शिमला: आजादी के 75 वर्ष (indian independence day) के मौके पर देश भर में आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) मनाया जा रहा है. आजादी के अमृत महोत्सव का जश्न हो और उन विभूतियों को याद (Best of Bharat) न किया जाए यह भला कैसे संभव है, जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. इस खास मौके पर आज हम आजादी की लड़ाई में पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम के अतुलनीय योगदान के बारे में बात करने जा रहे हैं. बाबा कांशी राम ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्हें भारत की आजादी के लिए एकऔर दो बार नहीं बल्कि 11 बार जेल जाना पड़ा था.
कांगड़ा जिले में हुआ था जन्म: अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की कुर्बानी दी है. इन्हीं सेनानियों में से एक हैं पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम. बाबा कांशी राम का जन्म (pahari gandhi baba kanshi ram) 11 जुलाई 1882 को कांगड़ा जिला की पंचायत गुरनबाड (पदियाल) में हुआ था. कांशी राम अभी 11 साल के ही हुए थे कि उनके पिता का देहांत हो गया.
पिता के देहांत के बाद बाबा कांशी राम पर परिवार की पूरी जिम्मेदारी आ गई. काम की तलाश में वह लाहौर चले गए. वहां कांशी राम गए तो काम-धंधा तलाशने थे, लेकिन उस समय भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन तेज हो गया था और बाबा कांशी राम भी अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में कूद गए. यहां वो लाल हरदयाल, भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह और मौलवी बरकत जैसे स्वतंत्रता सेनानियों से मिले.
संगीत और साहित्य के शौकीन बाबा कांशी राम की मुलाकात लाहौर में उस वक्त के मशहूर देश भक्ति गीत 'पगड़ी संभाल जट्टा' लिखने वाले सूफी अंबा प्रसाद और लाल चंद फलक से हुई, जिसके बाद कांशीराम पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित हो गए.
बाबा कांशी राम की जेल यात्रा और साहित्य लेखन: साल 1919 में जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ. कांशीराम उस वक्त अमृतसर में थे. यहां ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज बुलंद करने की कसम खाने वाले कांशीराम को 5 मई 1920 को लाला लाजपत राय के साथ दो साल के लिए धर्मशाला जेल में डाल दिया गया. इस दौरान उन्होंने कई कविताएं और कहानियां लिखीं. खास बात ये थी कि उनकी सारी रचनाएं पहाड़ी भाषा में थीं. पहाड़ी गांधी बाबा कांशी अपने जीवन में कुल 11 बार जेल गए और अपने जीवन के 9 साल सलाखों के पीछे काटे. जेल के दौरान उन्होंने लिखना जारी रखा. इस दौरान उन्होंने 1 उपन्यास, 508 कविताएं और 8 कहानियां लिखीं.
आजादी न मिलने तक काले कपड़े धारण करने का प्रण: कांशी राम खुद को देश के लिए समर्पित कर चुके थे. उनका स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ाव इतना गहरा हो चुका था कि साल 1931 में जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सजा की खबर बाबा कांशी राम तक पहुंची तो उन्होंने प्रण लिया कि वो ब्रिटिश राज के खिलाफ अपनी लड़ाई को और धार देंगे. साथ ही ये भी कसम खाई कि जब तक देश आजाद नहीं हो जाता, तब तक वो काले कपड़े पहनेंगे. इसके लिए उन्हें 'काले कपड़ों वाला जनरल' भी कहा गया.
कांशीराम ने अपनी ये कसम मरते दम तक नहीं तोड़ी. 15 अक्टूबर 1943 को अपनी आखिरी सांसें लेते हुए भी कांशीराम के बदन पर काले कपड़े थे और कफन भी काले कपड़े का ही था.
चाचा नेहरू ने कांशी राम को दी थी पहाड़ी गांधी की उपाधि: साल 1937 में जवाहर लाल नेहरू होशियारपुर के गद्दीवाला में एक सभा को संबोधित करने आए थे. यहां मंच से नेहरू ने बाबा कांशीराम को 'पहाड़ी गांधी' कहकर संबोधित किया था. उसके बाद से कांशी राम को पहाड़ी गांधी के नाम से ही जाना गया.
सरोजनी नायडू ने बाबा कांशी राम को दी 'बुलबुल-ए-पहाड़' की उपाधि: ऊना जिला के दौलतपुर में एक जनसभा चल रही थी. वहां पर सरोजनी नायडू भी आयी थीं. यहां कांशीराम की कविताएं और गीत सुनकर सरोजनी नायडू ने उन्हें 'बुलबुल-ए-पहाड़' कहकर बुलाया था.
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