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कैसे जांचे बच्चे में ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण

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Published : Apr 3, 2021, 1:27 PM IST

Updated : Apr 3, 2021, 5:16 PM IST

चिकित्सक मानते हैं कि सही समय पर ऑटिज्म का पता चल जाने पर सही थेरेपी और इलाज की मदद से बच्चों को काफी हद तक आत्मनिर्भर बनाने में सफलता प्राप्त की जा सकती है। लेकिन सुनने में यह जितना सरल लगता है, उतना वास्तविकता में नहीं है। आमतौर पर ऑटिस्टिक बच्चों में इस विकास परक समस्या के अलग-अलग लक्षण तो नजर आते ही हैं, साथ ही उनकी समस्याएं भी दूसरे ऑटिस्टिक बच्चों से भिन्न होती हैं। ऐसे में सभी बच्चों को एक सरीखा इलाज नहीं दिया जा सकता है।

Screening for early signs of autism
ऑटिज्म के शुरुआती लक्षणों की जांच

ऑटिज्म एक ऐसी विकासपरक अवस्था या विकार है, जिसके चलते ऑटिस्टिक बच्चों को सामाजिक मेलजोल में, दूसरों से संपर्क साधने तथा अपने व्यवहार को संयमित तथा नियंत्रित रखने में समस्याएं आती है। चिंताजनक बात यह है कि साल दर साल इस समस्या से पीड़ितों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। आंकड़ों की मानें तो वर्तमान समय में भारत में 2 मिलियन से ज्यादा लोग ऑटिज्म से पीड़ित हैं।

ऑटिज्म के लक्षणों तथा उसके प्रबंधन से जुड़े विभिन्न मुद्दों को जनता के संज्ञान में लाने तथा उन्हें इस संबंध में जानकारियों को लेकर जागरूक करने के उद्देश्य से 2 अप्रैल को 'विश्व ऑटिज्म दिवस' का आयोजन किया जाता है।

सरल नहीं है ऑटिज्म प्रबंधन की राह

सेतु सेंटर फॉर चाइल्ड डेवलपमेंट एंड फैमिली गाइडेंस सालीगाओ, गोवा की निदेशक तथा बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नंदिता डिसूजा बताती है कि सही समय पर इस रोग की जानकारी मिलने पर काफी हद तक ऑटिस्टिक बच्चों की स्थिति तथा उनके व्यवहार को नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन सिर्फ सामान्य लक्षणों के आधार पर उनके लिए इलाज की प्रणालियां निर्धारित नहीं की जा सकती है। दरअसल कई बार कुछ लक्षण बच्चों में देर से नजर आने शुरू होते हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी होता है। विश्व ऑटिज्म दिवस के अवसर पर ETV भारत सुखीभवा की टीम को इस संबंध में ज्यादा जानकारी देते हुए डॉ नंदिता बताती हैं की ऑटिस्टिक बच्चों में संचार, बोलने और सुनने से पहले लोगों के चेहरे के भावों से शुरू होता है। किसी भी खेल या थेरेपी के दौरान चिकित्सक, थेरेपिस्ट, माता-पिता या अन्य लोगों के चेहरे के अलग-अलग भाव यदि बच्चे का ध्यान अपनी तरफ खींच लेते हैं, तो यह बच्चे के विकास में एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।

ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण

डॉक्टर नंदिता बताती हैं कि यूं तो बच्चे के जन्म के बाद वैसे ही परिजन उसके हावभाव और उसकी हरकतों पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देते हैं। लेकिन इसके साथ ही उनका बच्चों के असामान्य व्यवहार विशेषकर दूसरों से किसी भी माध्यम से संपर्क बनाने में अक्षमता, प्रतिक्रिया ना देना या देरी से देना या उसके चेहरे के उदासीन हाव भाव को लेकर सचेत रहना भी बहुत जरूरी है। डॉक्टर नंदिता बताते हैं कि जन्म के उपरांत उम्र के आधार पर बच्चों में ऑटिज्म के नजर आने वाले लक्षण इस प्रकार हैं;

  1. 6 महीने तक: बच्चे का खिलखिला कर ना हंसना, किलकारियां मारना तथा चेहरे पर खुशी तथा उत्साह जैसी भावों की कमी।
  2. 9 महीने तक: ना के बराबर या बिल्कुल भी आवाज नहीं निकालना, किसी भी माध्यम से दूसरों से संपर्क से बचना, चेहरे पर मुस्कुराहट सहित किसी भी प्रकार के भाव ना आना।
  3. 12 महीने तक: अपने नाम के प्रति प्रतिक्रिया ना देना। आवाज निकाल, दूसरों को छूकर या हाथ हिला कर, किसी भी प्रकार से दूसरों से संवाद या संचार स्थापित ना कर पाना।
  4. 16 महीने तक: बिल्कुल भी बात ना करना।
  5. 24 महीने तक: सामान्य तरीके से बात ना कर पाना। तथा बातों को लगातार दोहराते रहना।

