शिमला: हाल ही में सम्पन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सहित चार राज्यों में शानदार जीत मिली है. हिमाचल बीजेपी के लिहाज से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में मिली जीत बहुत खास है. इन दोनों राज्यों में इस बार की जीत के मायने इसलिये भी अधिक है क्योंकि दोनों राज्यों में अरसे बाद कोई सरकार रिपीट हो पाई है. ऐसे में पार्टी अब हिमाचल में भी मिशन रिपीट के सपने को साकार होता देखने लगी है.
हिमाचल में 4 दशक ने नहीं रिपीट हुई सरकार- इतिहास पर नजर डालें तो देवभूमि हिमाचल में चार दशक से भी अधिक समय से कोई सरकार रिपीट नहीं हुई है. साल 1980 के बाद से सत्ता की चाबी कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी के हाथ रही है. मिशन रिपीट यानि सरकार रिपीट करने के दावे तो हर बार होते हैं, जो धरे के धरे रह जाते हैं. साल 1980 में ठाकुर रामलाल के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार थी. 1982 में उन्हें आंध्र प्रदेश का गवर्नर बनाकर भेजा गया और वीरभद्र सिंह ने मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली. जिसके बाद 1985 में हुए चुनावों में फिर से वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी. उसके बाद से कोई भी दल ये कारनामा नहीं कर पाया है.
यूपी-उत्तराखंड के नतीजों से हौसले बुलंद- उत्तर प्रदेश में 37 साल बाद ऐसा हुआ है, जब कोई दल लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज हुआ हो. योगी की अगुवाई और मोदी के चेहरे पर लगातार दूसरी बार यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार (UP election result) बनने जा रही है. उधर साल 2000 में बने उत्तराखंड राज्य में भी पहली बार कोई सरकार रिपीट (Uttarakhand Election Result) हो रही है और यहां भी ये सेहरा बीजेपी के सिर ही सजा है. भले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए लेकिन यहां भी लगातार दूसरी बार बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनने जा रही है. यूपी और उत्तराखंड की जीत ने हिमाचल बीजेपी को हौसला दिया है कि सरकार रिपीट हो सकती है. चुनावों में मिली जीत के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी कहा कि ये जीत बताती है कि सरकार के बाद सरकार बनती है.
![UP election result](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14705345_up.jpg)
हिमाचल का सियासी समीकरण- हिमाचल प्रदेश में 68 विधानसभा सीटें हैं. सत्तर लाख से अधिक आबादी वाले इस पहाड़ी राज्य में चुनाव रिकार्ड तोड़ वोटिंग का गवाह बने हैं. पिछली बार पचास लाख से अधिक मतदाताओं ने 9 नवंबर 2017 को नई सरकार का भाग्य ईवीएम में बंद किया था. हिमाचल में तब 74.61 फीसदी मतदान हुआ था. हिमाचल में चार से पांच फीसदी वोट का स्विंग ही सत्ता को उलट-पलट देता है. यही कारण है कि कांग्रेस हो या भाजपा, पिछले 32 साल से हिमाचल में कोई भी दल सरकार को रिपीट नहीं कर पाया है.
बीते चुनाव का समीकरण- साल 2017 में बीजेपी को करीब 48 फीसदी तो कांग्रेस को करीब 41 फीसदी वोट मिले, इसी तरह 2012 के चुनाव में कांग्रेस ने 42.8 फीसदी वोट लेकर सरकार बनाई थी. उस समय भाजपा को 39 फीसदी मत मिले थे. इससे पूर्व यानी वर्ष 2007 के चुनाव में भाजपा को 43.78 फीसदी मत पड़े और कांग्रेस ने 38.90 फीसदी मत हासिल किए. इसी तरह वर्ष 2007 के चुनाव में भी जीत-हार का अंतर पांच फीसदी से कुछ ही अधिक था. प्रदेश में 1998 के चुनाव में भी स्थिति कुछ-कुछ ऐसी ही थी.
जब ज्यादा वोट प्रतिशत के बावजूद नहीं बनी कांग्रेस की सरकार- वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत (Congress vote percentage in assembly elections) बेशक भाजपा से अधिक था, लेकिन उसे सत्ता नहीं मिली. कारण ये था कि उस समय हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा के अलावा हिमाचल विकास कांग्रेस के तौर पर एक अन्य क्षेत्रीय दल था. पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन किया था. जिसके पांच विधायकों ने बीजेपी को समर्थन देकर कांग्रेस के सरकार रिपीट के सपने को चकनाचूर कर दिया.
