सिरमौर/नाहन: देवभूमि हिमाचल प्रदेश में गिद्धों का कुनबा बढ़ता जा रहा है. लिहाजा सिरमौर जिले में भी गिद्धों की संख्या बढ़ रही है. हालांकि जिला सिरमौर में कितनी संख्या में गिद्ध हैं, इसका आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं हुआ है, लेकिन नाहन सहित जिले के कई क्षेत्रों में अच्छी खासी संख्या में गिद्ध देखे जा सकते हैं.
बात अगर नाहन की ही करें तो शहर के समीप माता बालासुंदरी गौसदन के आसपास के क्षेत्र में भी प्रतिदिन काफी संख्या में गिद्ध देखे जा सकते हैं. वन विभाग भी स्वयं प्रदेश सहित जिला सिरमौर में भी गिद्धों की संख्या में बढ़ोतरी होने की बात को स्वीकार कर रहा है. लिहाजा जल्द ही वन विभाग जिला में गिद्धों की प्रजातियों का पता लगाने के साथ-साथ इनकी संख्या को लेकर गणना करेगा.
गिद्धों की बढ़ोतरी की बड़ी वजह: दरअसल विभागीय विशेषज्ञों की मानें तो गिद्धों की आबादी में कमी के बारे में जानकारी 90 के दशक के मध्य में काफी चर्चा रही. लिहाजा वर्ष 2004 में इनकी संख्या में गिरावट का कारण डाइक्लोफेनेक दवा को बताया गया. पशुओं के लिए प्रयोग की जाने वाली इस दवा का जहरीला प्रभाव गिद्धों की मौत की वजह बन रहा था.
ऐसे में पशुओं के इलाज में प्रयोग की जाने वाली इस दवा पर वर्ष 2006 में प्रतिबंध लगा दिया गया. इसका प्रयोग मुख्यत: पशुओं में बुखार, सूजन और दर्द की समस्या से निपटने में किया जाता था. यही बड़ी वजह मानी जा रही है कि हिमाचल प्रदेश में भी उक्त दवा के प्रतिबंध के बाद से ही गिद्धों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है.
क्या कहती हैं वन अरण्यपाल?: नाहन वन वृत की अरण्यपाल सरिता भी (Vultures in Himachal Pradesh) मानती हैं कि पिछले कुछ सालों में न केवल हिमाचल बल्कि जिला सिरमौर में भी गिद्धों की संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. इसका बड़ा कारण पशुओं को दी जाने वाली डाइक्लोफेनेक दवा पर प्रतिबंध लगाना है.
उन्होंने बताया कि जल्द ही आने वाले दिनों में जिले में वन विभाग गिद्दों की कितनी प्रजातियां है और इनकी संख्या को लेकर गणना करने का कार्य करेगा. उन्होंने कहा कि गिद्धों की संख्या बढ़ना पर्यावरण के लिए अच्छे संकेत है, क्योंकि गिद्ध सफाई कर्मी के रूप में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और मृत पशुओं व पक्षियों को यह कंज्यूम कर लेते है. इस तरह से गिद्ध कई बीमारियों से भी बचाते हैं.
पशुपालन विभाग ने भी बताई यह वजह: दूसरी तरफ जिला का पशुपालन विभाग भी मानता है कि जिले में गिद्धों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जोकि पर्यावरण के लिए बहुत ही उपयोगी है. पशुपालन विभाग की उपनिदेशक डॉ. नीरू शबनम ने भी बताया कि कुछ सालों पहले तक पशुओं के लिए डाइक्लोफेनेक (Diclofenac) दवा का प्रयोग जाता था, लेकिन 2006 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. गिद्धों की संख्या में हो रही बढ़ोतरी में यही एक बड़ा कारण हो सकता है, जोकि पर्यावरण के लिए बहुत अच्छे संकेत है.
