शिमला: हिमाचल के डॉक्टर्स की मेधा का कायल पूरा देश है. भारत के टॉप मोस्ट हेल्थ इंस्टीट्यूट्स की कमान हिमाचल के डॉक्टर्स के हाथ में है. इधर, चुनावी साल में देवभूमि के डॉक्टर्स को सियासत की सर्जरी करने का शौक हो रहा है. डॉक्टर्स यहां चिकित्सक नहीं बल्कि विधायक बनकर जनसेवा करने के लिए लालायित हैं. हाल ही में हिमाचल के जाने-माने चिकित्सक डॉ. ललित चंद्रकांत ने स्वैच्छिक सेवानिवृति का आवेदन (Dr Lalit Chandrakant Voluntary Retirement) किया है. बताया जा रहा है कि उन्होंने सियासत की नब्ज टटोलने की पूरी तैयारी (Doctors in Himachal Politics) कर ली है.
चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी- डॉ. ललित चंद्रकांत कैंसर अस्पताल शिमला में अस्सिटेंट प्रोफेसर हैं और दो विषयों में एमडी डिग्री हासिल कर चुके हैं. वे मंडी जिला की नाचन विधानसभा सीट से चुनाव लडने के इच्छुक हैं. डॉ. ललित की राजनीति में रुचि है और वे लंबे अरसे से इलाके में सक्रिय हैं. ऐसा नहीं है कि वो अकेले डॉक्टर हैं जिन्हें चुनाव का चस्का लगा हो. डॉ. ललित चंद्रकांत बीजेपी के समर्थक हैं और टिकट मिलने के आसार भी हैं. लेकिन टिकट किसी और दल का मिले या निर्दलीय लड़ना पड़े, उन्होंने चुनाव मैदान में उतरने की पूरी तैयारी कर ली है. उनके स्वैच्छिक सेवानिवृति के बाद ऐसे डॉक्टर्स की चर्चा लाजमी (Doctors in Himachal Politics) है, सियासत की सर्जरी करना चाहते हैं. इनमें से अगर कोई डॉक्टर हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022 (Himachal assembly election 2022) के रण में दिख जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए.
डॉ. जनकराज- इसी तरह देश के बड़े न्यूरो सर्जन डॉ. जनकराज भी चंबा जिला की भरमौर सीट से चुनाव लडना चाहते हैं. डॉ. जनक जनरल सर्जरी में एमएस डिग्री के साथ ही बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से न्यूरो सर्जरी में एमसीएच यानी सुपर स्पेशिएलिटी डिग्री होल्डर हैं. पिछली बार भी उन्होंने ऐन चुनावी समय में लंबा अवकाश लिया था, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला था और वापस ड्यूटी पर लौट आए थे. मौजूदा वक्त में वो प्रदेश के सबसे बड़े आईजीएमसी अस्पताल के एमएस और न्यूरो सर्जरी विभाग के हैड हैं. संघ से जुड़ाव रहा है इसलिये उनकी दावेदारी को खारिज भी नहीं किया जा सकता, हालांकि पिछली बार टिकट नहीं मिल पाया था.
डॉ. अरविंद कंदौरिया- उत्तर भारत के बड़े कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अरविंद कंदौरिया भी चुनाव लडऩे की मंशा रखते हैं. डॉ. कंदौरिया आईजीएमसी अस्पताल में कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट में प्रोफेसर रहे हैं और इन दिनों सेवा विस्तार के तहत शिमला में ही तैनात हैं. डॉ. कंदौरिया धर्मशाला से चुनाव लडऩे की इच्छा रखते हैं, हालांकि वे खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं. डॉ. कंदौरिया पिछले चुनाव में भी पर्दे के पीछे से चुनाव लडऩे की संभावनाएं तलाश रहे थे. चुनाव लड़ने की मंशा है लेकिन अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं.
डॉ. राजेश कश्यप- इसी प्रकार आईजीएमसी अस्पताल के मेडिसिन डिपार्टमेंट के प्रोफेसर रैंक के चिकित्सक डॉ. राजेश कश्यप ने चुनाव लडने के लिए नौकरी छोड़ दी थी. उन्होंने पिछला चुनाव कांग्रेस की टिकट पर सोलन सीट से लड़ा था, लेकिन अपने ससुर और कांग्रेस नेता कर्नल धनीराम शांडिल से चुनाव हार गए थे. डॉ. राजेश कश्यप इस बार भी सोलन सीट से लडऩा चाहते हैं. उल्लेखनीय है कि डॉ. कश्यप के परिवार से प्रोफेसर वीरेंद्र कश्यप सांसद रहे हैं. उनके भाई डॉ. सुरेंद्र कश्यप देश के माने हुए पल्मनरी मेडिसिन विशेषज्ञ हैं और इस समय अटल यूनिवर्सिटी नेरचौक के वीसी हैं. कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा था और इस बार चुनाव लड़ना तय है.
