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नए-नवेली सियासी पार्टी को कम आंकना पड़ सकता है भारी, सुखराम की हिविंका ने कांग्रेस को सिखाया था सबक

हिमाचल में नए-नवेली सियासी दल को कम आंकना बड़े दलों को भारी पड़ सकता है. हिमाचल सीएम जयराम ठाकुर ने तो यहां तक कह दिया कि हिमाचल की राजनीति में अब तक नए दल के गठन का प्रयास खास सफल नहीं रहा है. इन परिस्थितियों में यह नहीं भूलना चाहिए कि 1998 में दिग्गज नेता पंडित सुखराम ने नई पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन किया और कांग्रेस के हाथ से सत्ता छिन गई थी.

jairam thakur on third party
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Published : Oct 26, 2020, 9:59 PM IST

शिमलाः छोटा पहाड़ी राज्य हिमाचल में विधानसभा की 68 सीटें हैं और ऐसे में यहां नए- नवेली सियासी दल को कम आंकना बड़े दलों को भारी पड़ सकता है. हाल ही में वरिष्ठ नेता डॉ. राजन सुशांत ने राजनीतिक दल का ऐलान किया है. साथ ही दावा किया है कि उनकी पार्टी सभी 68 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

इधर, हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सहित भाजपा के नेता राजन सुशांत की नई पार्टी को हल्के में ले रहे हैं. सीएम जयराम ठाकुर ने तो यहां तक कह दिया कि हिमाचल की राजनीति में अब तक नए दल के गठन का प्रयास खास सफल नहीं रहा है.

वीडियो.

इन परिस्थितियों में यह नहीं भूलना चाहिए कि 1998 में दिग्गज नेता पंडित सुखराम ने नई पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन किया और कांग्रेस के हाथ से सत्ता छिन गई थी. हिमाचल में तब भाजपा के साथ मिलकर हिमाचल विकास कांग्रेस ने सरकार बनाई थी और हिविंका के 5 एमएलए थे. अलबत्ता यह सही है कि इसके अलावा जितने भी प्रयोग हुए वह से प्रभाव नहीं जमा पाए.

उदाहरण के तौर पर महेश्वर सिंह की पार्टी, हिमाचल लोकहित पार्टी यानी हिलोपा से केवल महेश्वर ही चुनाव जीते थे. इसी तरह महेंद्र सिंह ने हिम लोकतांत्रिक मोर्चा का गठन किया था. तब भी केवल महेंद्र सिंह जी चुनाव जीते थे. बसपा से चौधरी संजय कुमार अकेले जीते थे.

अब राजन सुशांत ने नई पार्टी बनाई है. राजन सुशांत भाजपा से सांसद रहे हैं और साथ ही पूर्व में हिमाचल सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं. जाहिर है उनका बेस भी भाजपा है. सुशांत का प्रभाव कांगड़ा जिला में अधिक माना जाता है. उन्हें सभी सीटों पर मजबूत प्रत्याशी भी चुनने हैं और संगठन को भी सक्रिय करना है.

मौजूदा परिस्थितियों में बेशक यह काम कठिन लगे, लेकिन किसी भी नए दल को कम आंकना सत्ताधारी दल भाजपा को महंगा भी पड़ सकता है. राजनीति में दखल रखने वाले कहते हैं कि सुखराम के पास मंडी फैक्टर था और वे लंबे समय से हिमाचल की राजनीति में सक्रिय थे. उनके पास संसाधन भी थे और चुनाव जीतने वाले कैंडिडेट भी. यही कारण है कि हिमाचल विकास कांग्रेस गेमचेंजर साबित हुई, लेकिन राजन सुशांत को जीरो से शुरुआत करनी है.

अगर हिमाचल की बात की जाए तो यहां मुख्य रूप से दो ही राजनीतिक दल प्रभावी हैं. यहां बारी-बारी से सत्ता भाजपा और कांग्रेस के हाथ रही है, लेकिन 1998 में पंडित सुखराम ने कांग्रेस से नाराज होकर नया दल बनाया और सत्ता की चाबी कांग्रेस के हाथ से छिन गई. सुखराम की पार्टी ने भाजपा को समर्थन दिया और प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा हिविंक सरकार बनी.

