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मायोसाइटिस से बचना है तो अपनाएं यह तरीके, ऐसे लक्षणों से करें पहचान

मायोसाइटिस एक ऑटोइम्यून रोग माना जाता है जो सिर्फ मांसपेशियों ही नहीं बल्कि त्वचा सहित शरीर के कई अंगों व तंत्रों को प्रभावित कर सकता है. यहां तक कि कई बार इस रोग के चलते पीड़ित चलने, उठने और बैठने जैसी सामान्य प्रक्रियाओं में भी समस्या महसूस कर सकता है.

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मायोसाइटिस
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Published : Nov 22, 2022, 12:55 PM IST

मायोसाइटिस एक ऐसा रोग या अवस्था है जिसमें सबसे ज्यादा मांसपेशियां प्रभावित होती है. यह एक ऑटोइम्यून रोग माना जाता है जो सिर्फ मांसपेशियों ही नहीं बल्कि त्वचा सहित शरीर के कई अंगों व तंत्रों को प्रभावित कर सकता है. यहां तक कि कई बार इस रोग के चलते पीड़ित चलने, उठने और बैठने जैसी सामान्य प्रक्रियाओं में भी समस्या महसूस कर सकता है.

जटिल रोग समूह है मायोसाइटिस
कई बार ज्यादा उम्र होने पर लोगों को बैठकर उठने में, चलने में और यहां तक की ऐसी कोई भी शारीरिक क्रिया जिसमें जोड़ों पर जोर पड़ता हो या मांसपेशियों का इस्तेमाल होता है, उन्हें करने में दर्द महसूस होने लगता है. आमतौर पर लोग इसे बढ़ती उम्र के कारण जोड़ों व मांसपेशियों में होने वाली कमजोरी या समस्या मानते हैं. लेकिन अगर अपेक्षाकृत कम उम्र में भी यदि लोगों को मांसपेशियों या जोड़ों में किसी प्रकार कि समस्या हो रही हो तो वे उसे नजर अंदाज करते रहते हैं. जो सही नहीं है. मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द तथा समस्या के लिए कई बार मायोसाइटिस भी जिम्मेदार हो सकती है.

मायोसाइटिस दरअसल एक जटिल ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें हमारी मांसपेशियां सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं. लेकिन इसके प्रभाव सिर्फ मांसपेशियों तक ही सीमित नहीं हैं. मायोसाइटिस हमारी त्वचा के साथ ही जोड़ों तथा शरीर के अन्य अंगों व तंत्रों को भी प्रभावित कर सकती है. यहां तक कि समस्या बढ़ने पर व्यक्ति को चलने, बैठने, बैठकर खड़े होने, गर्दन सीधा रखने और हल्के सामान को उठाने तक में दर्द व समस्या का सामना करना पड़ सकता है.

myositis symptoms
मायोसाइटिस

क्या है मायोसाइटिस
दिल्ली के आर्थोपेडिक चिकित्सक तथा सलाहकार डॉ विश्वास कुलकर्णी बताते हैं कि मायोसाइटिस एक रूमेटोलॉजिकल समस्या है. इस प्रकार की समस्या में शरीर का इम्यून सिस्टम ठीक से काम नहीं करता है. जो कई बार ऑटोइम्यून रोगों का कारण बन जाता है. रूमेटिक रोग शरीर के किसी भी हिस्से या तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं.

मायोसाइटिस भी एक ऑटोइम्यून बीमारी है. यह दरअसल कोई एक बीमारी नहीं है, बल्कि बीमारियों का एक समूह है जो मांसपेशियों से लेकर त्वचा और शरीर के कई अंगों तथा तंत्रों में समस्या का कारण बन सकते हैं. यह बुखार , त्वचा पर रैश या मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द के रूप में शुरू हो सकता है लेकिन वहीं दीर्घकालिक समय में स्वास्थ्य पर इसके गंभीर असर भी नजर आ सकते हैं. जो कई बार एक से ज्यादा समस्याओं और विकलांगता का कारण भी बन सकते हैं.

