हैदराबाद : चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री होंगे. चंडीगढ़ में हुई पंजाब कांग्रेस विधायक विधायक दल की बैठक में चरणजीत सिंह चन्नी को नेता चुना गया है. चन्नी को पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का करीबी माना जाता है. आइए जानते हैं कि कैसा रहा चरणजीत सिंह चन्नी का मुख्यमंत्री बनने तक सफर.
पंजाब कांग्रेस का दलित चेहरा
चरणजीत सिंह चन्नी कांग्रेस का दलित चेहरा हैं और पंजाब की चमकौर साहिब सीट से विधायक हैं. वो विधानसभा में नेता विपक्ष और सरकार में मंत्री की भूमिका भी निभा चुके हैं. चन्नी कांग्रेस पार्टी के युवा चेहरे कहे जा सकते हैं. उनकी उम्र महज 48 वर्ष है. चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब की चमकौर साहिब सीट से कांग्रेस के विधायक हैं. 2012 के चुनावों में वे अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 3659 वोटों के अंतर से हराकर निर्वाचित हुए थे.
अमरिंदर सरकार में कैबिनेट मंत्री थे चन्नी
वह चमकौर साहिब सीट से तीन बार विधायक चुने गये. पंजाब के नए बने मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी रामदासिया सिख कम्युनिटी से संबंध रखते हैं. 16 मार्च 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह की कैबिनेट में उन्हें स्थान दिया गया था.
परिवार और जीवन
चन्नी का जन्म 1973 में पंजाब के मोहाली में हुआ था. वह पोस्ट ग्रैजुएट हैं, उनके पिता का नाम हर्षा सिंह और माता का नाम लेट अजमेर कौर है, चन्नी हैंडबॉल के खिलाड़ी रहे हैं. चन्नी ने हैंडबॉल में यूनिवर्सिटी के तीन बार गोल्ड मेडलिस्ट रहे, वह स्कूल समय से ही एनसीसी और एनएसएस जैसे सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहे हैं. चरणजीत सिंह चन्नी ने उच्च शिक्षा के लिए श्री गुरु गोबिंद सिंह कॉलेज चंडीगढ़ में एडमिशन लिया और वहां से उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की इसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ पंजाब यूनिवर्सिटी में लॉ की डिग्री भी ली है.
राजनैतिक जीवन
चन्नी को नवजोत सिंह सिद्धू के काफी करीबी माना जाता है. 2007 में वह पहली बार विधानसभा हलका चमकौर साहिब से विधायक चुने गए, जिसके बाद वो लगातार 3 बार विधानसभा क्षेत्र चमकौर साहिब से विधायक बने. 2017 में पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी को टेक्निकल एजुकेशन और इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग मिनिस्टर बनाया गया.
दरअसल, पंजाब में दलितों की आबादी देश में सबसे ज्यादा 32 प्रतिशत (हिंदू-सिख दोनों दलितों को मिलाकर) के लगभग है. इसलिए सभी राजनीतिक दल दलित मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं. एक तरफ अकाली दल है, जिसने दलितों का समर्थन हासिल करने के लिए बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन कर लिया है.
वहीं दूसरी तरफ पंजाब में पहली बार अपने दम पर अकेले चुनाव लड़ रही भाजपा दलित और हिंदुओं के 70 फीसदी के लगभग मतदाताओं के बल पर पंजाब में कामयाबी हासिल करने की रणनीति पर काम कर रही है.वर्तमान विधानसभा में सबसे ज्यादा दलित विधायकों वाली पार्टी कांग्रेस ने भी अब दलित मुख्यमंत्री बनाकर इन्हे फिर से लुभाना शुरू कर दिया है.
बता दें कि पंजाब में न केवल 32 प्रतिशत के लगभग मतदाता दलित समुदाय से आते हैं, बल्कि राज्य विधानसभा की कुल 117 सीटों में से 34 अनुसूचित समुदाय के लिए ही आरक्षित है. इसलिए पंजाब में सरकार बनाने में दलित मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
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