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देश-विदेश के सैलानियों की पहली पसंद बन रहे कुल्लू के MUD HOUSE, पर्यावरण संरक्षण को मिल रहा बढ़ावा - देश-विदेश में पर्यटन के लिए मशहूर जिला कुल्लू

देश-विदेश में पर्यटन के लिए मशहूर जिला कुल्लू में भी अब लोग मिट्टी की उपयोगिता को समझने लगे हैं. आज के दौर में पर्यटक भी आधुनिक भवनों को छोड़कर मिट्टी के पुराने मकानों में रहने की इच्छा रखते हैं. जिला कुल्लू के उपमंडल बंजार की अगर बात करें, तो अब जीभी व तीर्थन घाटी में मड हाउस यानी की मिट्टी के भवनों का निर्माण करने में जुटे हुए हैं. इन मिट्टी के घरों से जहां पर्यावरण का सरंक्षण हो रहा है, वहीं पर्यटकों की आवाजाही से आर्थिक रूप से भी स्थानीय पर्यटन व्यवसायियों को लाभ मिल रहा है.

मिट्टी के घर
मिट्टी के घर
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Published : Oct 22, 2021, 5:37 PM IST

Updated : Jan 4, 2022, 3:11 PM IST

कुल्लू: भारत में जब से लोगों ने आधुनिकता के अंधाधुंध प्रयोगों में अपनी जड़ों को छोड़ा तो मिट्टी से नाता टूटना स्वाभाविक था. अब, जबकि हालात की आंधी ने जड़ों से बिछड़ने की सजा दी तो एक बार फिर से लोगों को मिट्टी की कीमत समझ में आ गई है. इसीलिए तो अब नए आर्किटेक्ट मिट्टी के घर, मिट्टी के साधन और मिट्टी की खुशबू से संवरती जीवनशैली पर काम कर रहे हैं. केवल देश ही नहीं, विदेश में भी मिट्टी की उपयोगिता पर काम हो रहा है.

देश-विदेश में पर्यटन के लिए मशहूर जिला कुल्लू में भी अब लोग मिट्टी की उपयोगिता को समझने लगे हैं. आज के दौर में पर्यटक भी आधुनिक भवनों को छोड़कर मिट्टी के पुराने मकानों में रहने की इच्छा रखते हैं. जिला कुल्लू के उपमंडल बंजार की अगर बात करें, तो अब जीभी व तीर्थन घाटी में मड हाउस यानी की मिट्टी के भवनों का निर्माण करने में जुटे हुए हैं. इन मिट्टी के घरों से जहां पर्यावरण का संरक्षण हो रहा है, वहीं पर्यटकों की आवाजाही से आर्थिक रूप से भी स्थानीय पर्यटन व्यवसायियों को लाभ मिल रहा है.

वीडियो

अब देश में भावी आर्किटेक्ट इस दिशा में काम कर रहे हैं. भारत के अलावा अब यूके जैसे कुछ देशों में मिट्टी के घर बनने लगे हैं. इसके अलावा कई देश मिट्टी से बनी सामग्री का उपयोग कर रहे हैं. मिट्टी के घरों के फायदे यह भी हैं कि इस तरह के घरों में शीतलता रहती है और कृत्रिम कूलिंग और एसी की जरूरत बहुत कम हो सकती है.

सैलानियों की पहली पसंद मिट्टी के घर

जिला कुल्लू में मनाली सहित तीर्थन, जिभी घाटी में आने वाले पर्यटक भी मिट्टी से बने होम स्टे में ही ठहर रहे हैं. इस मिट्टी के घरों में जहां पर्यटकों को होटल के मुकाबले कम किराया देना पड़ रहा है, वहीं ग्रामीण परिवेश में बना हुआ सादा खाना भी परोसा जा रहा है. इसके साथ ही शहरों से दूर इन मिट्टी के घरों में पर्यटकों को सुकून भी मिल रहा है. शहर की भीड़भाड़ से दूर ग्रामीण क्षेत्रों के इन मिट्टी के बने होम स्टे में पर्यटकों को रहने के लिए कमरे के अलावा सुबह का नाश्ता, दोपहर व रात का खाना उपलब्ध करवाया जाता है. पर्यटकों को परोसा जाने वाला यह खाना सादा रहता है. इन होम स्टे में कई पर्यटक दो सप्ताह तक डेरा लगाए रहते हैं. इतने दिनों के लिए उनको होटल में भारी भरकम राशि अदा करनी पड़ती है.

