शिमला: हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ(Himachal Government Teachers Association) ने सरकार पर शिक्षकों की मांगों को अनदेखा करने का आरोप लगाया है. संघ का कहना है कि प्रदेश सरकार अपने आप को कर्मचारी हितैषी होने का दावा तो करती, लेकिन व्यवहारिकता में सरकार के 4 साल का कार्यकाल पूरा होने को जा रहा और अभी तक सरकार ने शिक्षकों एवं कर्मचारियों के किसी भी मुद्दे को हल नहीं किया. संघ ने सरकार पर शिक्षकों के साथ भेदभाव का आरोप भी लगाया.
संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि हिमाचल में 90 हजार के आसपास शिक्षक कार्यरत, लेकिन सरकार ने उनकी मांगों को सुनने के लिए जीसीसी जैसा कोई भी उचित प्लेटफार्म नहीं बनाया. शिक्षकों एवं शिक्षार्थी हित में मांगों पर चर्चा उपरांत उसका निराकरण किया जा सके. उन्होंने कहा कि जेसीसी की बैठक का प्रारूप अपने आप में एक बेईमानी, क्योंकि इसमें शिक्षकों का बड़ा वर्ग समायोजित नहीं किया गया.
एनजीओ को मान्यता के स्थान पर लोकतांत्रिक तरीके से सभी शिक्षकों एवं कर्मचारियों को चुनाव के माध्यम से जेसीसी के गठन करने की संघ लंबे समय से मांग कर रहा है. चौहान ने कहा कि सरकार कुछ एक चाटुकार शिक्षक व कर्मचारी नेताओं को खुश करने में लगी और कर्मचारियों एवं शिक्षकों के मुद्दों के ऊपर मौन है.
उन्होंने कहा कि प्रदेश का छठा वेतन आयोग जो 1.1. 2016 से देय है. 5 साल बीत जाने पर भी सरकार द्वारा अभी तक इस संदर्भ में कोई कदम नहीं उठाया गया है. संघ ने सरकार से बार-बार आग्रह किया है कि वित्त नियमों पर भी हिमाचल को केंद्रीय वित्त आयोग का अनुसरण करना चाहिए अब तो पंजाब सरकार ने भी छठा वेतन आयोग लागू कर दिया. हिमाचल में इसे लागू करने की आवश्यकता है. संघ सरकार से मांग करता है कि प्रदेश के कर्मचारियों एवं शिक्षकों के भत्ते का भुगतान केंद्रीय कर्मचारियों की तर्ज पर किया जाए.
प्रदेश के कर्मचारियों के लंबित 5 प्रतिशत डीए का भुगतान तत्काल प्रभाव से बहाल किया जाए, क्योंकि केंद्र सरकार बहुत पहले इसे जारी कर चुकी. पंजाब ने भी एक मुश्त 11 प्रतिशत डीए की किस्त जारी कर दी. उन्होंने विभाग में खाली पड़े पदों को भरने की मांग सरकार से की.
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