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हिमाचल की इस बेटी ने ऊंचा किया देश का नाम, नेपाल में पैरा कबड्डी में बनी गोल्डन गर्ल

नेपाल में सम्पन्न हुए एशियन पैरा कबड्डी मैच में गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय टीम में हिमाचल की भी बेटी शामिल थी. मंडी के करसोग में गरीब परिवार में जन्मी शशि ठाकुर ने अपने प्रदेश के साथ ही अपने देश का नाम भी ऊंचा किया है.

Shashi Thakur
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Published : Aug 29, 2019, 2:05 PM IST

मंडी: करसोग की एक बेटी ने देश का नाम गर्व से ऊंचा किया है. नेपाल में हाल ही में सम्पन्न हुए एशियन पैरा कबड्डी मैच में भारतीय टीम ने गोल्ड मेडल जीत कर देश का गौरव बढ़ाया है. बता दें कि इस टीम की एक सदस्य करसोग के मतेहल शिरगल की लड़की शशि ठाकुर भी शामिल हैं.

बता दें कि करसोग के मतेहल शिरगल में गरीब परिवार में पैदा हुई शशि ठाकुर ने ना तो अपने शरीर को बाधा बनने दिया और ना ही व्यवस्थाएं की बेड़ियां उसको गोल्डन गर्ल बनने से रोक पाई. नेपाल से बुधवार को इतिहास रचकर वापस लौटी शशि ठाकुर ने सफलता की ऐसी गाथा लिख दी है जो हर लड़की के लिए प्रेरणादायक है.

Shashi Thakur
सम्मान प्राप्त करते हुए शशि ठाकुर

बता दें कि गरीब किसान दौलतराम के घर पैदा हुई इस बेटी का जीवन शुरू से ही संघर्ष पूर्ण रहा है. बता दें कि पैदा होने के वक्त से ही पांव से अक्षम शशि ठाकुर ने अपने मजबूत इरादों से सफलता की नई कहानी रचने का सपना देख लिया था. नेशनल स्तर पर पैरा बैडमिंटन की प्रतियोगिता के दौरान शशि ठाकुर की मुलाकात नेशनल कबड्डी टीम के वाइस प्रेसिडेंट रणजीत गोयल से हुई. बता दें कि शशि की खेल के प्रति लगन को देखते उन्होंने शशि ठाकुर का नाम इंडियन कबड्डी टीम के लिए आगे बढ़ाया था.

वीडियो

शशि को 23 हजार की एंट्री फीस जुटाने में भी दिक्कत हुई. शशि ठाकुर ने जीत के बाद कहा कि इस दौरान सरकार से भी कोई वित्तीय मदद नहीं मिली. उन्होंने कहा कि पिता सहित दोस्तों ने एंट्री फीस के लिए पैसे एकत्रित किए जिसके बाद उसका चयन हो गया. उन्होंने कहा कि गांव में एक लड़की को घर से निकलना बहुत कठिन होता है. इसके लिए उसने अपने पिता को राजी किया और उनके सहयोग से वह ये मुकाम हासिल कर पाई है.

मंडी: करसोग की एक बेटी ने देश का नाम गर्व से ऊंचा किया है. नेपाल में हाल ही में सम्पन्न हुए एशियन पैरा कबड्डी मैच में भारतीय टीम ने गोल्ड मेडल जीत कर देश का गौरव बढ़ाया है. बता दें कि इस टीम की एक सदस्य करसोग के मतेहल शिरगल की लड़की शशि ठाकुर भी शामिल हैं.

बता दें कि करसोग के मतेहल शिरगल में गरीब परिवार में पैदा हुई शशि ठाकुर ने ना तो अपने शरीर को बाधा बनने दिया और ना ही व्यवस्थाएं की बेड़ियां उसको गोल्डन गर्ल बनने से रोक पाई. नेपाल से बुधवार को इतिहास रचकर वापस लौटी शशि ठाकुर ने सफलता की ऐसी गाथा लिख दी है जो हर लड़की के लिए प्रेरणादायक है.

Shashi Thakur
सम्मान प्राप्त करते हुए शशि ठाकुर

बता दें कि गरीब किसान दौलतराम के घर पैदा हुई इस बेटी का जीवन शुरू से ही संघर्ष पूर्ण रहा है. बता दें कि पैदा होने के वक्त से ही पांव से अक्षम शशि ठाकुर ने अपने मजबूत इरादों से सफलता की नई कहानी रचने का सपना देख लिया था. नेशनल स्तर पर पैरा बैडमिंटन की प्रतियोगिता के दौरान शशि ठाकुर की मुलाकात नेशनल कबड्डी टीम के वाइस प्रेसिडेंट रणजीत गोयल से हुई. बता दें कि शशि की खेल के प्रति लगन को देखते उन्होंने शशि ठाकुर का नाम इंडियन कबड्डी टीम के लिए आगे बढ़ाया था.

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शशि को 23 हजार की एंट्री फीस जुटाने में भी दिक्कत हुई. शशि ठाकुर ने जीत के बाद कहा कि इस दौरान सरकार से भी कोई वित्तीय मदद नहीं मिली. उन्होंने कहा कि पिता सहित दोस्तों ने एंट्री फीस के लिए पैसे एकत्रित किए जिसके बाद उसका चयन हो गया. उन्होंने कहा कि गांव में एक लड़की को घर से निकलना बहुत कठिन होता है. इसके लिए उसने अपने पिता को राजी किया और उनके सहयोग से वह ये मुकाम हासिल कर पाई है.