जिले में करीब 200 से अधिक होम स्टे हैं. जिनमें 80 प्रतिशत मिट्टी से बने हुए हैं. जिला कुल्लू में अगर पर्यटन गतिविधियों की बात करें तो अब बंजार व तीर्थन वैली में सैलानियों की चहलकदमी बढ़ गई है. ऐसे में कोरोना महामारी की वजह से बंद पड़े होटल, गेस्ट हाउस, होम स्टे सहित पर्यटन यूनिट से जुड़े कारोबारियों के चेहरे खिल गए हैं. पर्यटन कारोबारियों की मानें तो अब रोजगार फिर से शुरू हो गया है. हालांकि पहले की स्थिति आने में समय लगेगा, लेकिन होटलों सहित गेस्ट हाउसों में 70 फीसद ऑक्यूपेंसी बढ़ना राहत देने वाला है.

जीभी घाटी में पर्यटन कारोबार कर रहे रोहित राणा, भूपेंद्र चौहान का कहना है कि बंजार इलाके में 90 प्रतिशत घर मिट्टी से बने हुए हैं. अब पर्यटक भी मिट्टी से बने घरों में रहना पसंद कर रहे हैं. इलाके में कई भवन नए तरीके से भी बनाए गए हैं, लेकिन पर्यटक बाहरी चकाचौंध से परेशान हो गए हैं और अब वे मिट्टी के पुराने घरों में ही सुकून के पल बिताना चाहते हैं. इसके लिए कई बार स्थानीय लोगों के घरों में भी रह रहे हैं. जो यहां के ग्रामीण पर्यटन के लिए राहत की बात है.

कैसे बनते हैं मिट्टी के घर

भारत में पहले के समय में पूर्वज मिट्टी के ही मकान बनाते थे. आज के समय में गांवों में कहीं-कहीं मिट्टी की छोटी सी छोटी और बड़ी भी मकान देखने को मिलते हैं. ऐसी मिट्टी की घर देख कर लगता है कि शायद आज के समय में वैसा घर बना पाना संभव नहीं है. पुराने समय में जमींदारों के बड़े-बड़े घर मिट्टी के ही होते थे. पहले लोग मिट्टी के ही मकान बनाते थे, इसका यह मतलब नहीं है कि कम पैसों के लागत के चलते लोग मिट्टी का मकान बनाते थे. मिट्टी सस्ती तो जरूर होती है, लेकिन मिट्टी के मकान बनाने के पीछे के कुछ कारण भी हैं. इसमें हमें शुद्ध हवा मिलती है. यहां तक की मिट्टी के मकान में अंदर का तापमान सामान्य होता है. मिट्टी के मकान पर्यावरण को लाभ पहुंचाते हैं. मिट्टी के घरों को टिकाऊ, कम लागत और सबसे महत्वपूर्ण, बायोडिग्रेडेबल होने के लिए जाना जाता है. भारत में 118 मिलियन घरों में से 65 मिलियन मिट्टी के घर हैं.

मिट्टी की ईंट यदि स्थिर हो जाती है, तो दीवारों और फर्शों के लिए एक ठोस और टिकाऊ निर्माण सामग्री साबित हो सकती है. यह भूकंप या बाढ़ के दौरान भी दीवारों में दरारें पड़े बिना जस का तस रहता है. वहीं, मिट्टी की दीवारों से बने घरों में मौसम की परवाह किए बिना तापमान सही होता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मिट्टी की दीवारें प्राकृतिक रूप से इंसुलेटेड होती हैं. जिससे घर के अंदर आराम मिलता है. भीषण गर्मियों के दौरान अंदर का तापमान कम होता है. जबकि सर्दियों में मिट्टी की दीवारें अपनी गर्मी से आपको सुकून देती हैं. इसके अलावा मिट्टी की दीवार के छिद्र से भी ठंडी हवा घर में प्रवेश करती है.

