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सत्ता का सेमीफाइनल: क्या कांग्रेस में होली लॉज होगा नया पावर सेंटर, खुद को निरंतर निखार रहे विक्रमादित्य - Himachal Congress

हिमाचल प्रदेश में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीट पर कांग्रेस को मिली जीत के बाद प्रदेश की सियासी फिजाओं में एक बार फिर वीरभद्र परिवार का नाम गूंज रहा है. प्रतिभा सिंह की चुनावी जीत में जिस तरह से विक्रमादित्य ने ग्राउंड वर्क किया है. उससे होली लॉज की अहमियत एक बार फिर साबित हुई है. इस कामयाबी के बाद सत्ता के गलियारों में कांग्रेस के संदर्भ में नई चर्चा चल पड़ी है कि क्या हिमाचल कांग्रेस अब नया पावर सेंटर होली लॉज होगा. वहीं, मंडी लोकसभा सीट से कांग्रेस की जीत में नोटा का अहम योगदान रहा है. इस संसदीय सीट पर 12,661 लोगों ने नोटा की बटन दबाई. इससे साबित होता है कि लोग सरकार और विपक्ष से नाखुश हैं.

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Published : Nov 3, 2021, 8:15 PM IST

Updated : Nov 3, 2021, 8:31 PM IST

शिमला: वीरभद्र सिंह के युग का अवसान होने के बाद कांग्रेस पहली बार किसी बड़े चुनावी मैदान में थी. हिमाचल में चार सीटों पर उपचुनाव में कांग्रेस ने अप्रत्याशित सफलता हासिल की. इस कामयाबी के बाद सत्ता के गलियारों में कांग्रेस के संदर्भ में नई चर्चा चल पड़ी है. मंडी में प्रतिभा सिंह की जीत और 17 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन से एक सवाल तैर रहा है कि क्या हिमाचल कांग्रेस में अब नया पावर सेंटर होली लॉज होगा.

कांग्रेस में यह परंपरा रही है कि सामान्य कार्यकर्ताओं से लेकर पार्टी पदाधिकारी एक बड़ी छतरी के नीचे एक जुट हो जाते हैं. पांच दशक तक कांग्रेस के पास वीरभद्र सिंह के रूप में विशालकाय राजनीतिक छाता था. अब प्रतिभा सिंह की चुनावी जीत में जिस तरह से विक्रमादित्य ने ग्राउंड वर्क किया है. उससे होली लॉज की अहमियत एक बार फिर साबित हुई है.

इस चुनाव में मंडी लोकसभा सीट के सभी 17 विधानसभा सेगमेंट में जिस तरह से वीरभद्र सिंह के नाम का जलवा देखा गया है. उससे यह साबित हो गया है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में भी वीरभद्र सिंह के नाम का इमोशनल फैक्टर काम आएगा. कांग्रेस के बड़े नेताओं ने उपचुनाव में जीत के बाद वीरभद्र सिंह के पोस्टर्स को सोशल मीडिया पर अपने नाम से डाला है. कई नेताओं ने अपनी निष्ठा वीरभद्र सिंह परिवार के प्रति जताई है.

मंडी में विक्रमादित्य सिंह और प्रतिभा सिंह का जिस गर्मजोशी से स्वागत हुआ. उससे आगामी राजनीति के संकेत मिलते हैं. हिमाचल के पूर्व नौकरशाह और लेखक राजकुमार राकेश जो खुद मंडी जिले से हैं, उन्होंने अपने सोशल मीडिया पेज पर इस चुनाव का विश्लेषण किया है. हिमाचल सरकार में अफसर रहे राजकुमार राकेश जाने माने लेखक हैं. आगे की पंक्तियों में यहां राजकुमार राकेश का विश्लेषण उन्हीं के शब्दों में दिया जा रहा है.

तीन विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस की जीत बहुत अप्रत्याशित नहीं है, इनमें दो सीटें पहले ही इनके पास थीं और तीसरी सीट पर भाजपा के विद्रोही ने दूसरे नम्बर पर पहुंचकर कांग्रेस की जीत तय कर दी, लेकिन असल अंतर मंडी लोकसभा की जीत से पड़ेगा. इससे इन दोनों दलों का भविष्य आज ही तय हो गया है.

