कांगड़ा: हिमाचल सिर्फ देव भूमि ही (Dev bhoomi Himachal) नहीं बल्कि, भगवान शिव शंकर का ससुराल भी है. भगवान शिव को समर्पित बैजनाथ मंदिर (Kangra Baijnath Temple) पालमपुर शहर से 16 किलोमीटर दूर स्थित है. कई प्राकृतिक आपदाओं, आक्रमणों और बदलावों को देख चुका यह मंदिर आज भी अपने मूल रुप में बना हुआ है.
शिवलिंग का इतिहास : मान्यता है कि चारों वेदों के ज्ञाता रावण ने यहां तपस्या की थी, इसके चलते बैजनाथ को वैद्यनाथ के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि मंदिर से कुछ दूरी पर पपरोला जाने वाले पैदल रास्ते पर रावण का मंदिर और पैरों के निशान है. मंदिर के गर्भ गृह में स्थित शिवलिंग का इतिहास रावण के तप से जोड़ा जाता है. ऐसा माना जाता है कि यह वही शिवलिंग है, जिसे रावण तप कर लंका ले जा रहा था, लेकिन इस जगह लघुशंका के दौरान रावण ने इस शिवलिंग को एक चरवाहे को पकड़ा दिया. काफी समय तक रावण के न लौटने पर चरवाहे ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और यह शिवलिंग यहीं स्थापित हो गया. ऐसा भी कहा जाता है कि कैलाश पर्वत से इस शिवलिंग को लंका ले जाते हुए रावण से भगवान शिव ने वचन लिया था कि वह रास्ते में इस शिवलिंग को कहीं न रखे अन्यथा शिवलिंग रखने के स्थान पर ही ये स्थापित हो जाएगा.
शिवलिंग का अंत नहीं मिला: लोक मान्यताओं के अनुसार मंडी के किसी राजा ने इस शिवलिंग को अपने साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन काफी खुदाई के बाद भी शिवलिंग का अंत नहीं मिल पाया. खुदाई के दौरान मजदूरों को जमीन के अंदर से निकली मधुमक्खियों ने बुरी तरह घायल कर दिया था. इस घटना के बाद राजा को अपनी गलती का आभास हुआ और राजा ने शिवलिंग के ऊपर मक्खन से भोले बाबा का श्रृंगार किया.
सात दिन तक मक्खन से ढका जाता: तब से इस मंदिर में एक नई परंपरा की शुरुआत हुई. हर साल मकर संक्रांति के पर्व पर पवित्र (Festivals at Baijnath Temple on Makar Sankriti) शिवलिंग को 7 दिन तक कई क्विंटल मक्खन से ढक दिया जाता है.साल 2005 में भी जब प्रचीन जलैहरी को बदलने की कोशिश की गई तब भी इसकी खुदाई में नीचें तक कई जलैहरियां सामने आई थी. इस दौरान कई प्राचीन सिक्के भी निकले थे. उस समय शिवलिंग के नीचे कोई सिक्का गिराने पर भी काफी समय बाद उसकी आवाज आ रही थी.
एक भी सुनार की दुकान नहीं: बैजानाथ के बाजार में एक ही सुनार की दुकान (No goldsmith shops in Baijnath) नहीं है. कहा जाता है कि 70 के दशक में कुछ कारोबारियों ने यहां पर सोने का व्यापार करने की कोशिश की थी, लेकिन कुछ ही समय में उनके साथ बड़ी अनहोनी हो गई. सुनार की दुकान का इस तरह से बंद हो जाने के पीछे भी कई रहस्य हैं, कहा जाता है कि ऐसा इस लिए हुआ क्योंकि यह नगरी शिव भक्त रावण से संबंध रखती है और दशानन रावण सोने की लंका का अधिपति था.
नहीं जलाया जाता रावण का पुतला: दूसरी बात ये है कि यहां बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाने वाले दशहरे पर रावण का पुतला नहीं जलाया (Ravana effigy does not burn in Baijnath) जाता और न ही यहां रामलीला का मंचन किया जाता है. 70 के दशक में बैजनाथ में ऐतिहासिक शिव मंदिर के मैदान में दशहरा मनाने का सिलसिला शुरू हुआ था. यहां रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले बनाने और आयोजन की भूमिका निभाने वाले लोगों के साथ दुर्घटना हुई, जिस पर लोगों ने दशहरा मनाना बंद कर दिया. कहा जाता है कि किसी भी व्यक्ति के बैजनाथ में रावण का पुतला जलाने पर उस व्यक्ति पर कोई विपत्ति आती है या वो काल का ग्रास बन जाता है.
9वीं शताब्दी में हुआ मंदिर का निर्माण: इस मंदिर का निर्माण नौंवी शताब्दी में दो व्यापारियों मयूक और अहूक नाम के दो भाईयों ने करवाया था. मंदिर की कला शैली को देखकर हर कोई हैरान हो जाता है. मंदिर की दीवारों पर अनेकों चित्रों की नक्काशी हुई है. मंदिर के मुख्य कक्ष में दो शिलालेख संस्कृत और टंकी में लिखे गए हैं. कांगड़ा के अंतिम शासक राजा संसार चंद ने भी मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था. 1905 के भूकंप में केवल यही मंदिर ऐसा था जिसे आंशिक रूप से नुकसान हुआ था.
नंदी बैल भी आकर्षण का केंद्र: बैजनाथ शिव मंदिर नौंवी शताब्दी का बना हुआ है. शिखराकार शैली से बने इस मंदिर की शिल्पकला अपने आप में अनूठी है. शिल्पकला को देखते हुए यहां विदेशी पर्यटकों का आना लगा रहता है. यहां एक ही चट्टान को तराश कर बनाया गया इस मंदिर में नंदी बैल भी आकर्षण का केंद्र है. सावन माह के हर सोमवार को बैजनाथ में मेले (Monday Fair at Baijnath Temple) लगते हैं.
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