Intro:हिमाचल के एकमात्र सदस्य रही करसोग की एक बेटी ने देश का माथा गर्व से ऊंचा किया है। करसोग के मतेहल शिरगल में गरीब परिवार में पैदा हुई शशि ठाकुर का न तो शरीर की बाधा रास्ता रोक पाई और न ही व्यवस्था की बेड़ियां इसके पांव में जंजीर डाल सकी। साधनहीन होने के बावजूद खेल जगत की इस गोल्डन गर्ल का नाम स्वर्ण अक्षरों में जुड़ गया है।Body:करसोग की इस बेटी ने ऊंचा किया देश का माथा, नेपाल में पैरा कबड्डी में बनी गोल्डन गर्ल
करसोग
नेपाल में हाल ही में सम्पन्न हुए एशियन पैरा कबड्डी मैच में भारतीय टीम ने गोल्ड मेडल जीत कर देश का गौरव बढ़ाया है। इस टीम में हिमाचल के एकमात्र सदस्य रही करसोग की एक बेटी ने देश का माथा गर्व से ऊंचा किया है। करसोग के मतेहल शिरगल में गरीब परिवार में पैदा हुई शशि ठाकुर का न तो शरीर की बाधा रास्ता रोक पाई और न ही व्यवस्था की बेड़ियां इसके पांव में जंजीर डाल सकी। साधनहीन होने के बावजूद खेल जगत की इस गोल्डन गर्ल का नाम स्वर्ण अक्षरों में जुड़ गया है। नेपाल से बुधवार को इतिहास रचकर वापिस लौटी शशि ठाकुर ने सफलता की ऐसी गाथा लिख दी है, जो यहां की बेटियों के लिए भी एक प्रेरणादायक है। गरीब किसान दौलतराम के घर पैदा हुई इस बेटी का जीवन शुरू से ही संघर्ष पूर्ण रहा। वित्तीय हालातों सहित शारीरिक कमी शशि ठाकुर के ऊंचे सपनों की उड़ान के बीच में हमेशा चुनौतियां का पहाड़ बनकर खड़ी रही। लेकिन जैसे चट्टानों में उगे रंग बिरंगे फूल हर हाल में जीवन जीने का संदेश देते हैं, उसी तरह से पहाड़ की इस बेटी के अपने पहाड़ जैसे संकल्प से रास्ते में आई सभी तरह की बाधाओं से पार पाकर सफलता की नई इबारत लिख दी है। अब शशि ठाकुर का लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पैरा बैडमिंटन में गोल्ड मेडल हासिल करने का है।

संघर्ष के दिनों में सरकार भी नहीं मिली कोई मदद:
परिवार की वित्तीय हालत सही न होने के कारण गोल्डन गर्ल ने विपरीत परिस्थितियों से कभी हार नहीं मानी। पैदाइश के वक्त से ही पांव से अक्षम शशि ठाकुर ने अपने मजबूत इरादों से सफलता की नई कहानी रचने का सपना देख लिया था। समय बीतने के साथ शशि ठाकुर का सधर्ष भी जारी रहा। आखिर में नेशनल स्तर पर पैरा बैडमिंटन की प्रतियोगिता के दौरान शशि ठाकुर के सपने का सच होने का वक्त आ गया। यहां शशि ठाकुर की मुलाकात नेशनल कबड्डी टीम के वाइस प्रेजिडेंट रणजीत गोयल से हुई। खेल के प्रति लगन को देखते उन्होंने शशि ठाकुर का नाम इंडियन कबड्डी टीम के लिए रिकमेंड किया। जीवन में देखे गए इस सपने के पूरा होने की खुशी के साथ साथ शशि के सामने 23 हजार की एंट्री फीस जुटाने की भी चुनौती थी। शशि ठाकुर कहती है इस दौरान सरकार से भी कोई वित्तीय मदद नहीं मिली। उन्होंने कहा कि जीवन के इस संघर्ष के दौर में पिता सहित दोस्तों ने एंट्री फीस के लिए पैसे एकत्रित किए। ऐसे में उनका टीम में सलेक्शन हो गया। उन्होंने कहा कि ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी एक लड़की के लिए घर को चौखट पर करना आसान काम नहीं है, लेकिन उन्होंने इस दौरान अपने विश्वास को कमजोर नहीं पड़ने दिया। इसके लिए किसी तरह से परिवार को राजी किया और आज इस सहयोग की वजह से इतने बड़े मुकाम को हासिल कर पाई है।Conclusion:शशि ठाकुर कहती है इस दौरान सरकार से भी कोई वित्तीय मदद नहीं मिली। उन्होंने कहा कि जीवन के इस संघर्ष के दौर में पिता सहित दोस्तों ने एंट्री फीस के लिए पैसे एकत्रित किए। ऐसे में उनका टीम में सलेक्शन हो गया। उन्होंने कहा कि ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी एक लड़की के लिए घर को चौखट पर करना आसान काम नहीं है, लेकिन उन्होंने इस दौरान अपने विश्वास को कमजोर नहीं पड़ने दिया। इसके लिए किसी तरह से परिवार को राजी किया और आज इस सहयोग की वजह से इतने बड़े मुकाम को हासिल कर पाई है।
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