वीरभद्र सिंह के निधन के बाद हिमाचल कांग्रेस में जो राजनैतिक शून्य दिख रहा था, उसकी भरपाई प्रतिभा सिंह की इस जीत ने कर डाली है. अब कांग्रेस का पुनर्संचालन वापस जाखू के होली लॉज से होगा और मां-बेटा पार्टी की धुरी बनेंगे. यकीन कीजिए, अगले बरस होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रतिभा सिंह बड़ी जिम्मेदारी निभाएंगी. बड़ी जिम्मेदारी का अर्थ पाठक खुद समझ सकते हैं और इस असलियत की वजह से कांग्रेस के भीतर जो हार्टबर्न हो रहा है, उससे संदेश साफ है कि दशकों से मुख्यमंत्री आवास में प्रवेश का सपना देखने वाले बुढ़ाते हुए कांग्रेसी-हाथी (मतलब जिन्हें दिग्गज कहा जाता है) अचानक पस्त पड़ चुके हैं. उन्हें इस यथार्थ को स्वीकार करने में चाहे जो कठिनाई हो, यह मान लेना होगा कि वीरभद्र का शून्य आज भर चुका है. कांग्रेस हाईकमान अगर समझे तो यह उनके लिए बड़ा सुकून है और अगर न समझे तो जनता सब तबीयत से समझा देती है.

मंडी सीट का करीब आठ हजार वोटों से हारना मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए उनके जीवन का वाटरलू साबित हो सकता है. मंडी जिला उनका राजनैतिक गढ़ है और इस जिले की जनता ने हालांकि हस्बेमामूल उनका समर्थन किया है, लेकिन जिस तरह कुल्लू, किन्नौर, लाहौल-स्पीति, पांगी-भरमौर और रामपुर ने कांग्रेस के समर्थन में वोट किया, वह जयराम ठाकुर के लिए खतरे का बड़ा सा घंटा है. उनकी अपनी पार्टी में जो लोग घात लगाए इंतजार में थे, उन्हें आज उतना ही पुरजोर सुकून मिला है, जितनी तकलीफ जयराम को हुई.

पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार जैसा नेता जो रिटायर कर चुका है, जयराम के समर्थन में मंडी इस लिए आ पहुंचा था ताकि विरोधी खेमे वालों की भीतरी खुशी को रोका जा सके, लेकिन सफलता मिली नहीं और अब खतरा यह है कि जयराम की कुर्सी जा सकती है. दिल्ली में बैठे जेपी नड्डा खुद तो शायद नहीं आ पाएंगे, लेकिन धूमल पुत्र अनुराग ठाकुर के बारे में निश्चय से कुछ कहना मुमकिन नहीं है. पिछले आम चुनाव में अपनी विधानसभा सीट हारने का गम धूमल के भीतर अभी तक पालथी मारे बैठा है. वह कभी स्वीकार नहीं कर पाए कि जो कुर्सी उनके लिए रिजर्व थी, उसपर जयराम जा बैठे.

सुखराम जी याद हैं आपको, वहीं पूजारूम में नोटों की गड़ियां फेम वाले, मंडी का यह हाथी (मतलब दिग्गज) आजीवन कांग्रेस में रहा. मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए थे. फिर बाहर निकाले गए तो अपनी प्रादेशिक पार्टी लॉन्च की, पांच सीटें जीतीं और धूमल को मुख्यमंत्री बनवा दिया. फिर वापस कांग्रेस में लौटे और पुत्र को एमएलए बनवा दिया. पिछले चुनाव में यह पुत्र भाजपा में शामिल हो गया तो सुखराम भाजपा के पक्ष में भाषण देने लगे.

दो साल बाद राहुल गांधी से मिलकर पुत्र के पुत्र के लिए कांग्रेसी लोकसभा का टिकट ले आए. इस बार उस पौत्र को टिकट नहीं मिला तो न खुद और न वह पौत्र वोट डालने गया. पुत्र इन दिनों किस पार्टी में है, ये मंडी वाले जानते होंगे, लेकिन अब 95 बरस की उम्र के सुखराम की संतति का भविष्य भी लगभग तय हो चुका है. मंडी की राजनीति से उनकी भी विदाई तय मान लीजिए.

