कुल्लू: शारदीय नवरात्र का आज आठवां दिन है. जिसे अष्टमी के रूप मे भी जाना जाता है. नवरात्र के आठवें दिन भगवती के महागौरी रूप की पूजा की जाती है. माता महागौरी की पूजा से आरोग्य की प्राप्ति होती है. सारे कष्ट दूर होते हैं. देवीभागवत पुराण के अनुसार, मां के 9 रूप और 10 महाविद्याएं सभी आदिशक्ति के अंश और स्वरूप हैं ,लेकिन भगवान शिव के साथ उनकी अर्धांगिनी के रूप में महागौरी सदैव विराजमान रहती हैं. इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है. नवरात्र की अष्टमी तिथि को विशेष महत्व रखती है, क्योंकि कई लोग इस दिन कन्या पूजन कर अपना व्रत खोलते हैं.(MAA MAHAGAURI POOJA)
इसलिए पड़ा महागौरी नाम: आचार्य दीप कुमार ने बताया देवीभागवत पुराण के अनुसार, देवी पार्वती का जन्म राजा हिमालय के घर हुआ था.देवी पार्वती को मात्र 8 वर्ष की उम्र में अपने पूर्वजन्म की घटनाओं का आभास हो गया और तब से ही उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या शुरू कर दी थी. अपनी तपस्या के दौरान माता केवल कंदमूल फल और पत्तों का आहार करती थीं. बाद में माता ने केवल वायु पीकर तप करना आरंभ कर दिया. तपस्या से देवी पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ था.इसलिए उनका नाम महागौरी पड़ा. इस दिन दुर्गा सप्तशती के मध्यम चरित्र का पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है.(eight day maa mahagauri)
माता की तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न: माता की तपस्या की प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे गंगा स्नान करने के लिए कहा. जिस समय मां पार्वती स्नान करने गईं तब देवी का एक स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुईं, जो कौशिकी कहलाई और एक स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ, जो महागौरी कहलाई. गौरी रूप में माता अपने हर भक्त का कल्याण करती हैं और उनको समस्याओं से मुक्त करती हैं. जो व्यक्ति किन्हीं कारणों से 9 दिन तक उपवास नहीं रख पाते हैं, उनके लिए नवरात्र में प्रतिपदा और अष्टमी तिथि को व्रत रखने का विधान है. इससे 9 दिन व्रत रखने के समान फल मिलता है.
मां के वस्त्र व आभूषण सफेद: देवीभागवत पुराण के अनुसार, महागौरी वर्ण पूर्ण रूप से गौर अर्थात सफेद हैं और इनके वस्त्र व आभूषण भी सफेद रंग के हैं. मां का वाहन वृषभ अर्थात बैल है. मां के दाहिना हाथ अभयमुद्रा में और नीचे वाला हाथ में दुर्गा शक्ति का प्रतीक त्रिशुल है. महागौरी के बाएं हाथ के ऊपर वाले हाथ में शिव का प्रतीक डमरू है. डमरू धारण करने के कारण इन्हें शिवा भी कहा जाता है. मां के नीचे वाला हाथ अपने भक्तों को अभय देता हुआ वरमुद्रा में है. माता का यह रूप शांत मुद्रा में ही दृष्टिगत है. इनकी पूजा करने से सभी पापों का नष्ट होता है.(navratri ashtam)
अष्टमी को नारियल का भोग: देवीभागवत पुराण के अनुसार, नवरात्र की अष्टमी तिथि को मां को नारियल का भोग लगाने की पंरपरा है. भोग लगाने के बाद नारियल को या तो ब्राह्मण को दे दें या फिर प्रसाद रूप में वितरण कर दें. भक्त अष्टमी के दिन कन्या पूजन करते हैं और इसी दिन हलवा-पूड़ी, सब्जी और काले चने का प्रसाद विशेष रूप से बनाया जाता है. महागौरी को गायन और संगती अतिप्रिय है. भक्तों को पूजा करते समय गुलाबी रंग के वस्त्र पहनना चाहिए. गुलाबी रंग प्रेम का प्रतीक है. एक परिवार को प्रेम के धागों से ही गूथकर रखा जा सकता हैं, इसलिए नवरात्र की अष्टमी को गुलाबी रंग पहनना शुभ माना जाता है.(Shardiya Navratri 2022)
मां की आराधना से असंभव कार्य भी संभव: भक्त इस दिन कन्या पूजन करते हैं और इस दिन माता को हलवा व चना के प्रसाद का भोग लगाना चाहिए. इस दिन कन्याओं को घर पर बुलाकर उनके पैरों को धुलाकर मंत्र द्वारा पंचोपचार पूजन करना चाहिए. रोली-तिलक लगाकर और कलावा बांधकर सभी कन्याओं को हलाव, पूरी, सब्जी और चने का प्रसाद परोसना चाहिए. इसके बाद उनसे आशीर्वाद लें और समार्थ्यनुसार कोई भेंट व दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए. ऐसा करने से भक्त की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. मां का यह रूप मोक्षदायी है और इसलिए इनकी आराधना करने से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं.(Shardiya Navratri Day 8 Pooja)
महागौरी मंत्र: श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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