ये भी पढ़ें: एडीबी और वर्ल्ड बैंक के सहारे हो रही हिमाचल की नैया पार, धन के संग दखल भी आता है साथ

कुल्लू: भारत में जब से लोगों ने आधुनिकता के अंधाधुंध प्रयोगों में अपनी जड़ों को छोड़ा तो मिट्टी से नाता टूटना स्वाभाविक था. अब, जबकि हालात की आंधी ने जड़ों से बिछड़ने की सजा दी तो एक बार फिर से लोगों को मिट्टी की कीमत समझ में आ गई है. इसीलिए तो अब नए आर्किटेक्ट मिट्टी के घर, मिट्टी के साधन और मिट्टी की खुशबू से संवरती जीवनशैली पर काम कर रहे हैं. केवल देश ही नहीं, विदेश में भी मिट्टी की उपयोगिता पर काम हो रहा है.

देश-विदेश में पर्यटन के लिए मशहूर जिला कुल्लू में भी अब लोग मिट्टी की उपयोगिता को समझने लगे हैं. आज के दौर में पर्यटक भी आधुनिक भवनों को छोड़कर मिट्टी के पुराने मकानों में रहने की इच्छा रखते हैं. जिला कुल्लू के उपमंडल बंजार की अगर बात करें, तो अब जीभी व तीर्थन घाटी में मड हाउस यानी की मिट्टी के भवनों का निर्माण करने में जुटे हुए हैं. इन मिट्टी के घरों से जहां पर्यावरण का संरक्षण हो रहा है, वहीं पर्यटकों की आवाजाही से आर्थिक रूप से भी स्थानीय पर्यटन व्यवसायियों को लाभ मिल रहा है.

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अब देश में भावी आर्किटेक्ट इस दिशा में काम कर रहे हैं. भारत के अलावा अब यूके जैसे कुछ देशों में मिट्टी के घर बनने लगे हैं. इसके अलावा कई देश मिट्टी से बनी सामग्री का उपयोग कर रहे हैं. मिट्टी के घरों के फायदे यह भी हैं कि इस तरह के घरों में शीतलता रहती है और कृत्रिम कूलिंग और एसी की जरूरत बहुत कम हो सकती है.

सैलानियों की पहली पसंद मिट्टी के घर

जिला कुल्लू में मनाली सहित तीर्थन, जिभी घाटी में आने वाले पर्यटक भी मिट्टी से बने होम स्टे में ही ठहर रहे हैं. इस मिट्टी के घरों में जहां पर्यटकों को होटल के मुकाबले कम किराया देना पड़ रहा है, वहीं ग्रामीण परिवेश में बना हुआ सादा खाना भी परोसा जा रहा है. इसके साथ ही शहरों से दूर इन मिट्टी के घरों में पर्यटकों को सुकून भी मिल रहा है. शहर की भीड़भाड़ से दूर ग्रामीण क्षेत्रों के इन मिट्टी के बने होम स्टे में पर्यटकों को रहने के लिए कमरे के अलावा सुबह का नाश्ता, दोपहर व रात का खाना उपलब्ध करवाया जाता है. पर्यटकों को परोसा जाने वाला यह खाना सादा रहता है. इन होम स्टे में कई पर्यटक दो सप्ताह तक डेरा लगाए रहते हैं. इतने दिनों के लिए उनको होटल में भारी भरकम राशि अदा करनी पड़ती है.

