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हरियाणा वक्फ बोर्ड ने बदली हजरत शेख मूसा दरगाह की सूरत, देखें स्पेशल रिपोर्ट

नूंह जिले के पल्ला गांव स्थित हजरत शेख मूसा की दरगाह में मदरसा चलाया जा रहा है. इस जगह की मरम्मत हरियाणा वक्फ बोर्ड ने करवाई है. स्थानीय निवासी बताते हैं कि अब आस-पास के क्षेत्र के लोग भी शेख मूसा की दरगाह पर पहुंचते हैं.

Hazrat Sheikh Musa Dargah
Hazrat Sheikh Musa Dargah
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Published : Jan 1, 2021, 5:24 PM IST

नूंह: जिले के पल्ला गांव में बनी हज़रत शेख मूसा की दरगाह ने इतिहास के कई अध्यायों को अपने आंचल में समेटा हुआ है. इस दरगाह पर दो मीनार हैं. एक मीनार को हिलाने से दूसरी मीनार में कंपन महसूस होती है. इस अजूबे को देखने के लिए कई दशक पहले हजारों लोग दूर-दराज के इलाकों से यहां पहुंचते थे. लेकिन जैसे-जैसे वक्त ने करवट बदली, वैसे-वैसे दरगाह की दीवारों में दरारें आने लगी और रखरखाव की कमी के चलते पर्यटकों ने भी यहां आना कम कर दिया.

हरियाणा वक्फ बोर्ड ने बदली हजरत शेख मूसा दरगाह की सूरत, देखें वीडियो

हरियाणा वक्फ बोर्ड ने पल्ला गांव में मेवात इंजीनियरिंग कॉलेज की शुरुआत की. वक्फ बोर्ड ने कॉलेज के पास ही हजरत शेख मूसा की दरगाह का भी जीर्णोद्धार करने का फैसला लिया. दरगाह की मरम्मत पर लाखों रुपये का खर्च जरूर आया, लेकिन अब इस दरगाह की रौनक पहले जैसे ही गई है. मेवात इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक डॉ. के.एम रफी ने बताया कि उन्हें गर्व है उन्हें दरगाह में तालीम का इदारा चलाने का मौका मिला है.

हजरत शेख मूसा की दरगाह का इतिहास

हज़रत शेख मूसा दिल्ली से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता का नाम मौलाना बदरूद्दीन इशाक था, जो जाने-माने आमिल थे. मौलाना बदरुद्दीन इशाक और ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया बाबा फरीद गंज रहमतुल्लाह के मुरीद थे. बाबा फरीद गंज ने अपनी लड़की की शादी मौलाना बदरुद्दीन इशाक से की. जिसके बाद हजरत ख्वाजा शेख मूसा और हजरत ख्वाजा मोहम्मद इमाम पैदा हुए.

ये भी पढे़ं- खंडहर बना 350 साल पुराना ये तालाब अब बनेगा पर्यटन स्थल, दशकों से होती रही अनदेखी

बचपन में ही पहले पिता और फिर मां का देहांत हो गया. जिसके बाद दोनों भाइयों की परवरिश निजामुद्दीन औलिया ने की और देश भर में हिंदू-मुस्लिम एकता और इस्लाम धर्म को बढ़ावा देने के लिए उन्हें भ्रमण पर भेज दिया. उसी दौरान नूंह शहर से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर उनका पल्ला कांटेदार झाड़ियों से अटक गया. जिसके बाद ना केवल हजरत शेख मूसा की दरगाह वजूद में आई, बल्कि उसी दिन से यहां पल्ला गांव बस गया. इस्लाम धर्म का प्रचार करते-करते 733 हिजरी में उनका देहांत हो गया. अब हजरत शेख मूसा की मौत को 700 सालों से ज्यादा का वक्त हो गया है.

