शिमला : हिमाचल की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर (Himachal dependent on agriculture)है, लेकिन निरंतर बंजर होती भूमि से किसानों को बड़ी परेशानी झेलनी पड़ रही है. केवल लेंटाना से ही 235491 हेक्टेयर वन व निजी भूमि बंजर हो चुकी. इसके अलावा जंगलों में आग फैलने का भी एक बड़ा कारण है. लेंटाना सूखने के बाद जल्दी आग पकड़ लेती है. जिसके कारण भी बड़ी संख्या में वन संपदा आग की भेंट चढ़ (Damage from Lentana in Himachal)रही है. हिमाचल प्रदेश देश का अकेला ऐसा राज्य, जिसकी 2011 की जनगणना के अनुसार 89.96 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में रहती हैं. इसलिए कृषि से राज्य के कुल कामगारों में से लगभग 70 प्रतिशत को रोजगार उपलब्ध होता है.
लेंटाना की चपेट में वन भूमि की बड़ी तेजी से बंजर हो (Himachal land barren from Lentana)रही है. वन विभाग के मुखिया अजय श्रीवास्तव का कहना है कि हिमाचल में लेंटाना की समस्या काफी गंभीर और लंबे समय से चली आ रही है. इसके लिए प्रदेश सरकार और विभाग लंबे समय से कार्य कर रहा है. वर्तमान में कैंपा और अन्य एक्सटर्नल एडिड प्रोजेक्ट की सहायता से भूमि से लेंटाना को उठाने का कार्य चल रहा है. यह समस्या लोअर हिमाचल के क्षेत्रों में अधिक है. उन्होंने कहा कि इससे निपटने के प्रयास लंबे समय से हो पा रहे हैं. इसमें सरकार के अलावा अन्य स्वयं सेवी संस्थाओं और लोगों को भी आगे आना होगा. अगर सरकारी प्रयास की बात करें पिछली कांग्रेस सरकार के समय जमीन से लेंटाना हटाने के लिए 82.52 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं.
तत्कालीन वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी ने दावा किया था कि अभी करीब 20 से 25 वर्ष का और समय लगेगा ,जिससे लेंटाना को प्रदेश से पूरी तरह खत्म किया जा सके. इसके बाद वर्तमान सरकार ने लेंटाना को लेकर कोई विशेष धन का प्रावधान तो नहीं किया, लेकिन कई प्रोजेक्टों के माध्यम से भूमि से लेंटाना को हटाया जा रहा.
दरअसल लेंटाना ऐसी कंटीली झाड़ी है. जो कुछ दशक पहले अमेरिका से भारत (Lantana reached India from America)पहुंची यह लाल और पीले फूलों वाला कंटीली झाडिय़ों का झुंड होता है. पौधे के रूप में शुरू होने के बाद इसकी टहनियां तेजी से विकसित होकर आसपास के पेड़-पौधों को अपनी चपेट में ले लेती है. लेंटाना से छोटे पौधे और घास प्रभावित होती हैं. जहां भी लेंटाना उगता है वहां न तो घास उग पाती और न ही छोटे पौधे हैं. प्रदेश में 53203 हेक्टेयर भूमि पर लेंटाना का प्रभाव 25 प्रतिशत या इससे कम है. 682244 हेक्टेयर भूमि पर 50 प्रतिशत तक लेंटाना से प्रभावित है. 73778 प्रतिशत भूमि लेंटाना के कारण 75 तक बंजर हो चुकी है. 40285 हेक्टेयर भूमि लेंटाना के कारण पूरी तरह से बंजर हो चुकी है.
लेंटाना को कांग्रेस घास भी कहते हैं पारंपरिक तौर पर इसे खत्म करने के लिए कट रूट सिस्टम तकनीक को अपनाया जा रहा है. इसका अर्थ हुआ कि इसकी जड़ को भूमि के भीतर से उखाड़ दिया जाए और करीब पांच से सात इंच की गहराई से काटने के बाद मिट्टी से ढका जाता है. इसकी कोई भी टहनी जमीन से ऊपर न रहे और टहनियों को काटकर नष्ट कर दिया जाता है. इसकी टहनियां अगर खुले में जमीन पर पड़ी रहें तो भी पौधे का रूप धारण कर लेती हैं. लेंटाना दोबारा पैदा न हो इसके लिए आईआईटी मंडी ने इसके लिए अपरूटर उपकरण (IIT Mandi made equipment)बनाया है. अब इस उपकरण की मदद से लेंटाना के पौधे को उखाड़ा जाता है. प्रदेश के किसान उपजाऊ भूमि पर लेंटाना यानी कांग्रेस घास के उगने के कारण परेशान हैं. सरकार के पास निजी भूमि पर लेंटाना घास से संबंधित आंकड़ा नहीं है. लेंटाना 4,500 फीट से नीचे फैलता है. हालांकि बर्फ वाले क्षेत्रों में यह नहीं फैलता.
इसके अलावा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने लेंटाना के इको फ्रेंडली उपयोग के लिए आईआईटी मंडी को करीब 25 लाख का प्रोजेक्ट सौंपा है. आईआईटी मंडी ने ही चीड़ की पत्तियों से ईंधन तैयार करने की तकनीक विकसित की थी. अब लेंटाना के भी चीड़ की पत्तियों की तरह पाउडर बनाकर ब्रिकेट्स तैयार किए जा सकेंगे. जिससे 5761 कैलोरी तक ऊर्जा प्राप्त की जा सकती, लेकिन वन विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि लेंटाना के ब्रिकेट्स बनाने के लिए निजी क्षेत्र की भूमिका काफी अहम है. हिमाचल प्रदेश में छोटे किसान हैं और बहुत कम किसान 20 से 25 लाख रुपए का निवेश कर लेंटाना ब्रिकेट्स बनाने पर सहमत होगा. हालांकि वन विभाग भी इसमें सहयोग कर रहा है. यह योजना भी फिलहाल सिरे चढ़ती नजर नहीं आ रही है.
ये भी पढ़ें : Weather update of himachal: ठंड से नहीं मिलने वाली राहत, हिमाचल में बारिश और बर्फबारी के आसार