डॉक्टर कुलकर्णी बताते हैं कि चूंकि मायोसाइटिस के प्रकार तथा कारण अलग-अलग होते हैं ऐसे में इसका इलाज भी रोग के लक्षणों तथा संकेतों को देखते हुए ही किया जाता है. ज्यादातर मामलों में इसका एक स्थाई इलाज मुश्किल होता है लेकिन सही इलाज, दवाइयों तथा थेरेपी की मदद से इसे काफी हद तक नियंत्रित किया तथा रखा जा सकता है.

myositis symptoms
मायोसाइटिस

मायोसाइटिस के प्रकार तथा कारण
वह बताते हैं कि मायोसाइटिस में सबसे ज्यादा प्रभाव मांसपेशियां पर पड़ता है. वे कमजोर हो जाती है और उनमें सूजन, जलन व दर्द जैसी समस्या होने लगती हैं. वहीं इसके संकेत त्वचा पर भी दानों, रैश, पपड़ीदार त्वचा तथा ड्राई पैच के रूप में नजर आ सकते हैं. चूंकि यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, इसमें आमतौर पर शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही मांसपेशियों को नुकसान पहुंचाने लगती है.

इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं, जैसे..

  • वायरस जनित संक्रमण (जैसे एच.आई.वी , सर्दी जुकाम व बुखार आदि)
  • रूमेटाइड अर्थराइटिस
  • किसी दवाई का पार्श्व प्रभाव
  • ल्यूपस( गंभीर इन्फ्लेमेटरी ऑटोइम्यून बीमारी)
  • स्क्लेरोडर्मा

मायोसाइटिस के प्रकार तथा प्रभाव
मायोसाइटिस के अलग-अलग प्रकार होते हैं. हालांकि सबके लक्षण काफी हद तक मिलते-जुलते होते हैं, लेकिन पीड़ित के शरीर पर उनके प्रभाव अलग-अलग नजर आ सकते हैं. मायोसाइटिस के प्रकार निम्नलिखित हैं....

डर्मेटो मायोसाइटिस- इस अवस्था में पीड़ित की मांसपेशियों में दर्द व सूजन के साथ ही उनकी त्वचा पर रैशेज, दाने, पपड़ी दार या खुरदरी त्वचा जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं. जोकि ज्यादातर मामलों में छाती, गर्दन, पीठ, घुटनों, पैर के जोड़ों तथा उंगलियों सहित चेहरे और कई बार पलकों पर भी नजर आते हैं. इसके अलावा इस समस्या के होने पर पीड़ित को बुखार, थकान, अनियमित धड़कन, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्या, आवाज में बदलाव तथा आहार निगलने में समस्या आदि परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है

पॉली मायोसाइटिस- पॉली मायोसाइटिस में भी मांसपेशियां व टिश्यू के क्षतिग्रस्त होने का कारण उनमें कमजोरी, दर्द, जलन व सूजन की समस्या नजर आने लगती हैं. इसके अलावा पॉली मायोसाइटिस में भी पीड़ित को बुखार, थकान, सूखी खांसी , कुछ भी निगलने में कठिनाई होना, वजन कम होना तथा आवाज में बदलाव सहित कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं. आमतौर पर महिलाओं में यह समस्या अपेक्षाकृत ज्यादा नजर आती है.

इंक्लूजन बॉडी मायोसाइटिस – यह समस्या पुरुषों को अपेक्षाकृत ज्यादा प्रभावित करती है. इसमें कलाई, उंगलियों व जांघ की मांसपेशियों में कमजोरी के लक्षण सबसे पहले नजर आते हैं. समस्या ज्यादा बढ़ने पर मांसपेशियों में दर्द या कमजोरी इस हद तक बढ़ सकती है की पीड़ित को शरीर का संतुलन बनाए रखने, चलने, जमीन से झुककर किसी चीज को उठाने और यहां तक की चीजों को पकड़ने तक में परेशानी होने लगती है. जिसके कारण कई बार वह गिर भी जाते हैं.

टॉक्सिक मायोसाइटिस- डॉक्टर कुलकर्णी बताते हैं कि कभी-कभी किसी दवा या इलाज के पार्श्व प्रभाव के कारण भी मायोसाइटिस की समस्या हो सकती है, जिसे टॉक्सिक मायोसाइटिस कहा जाता है. इसके लक्षण भी मायोसाइटिस के अन्य प्रकारों के लक्षण जैसे हो सकते हैं.

जूविनाइल मायोसाइटिस- अगर यह समस्या 18 साल से कम उम्र वालों में नजर आती है तो यह जूविनाइल मायोसाइटिस कहलाती है.