ये भी पढ़ें: उपचुनाव में विलेन बना नोटा: मंडी लोकसभा सीट में नोटा को मिले 12661 और BJP 7490 मतों से हारी

कांग्रेस नेता भी जीत से गदगद नजर आ रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर और नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री का कहना है कि इन चुनावों में कांग्रेस एक जुट से चुनाव लड़ी ओर चारों सीटे जीती हैं. इन नेताओं का कहना है कि मंडी सीट पर जीत हासिल करना चुनौती थी, लेकिन स्वर्गीय वीभद्र सिंह द्वारा पूर्व में करवाये गए कामों पर जीत हासिल की है और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अपने आप में बड़ा नाम है हमेशा लोगों के बीच जिंदा रहेगा.

वहीं, मंडी लोकसभा सीट से कांग्रेस की जीत में नोटा का अहम योगदान रहा है. इस संसदीय सीट पर 12,661 लोगों ने नोटा की बटन दबाई. इससे साबित होता है कि लोग बीजेपी और कांग्रेस से नाराज है, लेकिन इसका फायदा कांग्रेस को मिला. मंडी जिले में ही सिर्फ 8195 लोगों ने नोटा दबाया. आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो मंडी के नौ हलकों में 8195, कुल्लू के चार हलकों में 2514, भरमौर में 379, लाहौल स्पीति में 120, रामपुर, किन्नौर में 518 लोगों ने नोटा दबाया. मंडी में नाचन में 1959 मतदाताओं ने और बल्ह में 1647 मतदाता नोटा दबाया है, जबकि इन दोनों हलकों से विस चुनावों में सबसे अधिक समर्थन सरकार को मिला था.

इसके अलावा मंडी सदर में 925, जोगिंद्रनगर में 807, द्रंग में 572, सरकाघाट में 565, करसोग में 463 और सराज में 374 मतदाताओं ने नोटा दबाकर नाराजगी जाहिर की. इसी तरह कुल्लू जिले में मनाली में 476, कुल्लू में 993, बंजार में 513, आनी में 352 यानी 2514 मतदाताओं ने नोटा दबाया, जबकि भरमौर में 379, लाहौल स्पीति में 120 और रामपुर किन्नौर में 518 ने इसका प्रयोग किया है. इसके अलावा जुब्बल-कोटखाई में 176, अर्की विधानसभा क्षेत्र में 1626, फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनावों में 389 लोगों ने नोटा का प्रयोग किया.

ये भी पढ़ें: अब ड्रग तस्करों पर आकाश से नजर, केंद्र की मदद से खरीदे जाएंगे ड्रोन कैमरे

शिमला: वीरभद्र सिंह के युग का अवसान होने के बाद कांग्रेस पहली बार किसी बड़े चुनावी मैदान में थी. हिमाचल में चार सीटों पर उपचुनाव में कांग्रेस ने अप्रत्याशित सफलता हासिल की. इस कामयाबी के बाद सत्ता के गलियारों में कांग्रेस के संदर्भ में नई चर्चा चल पड़ी है. मंडी में प्रतिभा सिंह की जीत और 17 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन से एक सवाल तैर रहा है कि क्या हिमाचल कांग्रेस में अब नया पावर सेंटर होली लॉज होगा.

कांग्रेस में यह परंपरा रही है कि सामान्य कार्यकर्ताओं से लेकर पार्टी पदाधिकारी एक बड़ी छतरी के नीचे एक जुट हो जाते हैं. पांच दशक तक कांग्रेस के पास वीरभद्र सिंह के रूप में विशालकाय राजनीतिक छाता था. अब प्रतिभा सिंह की चुनावी जीत में जिस तरह से विक्रमादित्य ने ग्राउंड वर्क किया है. उससे होली लॉज की अहमियत एक बार फिर साबित हुई है.