ज्वालामुखी से निर्दलीय के तौर पर चुनाव जीतकर आए रमेश धवाला का सत्ता में अहम रोल रहा था. हिमाचल में नए दल के गठन के छिटपुट प्रयास होते रहे, लेकिन सफलता हिमाचल विकास कांग्रेस को ही मिली. हिमाचल में लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, बसपा शिवसेना, टीएमसी आदि ने भी प्रयास किए, लेकिन यह सिरे नहीं चढ़ा.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की हिमाचल में कमान पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और भाजपा के कद्दावर नेता डॉ. राधा रमण शास्त्री ने संभाली थी. बसपा को मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने सक्रिय किया था. बसपा का एकमात्र उम्मीदवार कांगड़ा से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. अन्यथा बाकी दलों की हालत यह है कि इन्हें प्रदेश में क्षेत्रीय दल का दर्जा भी नहीं मिला है. हिमाचल लोकहित पार्टी बनाकर महेश्वर सिंह ने प्रदेश में सियासी हलचल मचाई थी, लेकिन वह भी खुद के अलावा किसी अन्य को चुनाव नहीं जीता सके बाद में सभी अपने मूल दलों में लौट आए.

हिमाचल विकास कांग्रेस की बात करें तो 1998 के चुनाव से पूर्व सुखराम व वीरभद्र सिंह के रिश्ते तल्ख हो गए थे. सुखराम ने नई पार्टी बनाई और सत्ता कांग्रेस के हाथ से निकल गई. सुखराम की पार्टी चुनाव में 5 सीटें जीतने में कामयाब हुई. चुनाव जीतने वाले पांच नेताओं में से 3 पंडित सुखराम, महेंद्र सिंह ठाकुर व मंसाराम पहले से ही स्थापित नेता थे.

अलबत्ता प्रकाश चौधरी व डॉ. रामलाल मारकंडे पहली मर्तबा चुनाव लड़े व जीत गए. वर्तमान में प्रकाश चौधरी और मनसाराम कांग्रेस में हैं. महेंद्र सिंह ठाकुर व डॉ. मारकंडा भाजपा सरकार में मंत्री हैं. मौजूदा समय में हिमाचल में राजनीतिक परिदृश्य बदल चुका है. दिग्गज नेताओं का राजनीतिक जीवन ढलान पर जा चुका है.

वीरभद्र सिंह और प्रेम कुमार धूमल की सियासी पारी अब आगे नहीं बढ़ेगी. भाजपा में जयराम ठाकुर का दौर है. ऐसे में राजनीतिक समीकरण बदल चुके हैं. राजन सुशांत के पास ना तो पंडित सुखराम जैसा कद है और ना ही प्रभाव. सुखराम ने केंद्रीय मंत्री रहते हुए कई कार्य किए थे. जिनका लाभ उनके दल हिविका को मिला था. अब देखना है कि किसी समय के भाजपा सांसद और हिमाचल सरकार के कैबिनेट मंत्री राजन सुशांत 2 साल में अपने नए दल के साथ कितने लोगों को जोड़ते हैं और कितना सक्रिय हो पाते हैं.

ये भी पढे़ं- जो व्यक्ति मंत्री और सांसद रहते कुछ नहीं कर पाया वो थर्ड फ्रंट से क्या सेवा करेगा: बिक्रम सिंह

शिमलाः छोटा पहाड़ी राज्य हिमाचल में विधानसभा की 68 सीटें हैं और ऐसे में यहां नए- नवेली सियासी दल को कम आंकना बड़े दलों को भारी पड़ सकता है. हाल ही में वरिष्ठ नेता डॉ. राजन सुशांत ने राजनीतिक दल का ऐलान किया है. साथ ही दावा किया है कि उनकी पार्टी सभी 68 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

इधर, हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सहित भाजपा के नेता राजन सुशांत की नई पार्टी को हल्के में ले रहे हैं. सीएम जयराम ठाकुर ने तो यहां तक कह दिया कि हिमाचल की राजनीति में अब तक नए दल के गठन का प्रयास खास सफल नहीं रहा है.

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इन परिस्थितियों में यह नहीं भूलना चाहिए कि 1998 में दिग्गज नेता पंडित सुखराम ने नई पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन किया और कांग्रेस के हाथ से सत्ता छिन गई थी. हिमाचल में तब भाजपा के साथ मिलकर हिमाचल विकास कांग्रेस ने सरकार बनाई थी और हिविंका के 5 एमएलए थे. अलबत्ता यह सही है कि इसके अलावा जितने भी प्रयोग हुए वह से प्रभाव नहीं जमा पाए.

उदाहरण के तौर पर महेश्वर सिंह की पार्टी, हिमाचल लोकहित पार्टी यानी हिलोपा से केवल महेश्वर ही चुनाव जीते थे. इसी तरह महेंद्र सिंह ने हिम लोकतांत्रिक मोर्चा का गठन किया था. तब भी केवल महेंद्र सिंह जी चुनाव जीते थे. बसपा से चौधरी संजय कुमार अकेले जीते थे.