एक अपवाद भी है- वोटिंग के इस ट्रेंड को लेकर एकमात्र अपवाद वर्ष 1993 का विधानसभा चुनाव था. इस चुनाव में कांग्रेस को 48 और भाजपा को महज 36 फीसदी मत मिले. ये परंपरागत चार से पांच फीसदी स्विंग से कहीं अधिक 12 फीसदी था. हिमाचल में इससे पूर्व वर्ष 1990 के चुनाव में भाजपा को 41.7 फीसदी और कांग्रेस को 36.54 फीसदी मत मिले थे.
वोटिंग के हिसाब से सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड रहा है, लेकिन अब नई सदी में राजनीति कई कारणों से प्रभावित हो रही है. हिमाचल सदा से दो दलों की राजनीति की धुरी रहा है. अब सूबे में भाजपा मजबूत है. कारण ये है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है और राजनीति में डबल इंजन की सरकार का कॉन्सेप्ट प्रभाव रखता है.
कांग्रेस के हौसले पस्त- 5 राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस के हौसले पस्त हैं. पांचों राज्यों में उपलब्धि के नाम पर कुछ नहीं है. हरीश रावत से लेकर नवजोत सिद्धू तक चुनाव हार चुके हैं, पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी तो दोनों सीटें हार गए. यूपी ना प्रियंका का जादू चला ना कोई मुद्दा काम आया. ऐसे में हिमाचल कांग्रेस पर भाजपा की मनोवैज्ञानिक बढ़त मानी जाएगी. पंजाब में कांग्रेस ने सत्ता गंवाई है और उत्तराखंड में सत्ता में वापसी का सपना अगले 5 साल के लिए सपना ही रहेगा. उत्तराखंड से लेकर पंजाब तक लिए गए पार्टी के कई फैसले इसकी सबसे बड़ी वजह हैं. ऐसे में हिमाचल विधानसभा चुनाव के लिए नए सिरे से प्लानिंग करनी होगी.
![punjab assembly election results](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14705345_punjab.jpg)
क्या कहते हैं कांग्रेसी- नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री (Leader of Opposition Mukesh Agnihotri) कहते हैं कि हिमाचल में जनता मौजूदा सरकार से नाराज है. यहां की परिस्थितियों की देश के अन्य राज्यों से तुलना नहीं कर सकते. वैसे कांग्रेसी तो पांच राज्यों में भी अपने दम पर सरकार बनाने तक का दावा कर रहे थे लेकिन यूपी, उत्तराखंड और पंजाब में पार्टी ने सबसे बुरा प्रदर्शन (punjab assembly election results) किया है.
![Uttarakhand Election Result](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14705345_uttarakhand.jpg)
बीजेपी बनाम कांग्रेस- राजनीति में मनोवैज्ञानिक असर अहम भूमिका निभाता है. कांग्रेस का मनोबल जरूर टूटा है. पार्टी के पास अब वीरभद्र सिंह जैसा दमदार नेता भी नहीं हैं. पार्टी की गुटबाजी और खेमेबंदी किसी से छिपी नहीं है और अब पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने इस जख्म पर नमक रगड़ने का काम किया है. हालांकि बीते साल हुए उपचुनाव में कांग्रेस की जीत कांग्रेस को हौसला दे रही है और एंटी इनकंबेसी का दावा भी उसे लड़ने की ताकत दे रहा है.
दूसरी तरफ बीजेपी के हौसले 5 राज्यों के नतीजों के बाद बुलंद हैं और हिमाचल में भी सरकार रिपीट करने के दावे कर रही है. बीजेपी का कैडर मजबूत है, नतीजों के बाद कार्यकर्ताओं के हौसले भी बुलंद है. वरिष्ठ पत्रकारी कृष्ण भानु का मानना है कि कांग्रेस हाईकमान को आत्मचिंतन की जरूरत है क्योंकि निरन्तर हार से मनोबल टूट जाता है वहीं भाजपा को चुनावी साल में जनता की नाराजगी भांपने और उसे दूर करने में जुटना होगा.
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