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मायोसाइटिस

क्या इलाज संभव है
डॉक्टर कुलकर्णी बताते हैं कि ज्यादातर मामलों में मायोसाइटिस का पूरी तरह से निवारण होना संभव नहीं हो पाता है. लेकिन सही इलाज - दवाओं , नियमित देखभाल तथा सावधानियों को अपनाकर इसके प्रभावों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन वहीं यदि इसके लक्षणों को नजरअंदाज किया जाए या इलाज में किसी भी प्रकार की कोताही बरती जाए तो यह कई बार आंशिक या स्थाई विकलांगता जैसे चलने, फिरने व काम करने में असमर्थता या दूसरों पर आश्रित होने का कारण बन सकती है.

वह बताते हैं कि चूंकि एक सिर्फ बीमारी नहीं हैं बल्कि बीमारियों का एक समूह है और इसके प्रकार व प्रभाव भिन्न हो सकते हैं , इसलिए इसके लिए किसी एक प्रकार के इलाज, दवा या थेरेपी को नियत नहीं किया जा सकता है. वह बताते हैं कि मायोसाइटिस की पुष्टि होने के बाद उसके प्रकार, लक्षण तथा प्रभावों के आधार पर ही इसका उपचार किया जाता हैं.

जरूरी है सचेत रहना
डॉक्टर कुलकर्णी बताते हैं कि ज्यादातर लोग मांसपेशियों में दर्द की शुरुआत होने पर उसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते हैं और मांसपेशियों या हड्डियों को मजबूत करने के लिए स्वयं से ही दर्द निवारक दवाओं, तेल या बाम का उपयोग तथा सप्लीमेंट का सेवन शुरू कर देते हैं. विशेषकर अधेड़ व बुजुर्ग लोगों में यह प्रवत्ति ज्यादा देखने में आती है क्योंकि वे इस समस्या को बढ़ती उम्र से जोड़ कर देखते हैं और इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते हैं.

यह सही है कि ज्यादातर मामलों में 50 साल के बाद ही इस रोग के लक्षण नजर आना शुरू होते हैं, लेकिन 50 से कम आयु वाले लोगों में भी यह समस्या नजर आ सकती है.

वह बताते हैं कि किसी भी आयु में यदि मांसपेशियों व जोड़ों में ज्यादा व लगातार दर्द तथा काम करने में असहजता के साथ बुखार, त्वचा संबंधी समस्या, खाना निगलने में परेशानी व थकान व कमजोरी महसूस होने जैसे लक्षण नजर आ रहें हों तो तत्काल विशेषज्ञ से संपर्क कर जांच व इलाज कराना बहुत जरूरी होता है.

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मायोसाइटिस एक ऐसा रोग या अवस्था है जिसमें सबसे ज्यादा मांसपेशियां प्रभावित होती है. यह एक ऑटोइम्यून रोग माना जाता है जो सिर्फ मांसपेशियों ही नहीं बल्कि त्वचा सहित शरीर के कई अंगों व तंत्रों को प्रभावित कर सकता है. यहां तक कि कई बार इस रोग के चलते पीड़ित चलने, उठने और बैठने जैसी सामान्य प्रक्रियाओं में भी समस्या महसूस कर सकता है.

जटिल रोग समूह है मायोसाइटिस
कई बार ज्यादा उम्र होने पर लोगों को बैठकर उठने में, चलने में और यहां तक की ऐसी कोई भी शारीरिक क्रिया जिसमें जोड़ों पर जोर पड़ता हो या मांसपेशियों का इस्तेमाल होता है, उन्हें करने में दर्द महसूस होने लगता है. आमतौर पर लोग इसे बढ़ती उम्र के कारण जोड़ों व मांसपेशियों में होने वाली कमजोरी या समस्या मानते हैं. लेकिन अगर अपेक्षाकृत कम उम्र में भी यदि लोगों को मांसपेशियों या जोड़ों में किसी प्रकार कि समस्या हो रही हो तो वे उसे नजर अंदाज करते रहते हैं. जो सही नहीं है. मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द तथा समस्या के लिए कई बार मायोसाइटिस भी जिम्मेदार हो सकती है.