पर्यावरण के लिए क्यों अहम हैं गिद्ध?: दरअसल पर्यावरण को (vultures increased in himachal) बनाए रखने में गिद्ध अहम माने जाते हैं, क्योंकि गिद्धों का भोजन मृत पशु होते हैं. गिद्ध मृत पशुओं की देह चट कर जाते हैं. लिहाजा इससे पर्यावरण में संतुलन बना रहता है. ऐसे में पर्यावरण संरक्षण के लिए गिद्धों की पर्याप्त संख्या होना बेहद अहम माना जाता है.
कुल मिलाकर हिमाचल प्रदेश में गिद्धों की सही संख्या का आकलन (vulture counting himachal) नहीं हो पाया है, लेकिन उम्मीद जताई जा रही है कि यह संख्या पहले से कहीं अधिक हुई है. पिछले वर्ष की बात करें तो कांगड़ा जिले में 400 से अधिक गिद्दों के घोंसलों की गणना की गई थी. इसके अलावा गिद्धों के बच्चों की संख्या की गणना भी की जाती है. इनकी संख्या में भी उत्साहवर्धक वृद्धि पाई गई थी.
बता दें कि पहले दक्षिण एशिया में चार करोड़ गिद्ध थे, जो महज चालीस हजार रह गए थे. दस साल पहले शुरू हुए प्रोजेक्ट में कांगड़ा जिले को चुना गया था. उस समय जिले में गिद्धों के महज 26 घोंसले थे और उनमें 23 चूजे मौजूद थे. प्रति घोंसला एक जोड़ा गिद्ध के हिसाब से ये संख्या 75 थी, लेकिन अब कांगड़ा जिले में ही गिद्धों की 44 से अधिक कालोनियां हैं. इनमें इस समय 400 से अधिक घोंसले हैं.
कांगड़ा जिले के ज्वाली स्थित गुगलाडा और नगरोटा सूरियां (wildlife wing Himachal Pradesh) के सुगलाडा में वन्य प्राणी विंग ने दो विशेष गिद्ध भोजन केंद्र भी स्थापित किए हैं. स्थानीय चर्मकारों की मदद से इन केंद्रों में गिद्धों को मृत पशुओं का भोजन उपलब्ध करवाया जाता है. विंग इसके बाद चार और भोजन केंद्र स्थापित करेगा.
बता दें कि कांगड़ा जिले में किए गए सर्वे में वाइल्ड लाइफ को 2018 में 387 व्हाइट रंप्ड वल्चर के घोंसले मिले. इन घोंसलों में 359 बच्चे थे. वर्ष 2017-18 में गिद्धों के घोंसलों की संख्या 356 थी और इनमें 313 बच्चे मिले थे. वर्ष 2016-17 के सर्वे में गिद्धों के 337 घोंसले मिले और इनमें 294 नवजात पक्षी पाए गए. वर्ष 2015-16 में 307 घोंसले मिले और बच्चों की संख्या 280 थी. वर्ष 2014-15 में घोंसलों की संख्या 288 और बच्चों की संख्या 269 थी.
गिद्धों के सर्वे के दौरान टीम को इजीप्शन (मिस्र का गिद्ध भी मिला). यह गिद्ध भी पर्यावरण को सुरक्षित रखने में अपनी अहम भूमिका अदा करता है. पूरी तरह से मांसाहारी गिद्ध मृत जीवों को अपना भोजना बनाता है. इस तरह से पर्यावरण को दूषित होने से बचाने में इसका भी अहम रोल मिलता है. कांगड़ा जिले में सर्वे के दौरान इसकी प्रजाति भी मिली है.
ये भी पढ़ें- धामी को हां और धूमल को ना, हार और जनादेश भाजपा के निर्णय का आधार?
ये भी पढ़ें- Vultures in Himachal Pradesh: हिमाचल में सफल हो रहा गिद्ध बचाओ अभियान, सैटेलाइट टैगिंग से हो रही स्टडी