बदल गई दरगाह की सूरत

ऐसा कहा जाता है कि हजरत ख्वाजा शेख मूसा की कब्र पर एक पुखराज पत्थर था, जो कब्र की रौनक बढ़ाता था. लेकिन अब वो पत्थर कहां है इसका किसी को नहीं पता. जानकारों की मानें तो उस पत्थर की कीमत करोड़ों रुपये में थी. बहरहाल हजरत शेख मूसा की दरगाह में अब मदरसा चलाया जा रहा है. इस जगह की मरम्मत हरियाणा वक्फ बोर्ड ने करवाई है. स्थानीय निवासी बताते हैं कि अब आस-पास के क्षेत्र के लोग भी शेख मूसा की दरगाह पर पहुंचते हैं.

नूंह: जिले के पल्ला गांव में बनी हज़रत शेख मूसा की दरगाह ने इतिहास के कई अध्यायों को अपने आंचल में समेटा हुआ है. इस दरगाह पर दो मीनार हैं. एक मीनार को हिलाने से दूसरी मीनार में कंपन महसूस होती है. इस अजूबे को देखने के लिए कई दशक पहले हजारों लोग दूर-दराज के इलाकों से यहां पहुंचते थे. लेकिन जैसे-जैसे वक्त ने करवट बदली, वैसे-वैसे दरगाह की दीवारों में दरारें आने लगी और रखरखाव की कमी के चलते पर्यटकों ने भी यहां आना कम कर दिया.

हरियाणा वक्फ बोर्ड ने बदली हजरत शेख मूसा दरगाह की सूरत, देखें वीडियो

हरियाणा वक्फ बोर्ड ने पल्ला गांव में मेवात इंजीनियरिंग कॉलेज की शुरुआत की. वक्फ बोर्ड ने कॉलेज के पास ही हजरत शेख मूसा की दरगाह का भी जीर्णोद्धार करने का फैसला लिया. दरगाह की मरम्मत पर लाखों रुपये का खर्च जरूर आया, लेकिन अब इस दरगाह की रौनक पहले जैसे ही गई है. मेवात इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक डॉ. के.एम रफी ने बताया कि उन्हें गर्व है उन्हें दरगाह में तालीम का इदारा चलाने का मौका मिला है.

हजरत शेख मूसा की दरगाह का इतिहास

हज़रत शेख मूसा दिल्ली से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता का नाम मौलाना बदरूद्दीन इशाक था, जो जाने-माने आमिल थे. मौलाना बदरुद्दीन इशाक और ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया बाबा फरीद गंज रहमतुल्लाह के मुरीद थे. बाबा फरीद गंज ने अपनी लड़की की शादी मौलाना बदरुद्दीन इशाक से की. जिसके बाद हजरत ख्वाजा शेख मूसा और हजरत ख्वाजा मोहम्मद इमाम पैदा हुए.

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बचपन में ही पहले पिता और फिर मां का देहांत हो गया. जिसके बाद दोनों भाइयों की परवरिश निजामुद्दीन औलिया ने की और देश भर में हिंदू-मुस्लिम एकता और इस्लाम धर्म को बढ़ावा देने के लिए उन्हें भ्रमण पर भेज दिया. उसी दौरान नूंह शहर से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर उनका पल्ला कांटेदार झाड़ियों से अटक गया. जिसके बाद ना केवल हजरत शेख मूसा की दरगाह वजूद में आई, बल्कि उसी दिन से यहां पल्ला गांव बस गया. इस्लाम धर्म का प्रचार करते-करते 733 हिजरी में उनका देहांत हो गया. अब हजरत शेख मूसा की मौत को 700 सालों से ज्यादा का वक्त हो गया है.

बदल गई दरगाह की सूरत

ऐसा कहा जाता है कि हजरत ख्वाजा शेख मूसा की कब्र पर एक पुखराज पत्थर था, जो कब्र की रौनक बढ़ाता था. लेकिन अब वो पत्थर कहां है इसका किसी को नहीं पता. जानकारों की मानें तो उस पत्थर की कीमत करोड़ों रुपये में थी. बहरहाल हजरत शेख मूसा की दरगाह में अब मदरसा चलाया जा रहा है. इस जगह की मरम्मत हरियाणा वक्फ बोर्ड ने करवाई है. स्थानीय निवासी बताते हैं कि अब आस-पास के क्षेत्र के लोग भी शेख मूसा की दरगाह पर पहुंचते हैं.

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