पानीपत: साल 2020 सभी के लिए मुश्किलों भरा रहा, खासकर उन लोगों के लिए जो रेहड़ी या स्टॉल लगाकर छोटी-मोटी चीजें बेच कर अपना गुजर बसर करते थे. पहले लॉकडाउन ने इन लोगों को कौडी-कौडी का मोहताज बना दिया, फिर अनलॉक होने पर इस तंगी ने कहर ढाया है.
अनलॉक में दुकानें शुरू हुए करीब तीन महीनें हो चुके हैं, लेकिन रेहड़ी-फड़ी वालों का रोजगार नहीं पटरी पर आया. पानीपत बस अड्डे के आसपास इस तरह के दर्जनों ऐसे हॉकर हैं. जिनके परिवार का गुजारा बसों में आने-जाने वाले यात्रियों को यह छोटी-छोटी चीजें बेच कर ही चलता था, लेकिन कोरोना काल ने इन सब की कमर तोड़ के रख दी है.
महज 50 रुपये होती है दिनभर की कमाई
रोजाना 300 से 400 कमा कर अपने पेट का गुजारा करने वाले अब ऐसे लोगों की दिन भर की कमाई 50 से 100 के बीच में सिमट कर रह गई, क्योंकि करोना काल में अब बसों में सफर करने से यात्री डरते हैं. यात्री नहीं आ रहे, तो इनकी रोजी रोटी नहीं चलती. जिसके चलते अब इन्हें परिवार चलाना मुश्किल होता जा रहा है. दिनभर बसों के पीछे दौड़ने और सवारियों से मिन्नतें करने पर भी सिर्फ 50 से 100 रुपये ही मिल पाता है. जिससे अब इनके परिवार का गुजारा चलना मुश्किल होता जा रहा है.
उम्र ढल गई, लेकिन पेट के लिए जद्दोजहद जारी है!
यहां कुछ बुजुर्ग भी हैं जिनकी उम्र 50 से ऊपर है. भागकर बसों में नहीं चढ़ा जाता, लेकिन परिवार का पेट पालने के लिए सब कुछ करते हैं जो इनसे बन पड़ता है. वहीं गरीब रेहड़ी-फड़ी वालों का कहना है कि पीएम मोदी ने राहत देने के लिए 10-10 हजार रुपये का लोन देने की बात कही थी, लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं मिला.
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