डॉ. रमेश चंद- प्रदेश के एक और विख्यात चिकित्सक डॉ. रमेश चंद भी राजनीति में बहुत दिलचस्पी रखते हैं. वे मंडी जिला के रहने वाले हैं और परिस्थितियां अनुकूल रही तो सेवानिवृति के बाद वे मंडी की करसोग या बल्ह सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. उनके ससुर मनसा राम कांग्रेस के बड़े नेता हैं. डॉ. रमेश चंद अपने सेवाभावी स्वभाव के लिए पूरे प्रदेश में चर्चित हैं. वे आईजीएमसी अस्पताल के एमएस रहे हैं और इन दिनों स्वास्थ्य विभाग में डिप्टी डॉयरेक्टर हैं. डॉ. रमेश चंद पीडियाट्रिक्स में डीसीएच हैं और अस्पताल प्रबंधन में मास्टर डिग्री होल्डर हैं. उल्लेखनीय है कि एक बार प्रदेश के दिग्गज कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह ने डॉ. रमेश चंद को फ्यूचर MLA कहा था. कांग्रेस से उनकी नजदीकियां किसी से छिपी नहीं है, ऐसे में अगर आगामी दिनों चुनाव लड़ते दिख जाएं तो हैरानी नहीं होगी.
जनता के बीच पहुंच रहे डॉक्टर साहब- हिमाचल की सियासत में डॉक्टर्स (Doctors and Himachal Politics) की चर्चा नई नहीं है. साल 2017 में डॉ. जनकराज ने सरकारी सेवा से लंबा अवकाश लिया था. उस दौरान उन्होंने कहा, इलाके की जनता चाहती है कि वो राजनीति के जरिए जनसेवा करें. राजनीति के माध्यम से व्यापक स्तर पर सेवा कार्य हो सकते हैं. डॉ. जनक ने कहा था कि भरमौर इलाका जनजातीय है और यहां समय के अनुरूप विकास की सख्त जरूरत है. उन्होंने तब वादा किया था कि राजनीति में प्रवेश के बावजूद भी वे मरीजों की सेवा के लिए उपलब्ध रहेंगे. वे ऑनरेरी तौर पर निशुल्क ही आईजीएमसी अस्पताल में न्यूरो सर्जरी विभाग में ऑपरेशन करते रहेंगे. खैर, पिछली बार उन्हें टिकट नहीं मिला था, बाद में वे अवकाश से आने पर आईजीएमसी अस्पताल के एमएस बने. इन दिनों भी वे भरमौर में जाकर जनता से मिल रहे हैं. उनके सोशल मीडिया पन्ने पर प्रचार से संबंधित पोस्ट देखी जा सकती हैं.
इसी तरह हाल ही में वालंटियर रिटायरमेंट का आवेदन करने वाले डॉ. ललित चंद्रकांत भी अपने इलाके में जनता से मिलते रहते हैं. राजेश कश्यप सोलन से चुनाव लड़ भी चुके हैं और आगे भी चुनावी रण में उतरना तय है. दरअसल सियासी रण में उतरने की मंशा रखने वाले डॉक्टर अपने पेशे के जरिये समाज के बीच बने रहते हैं. लोगों की नब्ज टटोलते-टटोलते अब सियासत की सर्जरी करने (Doctors in Himachal Politics) की चाहत है. लेकिन कितनों की चाहत पूरी हो पाती है ये आने वाले दिनों में साफ हो (Doctors and Himachal Election 2022) जाएगा.
आईएएस भी विधायक- हिमाचल प्रदेश में आईएएस अफसर भी विधायक बनने की लालसा से बच नहीं पाए. पूर्व में चंबा के बीके चौहान भाजपा के विधायक थे. वे आईएएस अफसर थे. इसी प्रकार मौजूदा विधानसभा में जेआर कटवाल विधायक हैं. वे आईएएस अफसर रहे हैं और इस समय झंडूता सीट से भाजपा विधायक हैं. वहीं, तेजतर्रार आईपीएस अफसर एएन शर्मा ने प्रेम कुमार धूमल के कार्यकाल में चुनाव लडऩे के लिए नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था. उन्हें टिकट नहीं मिली थी और फिर वे वापिस सरकारी नौकरी में आए थे. हालांकि उनकी नौकरी में वापसी पर कानूनी अड़चनें भी आई थीं.
सेना के अफसर भी विधायक- भारतीय सेना के अफसर रहे शूरवीरों को भी राजनीति रास आई है. हिमाचल में इस समय विधानसभा में भाजपा के कर्नल इंद्र सिंह ठाकुर विधायक हैं. इसी तरह कैबिनेट मेंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर भी पूर्व सैनिक हैं और 1971 का युद्ध लड़ा है. भाजपा के विधायक विक्रम जरियाल भारतीय सेना में कमांडो थे. इसी तरह पूर्व विधायक और मौजूदा सांसद सुरेश कश्यप भी वायुसेना में रहे हैं. कांग्रेस में कर्नल धनीराम शांडिल सांसद, कैबिनेट मंत्री रहे और अब विधायक हैं.