मायोसाइटिस दरअसल एक जटिल ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें हमारी मांसपेशियां सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं. लेकिन इसके प्रभाव सिर्फ मांसपेशियों तक ही सीमित नहीं हैं. मायोसाइटिस हमारी त्वचा के साथ ही जोड़ों तथा शरीर के अन्य अंगों व तंत्रों को भी प्रभावित कर सकती है. यहां तक कि समस्या बढ़ने पर व्यक्ति को चलने, बैठने, बैठकर खड़े होने, गर्दन सीधा रखने और हल्के सामान को उठाने तक में दर्द व समस्या का सामना करना पड़ सकता है.

myositis symptoms
मायोसाइटिस

क्या है मायोसाइटिस
दिल्ली के आर्थोपेडिक चिकित्सक तथा सलाहकार डॉ विश्वास कुलकर्णी बताते हैं कि मायोसाइटिस एक रूमेटोलॉजिकल समस्या है. इस प्रकार की समस्या में शरीर का इम्यून सिस्टम ठीक से काम नहीं करता है. जो कई बार ऑटोइम्यून रोगों का कारण बन जाता है. रूमेटिक रोग शरीर के किसी भी हिस्से या तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं.

मायोसाइटिस भी एक ऑटोइम्यून बीमारी है. यह दरअसल कोई एक बीमारी नहीं है, बल्कि बीमारियों का एक समूह है जो मांसपेशियों से लेकर त्वचा और शरीर के कई अंगों तथा तंत्रों में समस्या का कारण बन सकते हैं. यह बुखार , त्वचा पर रैश या मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द के रूप में शुरू हो सकता है लेकिन वहीं दीर्घकालिक समय में स्वास्थ्य पर इसके गंभीर असर भी नजर आ सकते हैं. जो कई बार एक से ज्यादा समस्याओं और विकलांगता का कारण भी बन सकते हैं.

डॉक्टर कुलकर्णी बताते हैं कि चूंकि मायोसाइटिस के प्रकार तथा कारण अलग-अलग होते हैं ऐसे में इसका इलाज भी रोग के लक्षणों तथा संकेतों को देखते हुए ही किया जाता है. ज्यादातर मामलों में इसका एक स्थाई इलाज मुश्किल होता है लेकिन सही इलाज, दवाइयों तथा थेरेपी की मदद से इसे काफी हद तक नियंत्रित किया तथा रखा जा सकता है.

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मायोसाइटिस

मायोसाइटिस के प्रकार तथा कारण
वह बताते हैं कि मायोसाइटिस में सबसे ज्यादा प्रभाव मांसपेशियां पर पड़ता है. वे कमजोर हो जाती है और उनमें सूजन, जलन व दर्द जैसी समस्या होने लगती हैं. वहीं इसके संकेत त्वचा पर भी दानों, रैश, पपड़ीदार त्वचा तथा ड्राई पैच के रूप में नजर आ सकते हैं. चूंकि यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, इसमें आमतौर पर शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही मांसपेशियों को नुकसान पहुंचाने लगती है.

इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं, जैसे..

  • वायरस जनित संक्रमण (जैसे एच.आई.वी , सर्दी जुकाम व बुखार आदि)
  • रूमेटाइड अर्थराइटिस
  • किसी दवाई का पार्श्व प्रभाव
  • ल्यूपस( गंभीर इन्फ्लेमेटरी ऑटोइम्यून बीमारी)
  • स्क्लेरोडर्मा

मायोसाइटिस के प्रकार तथा प्रभाव
मायोसाइटिस के अलग-अलग प्रकार होते हैं. हालांकि सबके लक्षण काफी हद तक मिलते-जुलते होते हैं, लेकिन पीड़ित के शरीर पर उनके प्रभाव अलग-अलग नजर आ सकते हैं. मायोसाइटिस के प्रकार निम्नलिखित हैं....

डर्मेटो मायोसाइटिस- इस अवस्था में पीड़ित की मांसपेशियों में दर्द व सूजन के साथ ही उनकी त्वचा पर रैशेज, दाने, पपड़ी दार या खुरदरी त्वचा जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं. जोकि ज्यादातर मामलों में छाती, गर्दन, पीठ, घुटनों, पैर के जोड़ों तथा उंगलियों सहित चेहरे और कई बार पलकों पर भी नजर आते हैं. इसके अलावा इस समस्या के होने पर पीड़ित को बुखार, थकान, अनियमित धड़कन, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्या, आवाज में बदलाव तथा आहार निगलने में समस्या आदि परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है

पॉली मायोसाइटिस- पॉली मायोसाइटिस में भी मांसपेशियां व टिश्यू के क्षतिग्रस्त होने का कारण उनमें कमजोरी, दर्द, जलन व सूजन की समस्या नजर आने लगती हैं. इसके अलावा पॉली मायोसाइटिस में भी पीड़ित को बुखार, थकान, सूखी खांसी , कुछ भी निगलने में कठिनाई होना, वजन कम होना तथा आवाज में बदलाव सहित कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं. आमतौर पर महिलाओं में यह समस्या अपेक्षाकृत ज्यादा नजर आती है.

