बिलासपुर: उत्तरी भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल एवं मां श्री नैना देवी के चरणों में गुरुवार को एक श्रद्धालु ने एक किलो सोने का हार अर्पित कर अपनी श्रद्धा की मिसाल पेश की. विख्यात तीर्थस्थल श्री नैना देवी में वैसे तो हर वर्ष श्रद्धालु माता के चरणों में सोना चांदी अर्पित अर्पित करते रहते हैं, लेकिन एक किलो सोने का हार शायद पहली बार ही माता श्री के चरणों में किसी श्रद्धालु ने अर्पित किया होगा.
आज जब श्रद्धालुओं ने माता के चरणों में अपनी हाजिरी दी और कहा कि माता का आशीर्वाद उन पर हमेशा रहा. उन्होंने मां से जो भी मन्नत मांगी, वह पूरी हुई, जिसके बाद उन्होंने आज मां के चरणों में एक किलो सोने का हार अर्पित किया. जिसके बाद पुजारी सचिन कुमार ने हार की विधिवत पूजा करवाई और बाद में हार मंदिर न्यास को समर्पित कर दिया. श्रद्धालु ने अपना नाम गोपनीय रखा है. पुजारी सचिन ने बताया कि हार की पूजा विधिवत करवाई गई और हार मां के चरणों में अर्पित कर मंदिर न्यास को सुपुर्द कर दिया. यह श्रद्धालुओं का अटूट विश्वास है, अटूट श्रद्धा है, जो उन्होंने अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद मां के चरणों में अर्पित की.
बता दें कि मंदिर में श्रद्धालुओं के द्वारा (Naina Devi temple Himachal Pradesh) सोना चांदी नगद पैसा चढ़ाया जाता है इन सभी की गिनती कक्ष में की जाती है. वजन किया जाता है. सीसीटीवी कैमरे के सामने यह सारी प्रक्रिया की जाती है और उसमें मंदिर में सुरक्षाकर्मी भी मौके पर तैनात रहते हैं. फिर ये सोना चांदी मंदिर के खजाने में जमा हो जाता है.
देवी का शक्तिपीठ है ये मंदिर: नैना देवी (History of Naina Devi Temple) मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित है. यह मंदिर मां शक्ति के 51 शक्तिपीठों में से एक है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे. इसलिए इस मंदिर को नैना देवी के नाम से जाना जाता है. मंदिर में पीपल का पेड़ भी आकषर्ण का केन्द्र है, कहा जाता है कि ये पेड़ कई शताब्दियों पुराना है. मंदिर के गर्भगृह में मुख्य तीन मूर्तियां हैं. दाईं तरफ मां काली, मध्य में नैना देवी की और बाईं ओर श्रीगणेश की प्रतिमा है. चैत्र और अश्विन मास की नवरात्रि में यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. माता को भोग के रूप में छप्पन प्रकार की वस्तुओं का भोग लगाया जाता है.
राजा बीरचंद ने कराया था मंदिर का निर्माण: स्थानीय मान्यता के (Secrets of Naina Devi Temple) अनुसारस एक गुर्जर लड़का जिसका नाम नैना राम था. एक दिन उसने देखा कि गाय के थनों से अपने आप दूध निकल कर पत्थर पर गिर रहा है और पत्थर द्वारा पिया जा रहा है. यह क्रिया वो अब रोज देखने लगा. एक रात देवी ने सपने में उसे दर्शन दिए और कहा कि वो सामान्य पत्थर नहीं बल्कि देवी मां की पिंडी है. यह बात नैना राम ने उस समय के राजा बीरचंद को बताई और राजा ने मां नैना देवी का मंदिर का निर्माण करवाया.
यहीं हुआ था महिषासुर का वध: इस मंदिर से जुड़ी एक मान्यता ये भी है कि इसी स्थान पर देवी दुर्गा ने महिषासुर नाम के दैत्य का वध किया था जो परम शक्तिशाली था. उसे वरदान प्राप्त था कि एक अविवाहित स्त्री के द्वारा ही उसका वध संभव है. तब देवताओं ने अपने शक्तियों के अंश से देवी दुर्गा को प्रकट किया और देवी ने महिषासुर का वध किया. यही कारण है कि ये मंदिर महिशापीठ के नाम से भी प्रसिद्ध है.
कैसे पहुंचें?: इस मंदिर से सबसे नजदीजी हवाई अड्डा चंडीगढ़ है. वहां से बस या कार की सुविधा उपलब्ध है. नैना देवी जाने के लिए पर्यटक चंडीगढ और पालमपुर तक रेल सुविधा ले सकते हैं. इसके पश्चात बस, कार व अन्य वाहनों से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. नैनादेवी सड़क मार्ग पूरे देश से जुड़ा हुआ है. दिल्ली और चंडीगढ़ से भी यहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है.
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