चंडीगढ़: करीब 15 साल पहले चंडीगढ़ में मेट्रो (chandigarh metro project) चलाने की बात सामने आई थी. प्रशासन ने बड़े जोर शोर के साथ इसकी तैयारी शुरू की थी, लेकिन आज इस बात को 15 साल हो चुके हैं पर मेट्रो के निर्माण में एक ईंट भी नहीं रखी गई. पिछले 15 सालों से कई तरह का रिसर्च का काम किया जा चुका है, मेट्रो का नक्शा बनाया जा चुका है, करीब 110 हाई प्रोफाइल मीटिंग्स भी हो चुकी हैं, मेट्रो के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन इसका परिणाम कुछ नहीं निकला.
चंडीगढ़ में नए एडवाइजर धर्मपाल के आने के बाद फिर से चंडीगढ़ मेट्रो की चर्चाएं तेज हो गई हैं. क्योंकि कुछ दिन पहले एडवाइजर धर्मपाल ने मेट्रो की पुरानी फाइलें निकलवा कर उन्हें देखना शुरू किया. मेट्रो को लेकर कई तरह की योजनाएं बनाई गई, लेकिन कोई भी योजना सिरे नहीं चढ़ पाई. दूसरी ओर चंडीगढ़ की सांसद किरण खेर साफ तौर पर मेट्रो के खिलाफ हैं. वह खुले मंच पर इसका विरोध करती नजर आई हैं. जिस वजह से मेट्रो प्रोजेक्ट को काफी बड़ा झटका लगा है. किरण खेर का कहना है कि मेट्रो बनाने के लिए शहर में पुल बनाने पड़ेंगे जो शहर की सुंदरता को खराब कर देंगे. बता दें कि चंडीगढ़ में एक भी पुल नहीं है.
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साल 2006 में जब मेट्रो की तैयारी शुरू की गई तभी से इसका विरोध किया जा रहा है. कई लोगों का कहना है कि चंडीगढ़ में मेट्रो की जरूरत नहीं है. चंडीगढ़ प्रशासन ने साल 2009 में एक कंपनी के माध्यम से चंडीगढ़ में ट्रैफिक फ्लो को लेकर एक रिसर्च करवाया था. जिसका मकसद ये जानना था कि चंडीगढ़ में ट्रैफिक का फ्लो कितना है और किस चौक से 24 घंटे में कितने वाहन गुजरते हैं. इस रिसर्च से ये पता चला था कि चंडीगढ़ एंट्री के शुरुआती चौक ट्रिब्यून चौक से ही 24 घंटे में करीब 1 लाख वाहन गुजरते हैं बाकी मुख्य चौकों पर भी हालत ज्यादा अच्छी नहीं है. हालांकि स्टडी को भी अब 10 साल बीत चुके हैं और इस दौरान ट्रैफिक और ज्यादा बढ़ चुका है.
प्रशासन का कहना है कि बढ़ते ट्रैफिक को रोकने का एकमात्र उपाय मेट्रो ट्रेन ही है. उस वक्त मेट्रो के लिए दो कॉरिडोर बनाने की योजना तैयार की गई थी. जिसमें एक कोई डोर का नाम नॉर्थ साउथ कॉरिडोर रखा गया था जिसकी लंबाई 12.5 किलोमीटर तय की गई थी. जबकि दूसरे कॉरिडोर का नाम ईस्ट वेस्ट कॉरिडोर रखा गया था जिसकी लंबाई 25 किलोमीटर तय की गई थी. इन दोनों कॉरिडोर को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि ये चंडीगढ़, पंचकूला के ज्यादातर मुख्य जगहों को कवर करें.
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दूसरी ओर सांसद किरण खेर जहां शहर की सुंदरता खराब होने की बात कहकर मेट्रो का विरोध करती आई हैं तो उनका ये भी कहना है कि मेट्रो का निर्माण करना बहुत महंगा है. मेट्रो का निर्माण करने के लिए करीब 14 हजार करोड़ का बजट तैयार किया गया था. चंडीगढ़ की जनसंख्या के हिसाब से मेट्रो में उतने लोग सफर नहीं करेंगे. जिससे मेट्रो का खर्चा निकाला जा सके. सांसद के विरोध के चलते भी मेट्रो प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया.
