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32 साल से एक ही जगह नौकरी कर रही थी महिला, ट्रांसफर रुकवाने को पहुंची हाईकोर्ट तो लगी 30 हजार कॉस्ट - Himachal Pradesh High Court latest news

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal Pradesh High Court) में ट्रांसफर ऑर्डर के खिलाफ याचिका दाखिल करना एक महिला कर्मचारी को महंगा पड़ गया है. इस मामले में अदालत में सुनवाई हुई तो महिला की याचिका (petition to stop the transfer in hc) तीस हजार रुपए की कॉस्ट के साथ खारिज कर दी गई.

Himachal Pradesh High Court
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
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Published : Sep 16, 2022, 8:13 PM IST

शिमला: राज्य सरकार के पशुपालन विभाग (Himachal Animal Husbandry Department) में एक महिला कर्मचारी 32 साल से चंबा में ही नौकरी कर रही थी. कुछ समय पहले उसका तबादला चंबा से शिमला के लिए किया गया. महिला कर्मचारी ने तबादला आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट (Himachal Pradesh High Court) में याचिका दाखिल की. अदालत में सुनवाई हुई तो महिला की याचिका तीस हजार रुपए की कॉस्ट के साथ खारिज (petition to stop the transfer in hc) कर दी गई. अदालत ने पाया कि प्रार्थी की खुद की ट्रांसफर भी डीओ (डेमी ऑफिशियल) नोट के आधार पर हुई थी. ऐसे में वो इसी बात को आधार मानकर दूसरे की ट्रांसफर को कैसे चुनौती दे सकती है.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने इस दिलचस्प मामले में सुनवाई की. खंडपीठ ने पाया कि प्रार्थी खुद भी डीओ नोट से लाभ उठा चुकी थी. अब उसने इसी आधार पर अपने तबादले को याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. मामले की सुनवाई के दौरान ये खुलासा हुआ कि प्रार्थी महिला वर्ष 1990 से चंबा जिला में ही नौकरी कर रही थी. बड़ी बात है कि अपनी पहली नियुक्ति से ही वो चंबा जिला में नौकरी कर रही थी. इस साल 17 अगस्त को महिला का तबादला चंबा से शिमला के लिए किया गया. महिला की नौकरी पशुपालन विभाग में है.

महिला कर्मचारी ने चंबा से शिमला के लिए स्थानांतरण आदेश को याचिका के माध्यम से यह कहकर चुनौती दे डाली कि उसका तबादला एक डीओ नोट के आधार पर किया गया है. जब सारा रिकॉर्ड अदालत में पेश किया गया तो ये खुलासा हुआ कि उसने खुद भी डीओ नोट का लाभ लिया है. अदालत में रिकॉर्ड पेश होने पर प्रार्थी की ओर से याचिका को वापस लेने की प्रार्थना की गई, लेकिन न्यायालय ने प्रार्थी के इस तरह के रिकॉर्ड को देखते हुए याचिका को 30,000 रुपये की कॉस्ट के साथ वापस लेने की अनुमति दी. अदालत ने आदेश दिया कि कॉस्ट की 30000 रुपए की रकम में से 15 हजार रुपये निजी तौर पर बनाए गए प्रतिवादी को दिए जाएं. साथ ही 15 हजार रुपये हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन में जमा करवाने के आदेश दिए गए.

ये भी पढ़ें: आइस स्केटिंग रिंक के विकास का रोडमैप बताए पर्यटन विभाग, हाईकोर्ट ने मांगा हलफनामा

शिमला: राज्य सरकार के पशुपालन विभाग (Himachal Animal Husbandry Department) में एक महिला कर्मचारी 32 साल से चंबा में ही नौकरी कर रही थी. कुछ समय पहले उसका तबादला चंबा से शिमला के लिए किया गया. महिला कर्मचारी ने तबादला आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट (Himachal Pradesh High Court) में याचिका दाखिल की. अदालत में सुनवाई हुई तो महिला की याचिका तीस हजार रुपए की कॉस्ट के साथ खारिज (petition to stop the transfer in hc) कर दी गई. अदालत ने पाया कि प्रार्थी की खुद की ट्रांसफर भी डीओ (डेमी ऑफिशियल) नोट के आधार पर हुई थी. ऐसे में वो इसी बात को आधार मानकर दूसरे की ट्रांसफर को कैसे चुनौती दे सकती है.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने इस दिलचस्प मामले में सुनवाई की. खंडपीठ ने पाया कि प्रार्थी खुद भी डीओ नोट से लाभ उठा चुकी थी. अब उसने इसी आधार पर अपने तबादले को याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. मामले की सुनवाई के दौरान ये खुलासा हुआ कि प्रार्थी महिला वर्ष 1990 से चंबा जिला में ही नौकरी कर रही थी. बड़ी बात है कि अपनी पहली नियुक्ति से ही वो चंबा जिला में नौकरी कर रही थी. इस साल 17 अगस्त को महिला का तबादला चंबा से शिमला के लिए किया गया. महिला की नौकरी पशुपालन विभाग में है.

महिला कर्मचारी ने चंबा से शिमला के लिए स्थानांतरण आदेश को याचिका के माध्यम से यह कहकर चुनौती दे डाली कि उसका तबादला एक डीओ नोट के आधार पर किया गया है. जब सारा रिकॉर्ड अदालत में पेश किया गया तो ये खुलासा हुआ कि उसने खुद भी डीओ नोट का लाभ लिया है. अदालत में रिकॉर्ड पेश होने पर प्रार्थी की ओर से याचिका को वापस लेने की प्रार्थना की गई, लेकिन न्यायालय ने प्रार्थी के इस तरह के रिकॉर्ड को देखते हुए याचिका को 30,000 रुपये की कॉस्ट के साथ वापस लेने की अनुमति दी. अदालत ने आदेश दिया कि कॉस्ट की 30000 रुपए की रकम में से 15 हजार रुपये निजी तौर पर बनाए गए प्रतिवादी को दिए जाएं. साथ ही 15 हजार रुपये हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन में जमा करवाने के आदेश दिए गए.

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