अब राजन सुशांत ने नई पार्टी बनाई है. राजन सुशांत भाजपा से सांसद रहे हैं और साथ ही पूर्व में हिमाचल सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं. जाहिर है उनका बेस भी भाजपा है. सुशांत का प्रभाव कांगड़ा जिला में अधिक माना जाता है. उन्हें सभी सीटों पर मजबूत प्रत्याशी भी चुनने हैं और संगठन को भी सक्रिय करना है.

मौजूदा परिस्थितियों में बेशक यह काम कठिन लगे, लेकिन किसी भी नए दल को कम आंकना सत्ताधारी दल भाजपा को महंगा भी पड़ सकता है. राजनीति में दखल रखने वाले कहते हैं कि सुखराम के पास मंडी फैक्टर था और वे लंबे समय से हिमाचल की राजनीति में सक्रिय थे. उनके पास संसाधन भी थे और चुनाव जीतने वाले कैंडिडेट भी. यही कारण है कि हिमाचल विकास कांग्रेस गेमचेंजर साबित हुई, लेकिन राजन सुशांत को जीरो से शुरुआत करनी है.

अगर हिमाचल की बात की जाए तो यहां मुख्य रूप से दो ही राजनीतिक दल प्रभावी हैं. यहां बारी-बारी से सत्ता भाजपा और कांग्रेस के हाथ रही है, लेकिन 1998 में पंडित सुखराम ने कांग्रेस से नाराज होकर नया दल बनाया और सत्ता की चाबी कांग्रेस के हाथ से छिन गई. सुखराम की पार्टी ने भाजपा को समर्थन दिया और प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा हिविंक सरकार बनी.

ज्वालामुखी से निर्दलीय के तौर पर चुनाव जीतकर आए रमेश धवाला का सत्ता में अहम रोल रहा था. हिमाचल में नए दल के गठन के छिटपुट प्रयास होते रहे, लेकिन सफलता हिमाचल विकास कांग्रेस को ही मिली. हिमाचल में लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, बसपा शिवसेना, टीएमसी आदि ने भी प्रयास किए, लेकिन यह सिरे नहीं चढ़ा.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की हिमाचल में कमान पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और भाजपा के कद्दावर नेता डॉ. राधा रमण शास्त्री ने संभाली थी. बसपा को मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने सक्रिय किया था. बसपा का एकमात्र उम्मीदवार कांगड़ा से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. अन्यथा बाकी दलों की हालत यह है कि इन्हें प्रदेश में क्षेत्रीय दल का दर्जा भी नहीं मिला है. हिमाचल लोकहित पार्टी बनाकर महेश्वर सिंह ने प्रदेश में सियासी हलचल मचाई थी, लेकिन वह भी खुद के अलावा किसी अन्य को चुनाव नहीं जीता सके बाद में सभी अपने मूल दलों में लौट आए.

हिमाचल विकास कांग्रेस की बात करें तो 1998 के चुनाव से पूर्व सुखराम व वीरभद्र सिंह के रिश्ते तल्ख हो गए थे. सुखराम ने नई पार्टी बनाई और सत्ता कांग्रेस के हाथ से निकल गई. सुखराम की पार्टी चुनाव में 5 सीटें जीतने में कामयाब हुई. चुनाव जीतने वाले पांच नेताओं में से 3 पंडित सुखराम, महेंद्र सिंह ठाकुर व मंसाराम पहले से ही स्थापित नेता थे.

अलबत्ता प्रकाश चौधरी व डॉ. रामलाल मारकंडे पहली मर्तबा चुनाव लड़े व जीत गए. वर्तमान में प्रकाश चौधरी और मनसाराम कांग्रेस में हैं. महेंद्र सिंह ठाकुर व डॉ. मारकंडा भाजपा सरकार में मंत्री हैं. मौजूदा समय में हिमाचल में राजनीतिक परिदृश्य बदल चुका है. दिग्गज नेताओं का राजनीतिक जीवन ढलान पर जा चुका है.

वीरभद्र सिंह और प्रेम कुमार धूमल की सियासी पारी अब आगे नहीं बढ़ेगी. भाजपा में जयराम ठाकुर का दौर है. ऐसे में राजनीतिक समीकरण बदल चुके हैं. राजन सुशांत के पास ना तो पंडित सुखराम जैसा कद है और ना ही प्रभाव. सुखराम ने केंद्रीय मंत्री रहते हुए कई कार्य किए थे. जिनका लाभ उनके दल हिविका को मिला था. अब देखना है कि किसी समय के भाजपा सांसद और हिमाचल सरकार के कैबिनेट मंत्री राजन सुशांत 2 साल में अपने नए दल के साथ कितने लोगों को जोड़ते हैं और कितना सक्रिय हो पाते हैं.

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