जिले में करीब 200 से अधिक होम स्टे हैं. जिनमें 80 प्रतिशत मिट्टी से बने हुए हैं. जिला कुल्लू में अगर पर्यटन गतिविधियों की बात करें तो अब बंजार व तीर्थन वैली में सैलानियों की चहलकदमी बढ़ गई है. ऐसे में कोरोना महामारी की वजह से बंद पड़े होटल, गेस्ट हाउस, होम स्टे सहित पर्यटन यूनिट से जुड़े कारोबारियों के चेहरे खिल गए हैं. पर्यटन कारोबारियों की मानें तो अब रोजगार फिर से शुरू हो गया है. हालांकि पहले की स्थिति आने में समय लगेगा, लेकिन होटलों सहित गेस्ट हाउसों में 70 फीसद ऑक्यूपेंसी बढ़ना राहत देने वाला है.

जीभी घाटी में पर्यटन कारोबार कर रहे रोहित राणा, भूपेंद्र चौहान का कहना है कि बंजार इलाके में 90 प्रतिशत घर मिट्टी से बने हुए हैं. अब पर्यटक भी मिट्टी से बने घरों में रहना पसंद कर रहे हैं. इलाके में कई भवन नए तरीके से भी बनाए गए हैं, लेकिन पर्यटक बाहरी चकाचौंध से परेशान हो गए हैं और अब वे मिट्टी के पुराने घरों में ही सुकून के पल बिताना चाहते हैं. इसके लिए कई बार स्थानीय लोगों के घरों में भी रह रहे हैं. जो यहां के ग्रामीण पर्यटन के लिए राहत की बात है.

कैसे बनते हैं मिट्टी के घर

भारत में पहले के समय में पूर्वज मिट्टी के ही मकान बनाते थे. आज के समय में गांवों में कहीं-कहीं मिट्टी की छोटी सी छोटी और बड़ी भी मकान देखने को मिलते हैं. ऐसी मिट्टी की घर देख कर लगता है कि शायद आज के समय में वैसा घर बना पाना संभव नहीं है. पुराने समय में जमींदारों के बड़े-बड़े घर मिट्टी के ही होते थे. पहले लोग मिट्टी के ही मकान बनाते थे, इसका यह मतलब नहीं है कि कम पैसों के लागत के चलते लोग मिट्टी का मकान बनाते थे. मिट्टी सस्ती तो जरूर होती है, लेकिन मिट्टी के मकान बनाने के पीछे के कुछ कारण भी हैं. इसमें हमें शुद्ध हवा मिलती है. यहां तक की मिट्टी के मकान में अंदर का तापमान सामान्य होता है. मिट्टी के मकान पर्यावरण को लाभ पहुंचाते हैं. मिट्टी के घरों को टिकाऊ, कम लागत और सबसे महत्वपूर्ण, बायोडिग्रेडेबल होने के लिए जाना जाता है. भारत में 118 मिलियन घरों में से 65 मिलियन मिट्टी के घर हैं.

मिट्टी की ईंट यदि स्थिर हो जाती है, तो दीवारों और फर्शों के लिए एक ठोस और टिकाऊ निर्माण सामग्री साबित हो सकती है. यह भूकंप या बाढ़ के दौरान भी दीवारों में दरारें पड़े बिना जस का तस रहता है. वहीं, मिट्टी की दीवारों से बने घरों में मौसम की परवाह किए बिना तापमान सही होता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मिट्टी की दीवारें प्राकृतिक रूप से इंसुलेटेड होती हैं. जिससे घर के अंदर आराम मिलता है. भीषण गर्मियों के दौरान अंदर का तापमान कम होता है. जबकि सर्दियों में मिट्टी की दीवारें अपनी गर्मी से आपको सुकून देती हैं. इसके अलावा मिट्टी की दीवार के छिद्र से भी ठंडी हवा घर में प्रवेश करती है.

ये भी पढ़ें: एडीबी और वर्ल्ड बैंक के सहारे हो रही हिमाचल की नैया पार, धन के संग दखल भी आता है साथ

Last Updated : Jan 4, 2022, 3:11 PM IST
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