नई दिल्ली: भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (vice president jagdeep dhankhar) ने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर, इंफॉर्मेशन और इनोवेशन के बिना आज के दौर में काम चलना मुश्किल है. इन्फ्रास्ट्रक्चर आसान है, लेकिन इनोवेशन कठिन है. धनखड़ दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) में तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस "इन्फ्रास्ट्रक्चर, इंफॉर्मेशन एंड इनोवेशन फॉर बिल्डिंग न्यू भारत" के उद्घाटन अवसर पर मुख्यातिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे. इस तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस का आयोजन विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में गांधी भवन, दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) , गांधी स्मृति एवम दर्शन समिति तथा दिल्ली पुस्तकालय संघ और S.R.F.L.I.S. द्वारा संयुक्त रूप किया गया. समारोह के दौरान गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के उपाध्यक्ष विजय गोयल विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद रहे. कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने की.
जगदीप धनखड़ ने कहा कि इस कान्फ्रेंस में जब इन्फ्रास्ट्रक्चर, इंफॉर्मेशन एंड इनोवेशन पर फोक्स किया जाएगा तो ज्वलंत मुद्दे कवर होंगे, इन तीनों के बिना आज के दिन काम चलना मुश्किल है. उन्होने कहा कि आज भारत पहले से अधिक गति से उभर रहा है. आज भारत को वो स्थान प्राप्त हो रहा है जो सदियों पहले था. दुनिया में भारतीयता और भर्तियों का सम्मान बढ़ा है. उन्होने कहा कि देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तेजी से विकास कर रहा है. जो चीजें कभी सोची भी नहीं थी, वो आज हकीकत बन रही हैं.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि कोविड महामारी के दौर में जब लंदन और यूरोप सहित अनेकों देशों में हेल्थ स्ट्रक्चर फेल हो गए थे तब भी भारत ने मजबूती दिखाई. देश में 200 करोड़ वेक्सीन लगाना कोई आसान काम नहीं था, जिसे सरकार ने साकार किया है. उन्होने मोदी के नेतृत्व में तकनीकी विकास की चर्चा करते हुए कहा कि पहले लोग बिल भरने से लेकर अनेकों सेवाओं के लिए घंटों तक लंबी लाइनों में लग कर समय बर्बाद करते थे, लेकिन सरकार की दूरगामी सोच के साथ डिजिटल इंडिया पहल ने सभी ऐसी सेवाओं को डिजिटल कर के सुगम बना दिया है.
उन्होंने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर हर चीज का मूल है, लेकिन कई बार ये दिखाई नहीं देता. देश में तकनीकी रूप से इसे मजबूत किया गया है. आज वन्देभारत ट्रेनों ने सफर के समय को बहुत ही कम कर दिया है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज जब दुनिया आर्थिक संकट झेल रही है, इस दौर में भी भारत साइनिंग स्टार बन कर उभर रहा है. इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकारी नीतियों में साकारात्मक बदलाव और देश के लोगों की कड़ी मेहनत ही है. आज गांधी के सपनों का भारत सामने नजर आने लगा है. मोदी के नेतृत्व में लोगों ने बदलाव की शुरुआत की है. सम्पूर्ण स्वच्छता के साथ शुरू हुआ बदलाव आज भारत के विकास की यात्रा में जबर्दस्त आयाम दिखाता है. नए भारत में हर व्यक्ति का भविष्य उज्ज्वल नज़र आता है.
ये भी पढ़ें : मनीष सिसोदिया को चाहिए आबकारी नीति से संबंधित दस्तावेज, विभाग ने देने से किया इनकार
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का जिक्र करते हुए कहा कि 34 साल बाद यह क्रांतिकारी कदम उठाया गया है. शिक्षा नीति के निर्माण में सभी हितधारकों से इनपुट लिए गए हैं इस नीति में पहली बार भारतीयता को समझा गया है. मातृ भाषा की ओर संकेत के द्वारा इस नीति के तहत देश की प्रतिभाओं को चमकने का मौका दिया गया है. धनखड़ ने कहा कि आज दुनिया की अनेकों बड़ी कंपनियों में भारतीय व्यक्ति उच्च पदों पर आसीन हैं. ये सब भारत के प्रतिभाशाली लड़के और लड़कियां ही कर रहे हैं. अब समय आ गया है जब युवाओं को इथेंटिक ओपिनियन मेकर बनना है. आपके पास आइडिया है तो पैसे की कोई कमी नहीं है. सरकार ने अनेकों योजनाओं से इसे सुलभ बना दिया है. आजादी के अमृत महोत्सव में आत्म निर्भर भारत एक नया कंसेप्ट बन कर उभरा है.
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि, गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के उपाध्यक्ष, विजय गोयल ने अपने संबोधन में कहा कि गांधी स्वच्छता, स्वदेशी, सत्याग्रह आदि की बात करते थे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले स्वच्छता का बीड़ा उठाया. गांधी के सबसे बड़े अनुयायी नरेंद्र मोदी ही हैं. उन्होंने लोकल फॉर वोकल और आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाओं के द्वारा गांधी के सपनों का भारत बनाने की पहल की है. यह कान्फ्रेंस उसी दिशा में सार्थक कदम है. उन्होने 50 वर्ष पहले के दिल्ली विश्वविद्यालय में अपने छात्र जीवन के अनेकों अनुभवों को भी साझा किया. इसके साथ ही उन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह को बधाई देते हुए कहा कि प्रो. योगेश ने एक वर्ष में ही पूरे विश्वविद्यालय को बदल कर रख दिया है.
ये भी पढ़ें : महंगाई में विदेशी सामान का विरोध गायब, राजनीतिक दलों ने लिया चीनी टोपियों का सहारा, प्रचार से खादी नदारद
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय की उपलब्धियों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1948 में यहां से पहली पीएचडी प्रदान की गई थी. इस वर्ष 802 विद्यार्थियों को पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई है.