इस चुनाव में मंडी लोकसभा सीट के सभी 17 विधानसभा सेगमेंट में जिस तरह से वीरभद्र सिंह के नाम का जलवा देखा गया है. उससे यह साबित हो गया है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में भी वीरभद्र सिंह के नाम का इमोशनल फैक्टर काम आएगा. कांग्रेस के बड़े नेताओं ने उपचुनाव में जीत के बाद वीरभद्र सिंह के पोस्टर्स को सोशल मीडिया पर अपने नाम से डाला है. कई नेताओं ने अपनी निष्ठा वीरभद्र सिंह परिवार के प्रति जताई है.

मंडी में विक्रमादित्य सिंह और प्रतिभा सिंह का जिस गर्मजोशी से स्वागत हुआ. उससे आगामी राजनीति के संकेत मिलते हैं. हिमाचल के पूर्व नौकरशाह और लेखक राजकुमार राकेश जो खुद मंडी जिले से हैं, उन्होंने अपने सोशल मीडिया पेज पर इस चुनाव का विश्लेषण किया है. हिमाचल सरकार में अफसर रहे राजकुमार राकेश जाने माने लेखक हैं. आगे की पंक्तियों में यहां राजकुमार राकेश का विश्लेषण उन्हीं के शब्दों में दिया जा रहा है.

तीन विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस की जीत बहुत अप्रत्याशित नहीं है, इनमें दो सीटें पहले ही इनके पास थीं और तीसरी सीट पर भाजपा के विद्रोही ने दूसरे नम्बर पर पहुंचकर कांग्रेस की जीत तय कर दी, लेकिन असल अंतर मंडी लोकसभा की जीत से पड़ेगा. इससे इन दोनों दलों का भविष्य आज ही तय हो गया है.

वीरभद्र सिंह के निधन के बाद हिमाचल कांग्रेस में जो राजनैतिक शून्य दिख रहा था, उसकी भरपाई प्रतिभा सिंह की इस जीत ने कर डाली है. अब कांग्रेस का पुनर्संचालन वापस जाखू के होली लॉज से होगा और मां-बेटा पार्टी की धुरी बनेंगे. यकीन कीजिए, अगले बरस होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रतिभा सिंह बड़ी जिम्मेदारी निभाएंगी. बड़ी जिम्मेदारी का अर्थ पाठक खुद समझ सकते हैं और इस असलियत की वजह से कांग्रेस के भीतर जो हार्टबर्न हो रहा है, उससे संदेश साफ है कि दशकों से मुख्यमंत्री आवास में प्रवेश का सपना देखने वाले बुढ़ाते हुए कांग्रेसी-हाथी (मतलब जिन्हें दिग्गज कहा जाता है) अचानक पस्त पड़ चुके हैं. उन्हें इस यथार्थ को स्वीकार करने में चाहे जो कठिनाई हो, यह मान लेना होगा कि वीरभद्र का शून्य आज भर चुका है. कांग्रेस हाईकमान अगर समझे तो यह उनके लिए बड़ा सुकून है और अगर न समझे तो जनता सब तबीयत से समझा देती है.

मंडी सीट का करीब आठ हजार वोटों से हारना मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए उनके जीवन का वाटरलू साबित हो सकता है. मंडी जिला उनका राजनैतिक गढ़ है और इस जिले की जनता ने हालांकि हस्बेमामूल उनका समर्थन किया है, लेकिन जिस तरह कुल्लू, किन्नौर, लाहौल-स्पीति, पांगी-भरमौर और रामपुर ने कांग्रेस के समर्थन में वोट किया, वह जयराम ठाकुर के लिए खतरे का बड़ा सा घंटा है. उनकी अपनी पार्टी में जो लोग घात लगाए इंतजार में थे, उन्हें आज उतना ही पुरजोर सुकून मिला है, जितनी तकलीफ जयराम को हुई.

पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार जैसा नेता जो रिटायर कर चुका है, जयराम के समर्थन में मंडी इस लिए आ पहुंचा था ताकि विरोधी खेमे वालों की भीतरी खुशी को रोका जा सके, लेकिन सफलता मिली नहीं और अब खतरा यह है कि जयराम की कुर्सी जा सकती है. दिल्ली में बैठे जेपी नड्डा खुद तो शायद नहीं आ पाएंगे, लेकिन धूमल पुत्र अनुराग ठाकुर के बारे में निश्चय से कुछ कहना मुमकिन नहीं है. पिछले आम चुनाव में अपनी विधानसभा सीट हारने का गम धूमल के भीतर अभी तक पालथी मारे बैठा है. वह कभी स्वीकार नहीं कर पाए कि जो कुर्सी उनके लिए रिजर्व थी, उसपर जयराम जा बैठे.

सुखराम जी याद हैं आपको, वहीं पूजारूम में नोटों की गड़ियां फेम वाले, मंडी का यह हाथी (मतलब दिग्गज) आजीवन कांग्रेस में रहा. मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए थे. फिर बाहर निकाले गए तो अपनी प्रादेशिक पार्टी लॉन्च की, पांच सीटें जीतीं और धूमल को मुख्यमंत्री बनवा दिया. फिर वापस कांग्रेस में लौटे और पुत्र को एमएलए बनवा दिया. पिछले चुनाव में यह पुत्र भाजपा में शामिल हो गया तो सुखराम भाजपा के पक्ष में भाषण देने लगे.

दो साल बाद राहुल गांधी से मिलकर पुत्र के पुत्र के लिए कांग्रेसी लोकसभा का टिकट ले आए. इस बार उस पौत्र को टिकट नहीं मिला तो न खुद और न वह पौत्र वोट डालने गया. पुत्र इन दिनों किस पार्टी में है, ये मंडी वाले जानते होंगे, लेकिन अब 95 बरस की उम्र के सुखराम की संतति का भविष्य भी लगभग तय हो चुका है. मंडी की राजनीति से उनकी भी विदाई तय मान लीजिए.

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कांग्रेस नेता भी जीत से गदगद नजर आ रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर और नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री का कहना है कि इन चुनावों में कांग्रेस एक जुट से चुनाव लड़ी ओर चारों सीटे जीती हैं. इन नेताओं का कहना है कि मंडी सीट पर जीत हासिल करना चुनौती थी, लेकिन स्वर्गीय वीभद्र सिंह द्वारा पूर्व में करवाये गए कामों पर जीत हासिल की है और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अपने आप में बड़ा नाम है हमेशा लोगों के बीच जिंदा रहेगा.

वहीं, मंडी लोकसभा सीट से कांग्रेस की जीत में नोटा का अहम योगदान रहा है. इस संसदीय सीट पर 12,661 लोगों ने नोटा की बटन दबाई. इससे साबित होता है कि लोग बीजेपी और कांग्रेस से नाराज है, लेकिन इसका फायदा कांग्रेस को मिला. मंडी जिले में ही सिर्फ 8195 लोगों ने नोटा दबाया. आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो मंडी के नौ हलकों में 8195, कुल्लू के चार हलकों में 2514, भरमौर में 379, लाहौल स्पीति में 120, रामपुर, किन्नौर में 518 लोगों ने नोटा दबाया. मंडी में नाचन में 1959 मतदाताओं ने और बल्ह में 1647 मतदाता नोटा दबाया है, जबकि इन दोनों हलकों से विस चुनावों में सबसे अधिक समर्थन सरकार को मिला था.

इसके अलावा मंडी सदर में 925, जोगिंद्रनगर में 807, द्रंग में 572, सरकाघाट में 565, करसोग में 463 और सराज में 374 मतदाताओं ने नोटा दबाकर नाराजगी जाहिर की. इसी तरह कुल्लू जिले में मनाली में 476, कुल्लू में 993, बंजार में 513, आनी में 352 यानी 2514 मतदाताओं ने नोटा दबाया, जबकि भरमौर में 379, लाहौल स्पीति में 120 और रामपुर किन्नौर में 518 ने इसका प्रयोग किया है. इसके अलावा जुब्बल-कोटखाई में 176, अर्की विधानसभा क्षेत्र में 1626, फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनावों में 389 लोगों ने नोटा का प्रयोग किया.

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Last Updated : Nov 3, 2021, 8:31 PM IST
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