ऑटिस्टिक बच्चों में भाषा के विकास पर कैसे रखें निगरानी

डॉक्टर नंदिता बताती हैं कि बहुत जरूरी है की ऑटिस्टिक बच्चों के माता-पिता उनके भाषा संबंधी विकास पर पूरी निगरानी रखें। जिसके लिए नियमित तौर पर बाल रोग विशेषज्ञ से जांच बहुत जरूरी है। इसके साथ ही 18 तथा 24 महीनों में ऑटिज्म के लक्षणों तथा उसकी स्थिति को लेकर जांच किया जाना भी बहुत जरूरी है। इसके अतिरिक्त बच्चों के विकास पर निगरानी रखने के लिए उनके माता-पिता को विशेष पद्धतियों का प्रशिक्षण दिया जाना भी जरूरी है, जिसके चलते शुरुआती स्तर पर वह स्वयं अपने बच्चे की अवस्था को लेकर जांच कर सकें। इन पद्धतियों में संशोधित 'एम चैट आर' पद्धति विशेष महत्व रखती है, क्योंकि इस पद्धति में पूछे गए प्रश्नों के उत्तरों पर आधारित स्कोर के जरिए बच्चों में ऑटिज्म के कम, मध्यम या ज्यादा खतरे के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है। ऐसे बच्चे जिनके स्कोर मध्यम तथा ज्यादा रिस्क की श्रेणी आते हैं, उनकी जांच तथा इलाज की प्रक्रिया तुरंत शुरू कर देनी चाहिए।

पढ़े:माता-पिता के लिए सरल नहीं होता है, बच्चे में ऑटिज्म को स्वीकारना

बच्चे में ऑटिज्म का अंदेशा होने पर क्या करें

डॉक्टर नंदिता बताती हैं कि यदि किसी बच्चे में ऑटिज्म होने का खतरा हो या उनमें ऑटिज्म के लक्षण नजर आए, तो उन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, ना ही ज्यादा लक्षणों के नजर आने तक चिकित्सीय मदद लेने में इंतजार करना चाहिए। चूंकि यह एक मस्तिष्क से जुड़ा विकार है, इसलिए जैसे ही उसके लक्षण नजर आने शुरू हो तदोपरांत उसकी थेरेपी की शुरूआत करवा देनी चाहिए। ऑटिज्म के प्रबंधन में चिकित्सकों तथा विशेषज्ञों द्वारा बच्चों की बेहतरी के लिए अपनाई जाने वाली थेरेपी तथा पद्धतियों के अलावा ऑटिस्टिक बच्चों के माता-पिता तथा परिजनों को भी विशेष प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिनके माध्यम से वे विभिन्न प्रकार के अभ्यासों की मदद से वे बच्चे के सामाजिक स्तर पर मेलजोल बढ़ाने तथा उनमें बात करने की क्षमता का विकास करने के लिए प्रयास कर सकते हैं।

इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए reachus@setu.in पर संपर्क किया जा सकता है।

ऑटिज्म एक ऐसी विकासपरक अवस्था या विकार है, जिसके चलते ऑटिस्टिक बच्चों को सामाजिक मेलजोल में, दूसरों से संपर्क साधने तथा अपने व्यवहार को संयमित तथा नियंत्रित रखने में समस्याएं आती है। चिंताजनक बात यह है कि साल दर साल इस समस्या से पीड़ितों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। आंकड़ों की मानें तो वर्तमान समय में भारत में 2 मिलियन से ज्यादा लोग ऑटिज्म से पीड़ित हैं।

ऑटिज्म के लक्षणों तथा उसके प्रबंधन से जुड़े विभिन्न मुद्दों को जनता के संज्ञान में लाने तथा उन्हें इस संबंध में जानकारियों को लेकर जागरूक करने के उद्देश्य से 2 अप्रैल को 'विश्व ऑटिज्म दिवस' का आयोजन किया जाता है।

सरल नहीं है ऑटिज्म प्रबंधन की राह

सेतु सेंटर फॉर चाइल्ड डेवलपमेंट एंड फैमिली गाइडेंस सालीगाओ, गोवा की निदेशक तथा बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नंदिता डिसूजा बताती है कि सही समय पर इस रोग की जानकारी मिलने पर काफी हद तक ऑटिस्टिक बच्चों की स्थिति तथा उनके व्यवहार को नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन सिर्फ सामान्य लक्षणों के आधार पर उनके लिए इलाज की प्रणालियां निर्धारित नहीं की जा सकती है। दरअसल कई बार कुछ लक्षण बच्चों में देर से नजर आने शुरू होते हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी होता है। विश्व ऑटिज्म दिवस के अवसर पर ETV भारत सुखीभवा की टीम को इस संबंध में ज्यादा जानकारी देते हुए डॉ नंदिता बताती हैं की ऑटिस्टिक बच्चों में संचार, बोलने और सुनने से पहले लोगों के चेहरे के भावों से शुरू होता है। किसी भी खेल या थेरेपी के दौरान चिकित्सक, थेरेपिस्ट, माता-पिता या अन्य लोगों के चेहरे के अलग-अलग भाव यदि बच्चे का ध्यान अपनी तरफ खींच लेते हैं, तो यह बच्चे के विकास में एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।

ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण

डॉक्टर नंदिता बताती हैं कि यूं तो बच्चे के जन्म के बाद वैसे ही परिजन उसके हावभाव और उसकी हरकतों पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देते हैं। लेकिन इसके साथ ही उनका बच्चों के असामान्य व्यवहार विशेषकर दूसरों से किसी भी माध्यम से संपर्क बनाने में अक्षमता, प्रतिक्रिया ना देना या देरी से देना या उसके चेहरे के उदासीन हाव भाव को लेकर सचेत रहना भी बहुत जरूरी है। डॉक्टर नंदिता बताते हैं कि जन्म के उपरांत उम्र के आधार पर बच्चों में ऑटिज्म के नजर आने वाले लक्षण इस प्रकार हैं;

  1. 6 महीने तक: बच्चे का खिलखिला कर ना हंसना, किलकारियां मारना तथा चेहरे पर खुशी तथा उत्साह जैसी भावों की कमी।
  2. 9 महीने तक: ना के बराबर या बिल्कुल भी आवाज नहीं निकालना, किसी भी माध्यम से दूसरों से संपर्क से बचना, चेहरे पर मुस्कुराहट सहित किसी भी प्रकार के भाव ना आना।
  3. 12 महीने तक: अपने नाम के प्रति प्रतिक्रिया ना देना। आवाज निकाल, दूसरों को छूकर या हाथ हिला कर, किसी भी प्रकार से दूसरों से संवाद या संचार स्थापित ना कर पाना।
  4. 16 महीने तक: बिल्कुल भी बात ना करना।
  5. 24 महीने तक: सामान्य तरीके से बात ना कर पाना। तथा बातों को लगातार दोहराते रहना।

ऑटिस्टिक बच्चों में भाषा के विकास पर कैसे रखें निगरानी

डॉक्टर नंदिता बताती हैं कि बहुत जरूरी है की ऑटिस्टिक बच्चों के माता-पिता उनके भाषा संबंधी विकास पर पूरी निगरानी रखें। जिसके लिए नियमित तौर पर बाल रोग विशेषज्ञ से जांच बहुत जरूरी है। इसके साथ ही 18 तथा 24 महीनों में ऑटिज्म के लक्षणों तथा उसकी स्थिति को लेकर जांच किया जाना भी बहुत जरूरी है। इसके अतिरिक्त बच्चों के विकास पर निगरानी रखने के लिए उनके माता-पिता को विशेष पद्धतियों का प्रशिक्षण दिया जाना भी जरूरी है, जिसके चलते शुरुआती स्तर पर वह स्वयं अपने बच्चे की अवस्था को लेकर जांच कर सकें। इन पद्धतियों में संशोधित 'एम चैट आर' पद्धति विशेष महत्व रखती है, क्योंकि इस पद्धति में पूछे गए प्रश्नों के उत्तरों पर आधारित स्कोर के जरिए बच्चों में ऑटिज्म के कम, मध्यम या ज्यादा खतरे के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है। ऐसे बच्चे जिनके स्कोर मध्यम तथा ज्यादा रिस्क की श्रेणी आते हैं, उनकी जांच तथा इलाज की प्रक्रिया तुरंत शुरू कर देनी चाहिए।

पढ़े:माता-पिता के लिए सरल नहीं होता है, बच्चे में ऑटिज्म को स्वीकारना

बच्चे में ऑटिज्म का अंदेशा होने पर क्या करें

डॉक्टर नंदिता बताती हैं कि यदि किसी बच्चे में ऑटिज्म होने का खतरा हो या उनमें ऑटिज्म के लक्षण नजर आए, तो उन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, ना ही ज्यादा लक्षणों के नजर आने तक चिकित्सीय मदद लेने में इंतजार करना चाहिए। चूंकि यह एक मस्तिष्क से जुड़ा विकार है, इसलिए जैसे ही उसके लक्षण नजर आने शुरू हो तदोपरांत उसकी थेरेपी की शुरूआत करवा देनी चाहिए। ऑटिज्म के प्रबंधन में चिकित्सकों तथा विशेषज्ञों द्वारा बच्चों की बेहतरी के लिए अपनाई जाने वाली थेरेपी तथा पद्धतियों के अलावा ऑटिस्टिक बच्चों के माता-पिता तथा परिजनों को भी विशेष प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिनके माध्यम से वे विभिन्न प्रकार के अभ्यासों की मदद से वे बच्चे के सामाजिक स्तर पर मेलजोल बढ़ाने तथा उनमें बात करने की क्षमता का विकास करने के लिए प्रयास कर सकते हैं।

इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए reachus@setu.in पर संपर्क किया जा सकता है।

Last Updated : Apr 3, 2021, 5:16 PM IST
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