इंक्लूजन बॉडी मायोसाइटिस – यह समस्या पुरुषों को अपेक्षाकृत ज्यादा प्रभावित करती है. इसमें कलाई, उंगलियों व जांघ की मांसपेशियों में कमजोरी के लक्षण सबसे पहले नजर आते हैं. समस्या ज्यादा बढ़ने पर मांसपेशियों में दर्द या कमजोरी इस हद तक बढ़ सकती है की पीड़ित को शरीर का संतुलन बनाए रखने, चलने, जमीन से झुककर किसी चीज को उठाने और यहां तक की चीजों को पकड़ने तक में परेशानी होने लगती है. जिसके कारण कई बार वह गिर भी जाते हैं.

टॉक्सिक मायोसाइटिस- डॉक्टर कुलकर्णी बताते हैं कि कभी-कभी किसी दवा या इलाज के पार्श्व प्रभाव के कारण भी मायोसाइटिस की समस्या हो सकती है, जिसे टॉक्सिक मायोसाइटिस कहा जाता है. इसके लक्षण भी मायोसाइटिस के अन्य प्रकारों के लक्षण जैसे हो सकते हैं.

जूविनाइल मायोसाइटिस- अगर यह समस्या 18 साल से कम उम्र वालों में नजर आती है तो यह जूविनाइल मायोसाइटिस कहलाती है.

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मायोसाइटिस

क्या इलाज संभव है
डॉक्टर कुलकर्णी बताते हैं कि ज्यादातर मामलों में मायोसाइटिस का पूरी तरह से निवारण होना संभव नहीं हो पाता है. लेकिन सही इलाज - दवाओं , नियमित देखभाल तथा सावधानियों को अपनाकर इसके प्रभावों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन वहीं यदि इसके लक्षणों को नजरअंदाज किया जाए या इलाज में किसी भी प्रकार की कोताही बरती जाए तो यह कई बार आंशिक या स्थाई विकलांगता जैसे चलने, फिरने व काम करने में असमर्थता या दूसरों पर आश्रित होने का कारण बन सकती है.

वह बताते हैं कि चूंकि एक सिर्फ बीमारी नहीं हैं बल्कि बीमारियों का एक समूह है और इसके प्रकार व प्रभाव भिन्न हो सकते हैं , इसलिए इसके लिए किसी एक प्रकार के इलाज, दवा या थेरेपी को नियत नहीं किया जा सकता है. वह बताते हैं कि मायोसाइटिस की पुष्टि होने के बाद उसके प्रकार, लक्षण तथा प्रभावों के आधार पर ही इसका उपचार किया जाता हैं.

जरूरी है सचेत रहना
डॉक्टर कुलकर्णी बताते हैं कि ज्यादातर लोग मांसपेशियों में दर्द की शुरुआत होने पर उसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते हैं और मांसपेशियों या हड्डियों को मजबूत करने के लिए स्वयं से ही दर्द निवारक दवाओं, तेल या बाम का उपयोग तथा सप्लीमेंट का सेवन शुरू कर देते हैं. विशेषकर अधेड़ व बुजुर्ग लोगों में यह प्रवत्ति ज्यादा देखने में आती है क्योंकि वे इस समस्या को बढ़ती उम्र से जोड़ कर देखते हैं और इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते हैं.

यह सही है कि ज्यादातर मामलों में 50 साल के बाद ही इस रोग के लक्षण नजर आना शुरू होते हैं, लेकिन 50 से कम आयु वाले लोगों में भी यह समस्या नजर आ सकती है.

वह बताते हैं कि किसी भी आयु में यदि मांसपेशियों व जोड़ों में ज्यादा व लगातार दर्द तथा काम करने में असहजता के साथ बुखार, त्वचा संबंधी समस्या, खाना निगलने में परेशानी व थकान व कमजोरी महसूस होने जैसे लक्षण नजर आ रहें हों तो तत्काल विशेषज्ञ से संपर्क कर जांच व इलाज कराना बहुत जरूरी होता है.

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