोधन करोगे. जयराम ठाकुर बोले, मुझे तो बताया गया कि ये सरकारी नहीं कांग्रेस का कार्यक्रम है. इस पर वीरभद्र सिंह ने गाड़ी में बैठे स्थानीय नेताओं से पूछा, क्यों भाई ये क्या सुन रहा हूं? फिर वीरभद्र सिंह ने जयराम ठाकुर को हाथ पकडक़र गाड़ी में बिठा लिया और कहा कि ये सरकारी कार्यक्रम है और तुम भी मंच से बोलोगे.
जयराम ठाकुर ने इसी तरह शैटाधार में एक कार्यक्रम का जिक्र भी किया और वहां भी संबोधन का मौका दिया. इस तरह वीरभद्र सिंह राजनीतिक रूप से विरोधी विचार के नेताओं का भी मान रखते थे. यही नहीं, शैटाधार में तो उन्होंने जयराम ठाकुर की तारीफ भी कर डाली. वीरभद्र सिंह कहा करते थे कि लडऩे की सीमा होती है, कोई वजह होती है. राजनीति में जनसेवा ही मकसद होना चाहिए. जयराम ठाकुर के अनुसार हिमाचल के विकास में वीरभद्र सिंह का अहम योगदान रहा है. वीरभद्र सिंह जीवट वाले थे. वीरभद्र सिंह ने प्रेरणा से भरा लंबा जीवन जिया है. उनकी कमी हमेशा महसूस होगी. ये शब्द प्रदेश के मौजूदा मुखिया के राज्य के पूर्व मुखिया के प्रति थे. इससे स्पष्ट होता है कि वीरभद्र सिंह ने समान रूप से सभी का आदर हासिल किया.