15 साल बाद अब प्रशासन मेट्रो का छोटा स्वरूप यानी मेट्रो नियो या मेट्रोलाइट चंडीगढ़ में चलाने की बात कर रहा है क्योंकि ये दोनों प्रोजेक्ट मेट्रो के मुकाबले सस्ते होंगे. दरअसल केंद्र सरकार की ओर से भी है गाइडलाइन जारी की गई है कि जिन शहरों की आबादी पच्चीस लाख से ज्यादा होगी सिर्फ उन्हीं शहरों में ही मेट्रो चलाई जानी चाहिए जबकि जिन शहरों की आबादी 10 लाख से ज्यादा और 25 लाख से कम होगी वहां पर मेट्रोलाइट चलाई जानी चाहिए.
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प्रशासन का कहना है कि चंडीगढ़ में अगर मेट्रो ट्रेन नहीं चलाई जा सकती तो मेट्रोलाइट या मेट्रो नियो चलाई जा सकती है क्योंकि इसका खर्च मेट्रो रेल के मुकाबले 40 फीसदी ही है. अगर मेट्रो की बात की जाए तो उसका 1 किलोमीटर एलिवेटेड ट्रैक बनाने पर करीब 350 करोड़ रुपये खर्च आता है जबकि अगर यह ट्रैक अंडर ग्राउंड बनाया जाए तो इसका खर्च 700 से 800 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर आता है. अगर मेट्रोलाइट की बात की जाए तो मेट्रोलाइट के एलिवेटेड ट्रैक बनाने पर करीब 140 करोड़ प्रति किलोमीटर का खर्च आता है. जबकि अगर ट्रैक अंडरग्राउंड बनाया जाए तो उसका खर्च 280 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर आता है. मेट्रो लाइट 1 घंटे में 15 हजार यात्रियों को सफर करा सकती है.
अगर मेट्रो नियो चलाई जाए तो वह और ज्यादा सस्ती पड़ती है. मेट्रो नियो का खर्च मेट्रो रेल के मुकाबले 80 फीसदी कम होता है. मेट्रो नियो का एक किलोमीटर एलिवेटेड ट्रैक बनाया जाए तो उस पर करीब 140 करोड़ रुपये खर्च आता है, जो मेट्रोलाइट से भी कम है. वहीं शहर की सुंदरता की बात करें तो चंडीगढ़ में एक भी पुल नहीं है जबकि मेट्रो चलाने के लिए पूरे शहर में पुल बनाने पड़ेंगे. चंडीगढ़ की हेरिटेज कमेटी ये नहीं चाहती. नियमों के अनुसार चंडीगढ़ के आर्किटेक्ट ली कार्बूजिए ने चंडीगढ़ का जो डिजाइन बनाया था उसमें छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. चंडीगढ़ प्रशासन मेट्रो प्रोजेक्ट को शहर के मास्टर प्लान में शामिल करवाकर हेरिटेज कमेटी से चर्चा करेगा ताकि मेट्रो का रास्ता साफ हो सके.
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मेट्रो का मुद्दा हरियाणा विधानसभा में भी गूंज चुका है. अप्रैल महीने में हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने भी रेल मंत्रालय के सामने चंडीगढ़ ट्राइसिटी में मेट्रो ट्रेन चलाने की मांग उठाई थी. उन्होंने कहा था कि चंडीगढ़, पंचकूला और मोहाली तीनों शहर आपस में जुड़े हुए हैं और तीनों शहरों में प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग आते जाते हैं. इन तीनों शहरों में लोग नौकरी व्यवसाय के चलते आते जाते हैं इसीलिए ट्राइसिटी में एनसीआर की तर्ज पर मेट्रो रेल होनी चाहिए इससे लोगों को काफी सुविधा मिलेगी.
ऐसा रहा मेट्रो प्रोजेक्ट का अब तक का सफर -
- 2006 केंद्र ने प्रशासन से कहा चंडीगढ़ में मेट्रो की संभावनाएं तलाशी जाए
- 2007 मेट्रो प्रोजेक्ट की तैयारी शुरू
- 2008 कंपनी ने चंडीगढ़ के ट्रैफिक को लेकर इस रिसर्च शुरू की
- 2010 कंपनी ने अपनी रिपोर्ट प्रशासन को सौंपी
- 2010 दिल्ली मेट्रो को डीपीआर का काम दिया गया
- 2012 दिल्ली मेट्रो ने डीपीआर का काम पूरा किया
- 2013 स्पेशल परपज व्हीकल का गठन
- 2014 एमओयू साइन करने के लिए बैठक बुलाई गई
- 2016 मेट्रो प्रोजेक्ट पर सांसद ने आपत्ति जताई
- 2017 वित्तीय घाटे को लेकर ट्राइसिटी में विवाद
- 2018 केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसे घाटे का सौदा बताया और प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया
- 2021 मेट्रो की चर्चा फिर शुरू हुई
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