नई दिल्ली: राजधानी को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग विधानसभा चुनाव के इतिहास में सबसे पुराना मुद्दा है. लेकिन यह कभी जनता का मुद्दा नहीं बन पाया है. दिल्ली को पूर्ण राज्य की मांग को सभी दलों ने अपने-अपने तरीके से एजेंडे में रखा, इस बार के चुनाव में अब तक किसी भी दल ने मुख्य तौर पर इसकी ना तो मांग रखी है ना ही किसी बड़े नेता का इस पर कोई बयान आया है.
वर्ष 1993 में उठी थी पूर्ण राज्य की मांग
दिल्ली में विधानसभा व्यवस्था बहाली के बाद 1993 में बीजेपी सत्ता में आई. दिल्ली में कई निकायों में बैठी व्यवस्था के विरोध में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने खीझ जताई और उसके बाद 1998 में हुए चुनाव में बीजेपी इस मांग को लेकर अधिक मुखर हो गई. बीजेपी को यह मुद्दा सत्ता में वापसी तो नहीं करा सका लेकिन सत्ताधारी कांग्रेस भी दबी जुबान से पूर्ण राज्य की मांग का समर्थन करती रही.
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी कई मौकों पर दिल्ली के प्रशासनिक व्यवस्था की जटिलता की आलोचना की. उन्होंने अलग-अलग निकायों के संबंध में में आ रही दिक्कतों के बीच पूर्ण राज्य की मान्यता को समाधान के रूप में देखा. हालांकि तब केंद्र व दिल्ली में एक ही पार्टी की सरकार थी. 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर इस मुद्दे को आजमाया और सत्ता में आने पर दिल्ली को पूर्ण राज्य का मान्यता दिलाने का वादा किया.
तब आम आदमी पार्टी की कांग्रेस के जनाधार में सेंध लगने के चलते बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी तो बन कर उभरी, लेकिन उसे सत्ता सुख नसीब नहीं हुआ. वर्ष 2015 में हुए मध्यावधि चुनाव के लिए भाजपा की ओर से जारी किए गए घोषणापत्र से यह मुद्दा बिल्कुल गायब हो गया. तब केंद्र में बीजेपी की सरकार आ चुकी थी. दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत हुई.
केजरीवाल ने भी पूर्ण राज्य का राग अलापा
सत्ता में आने के बाद अरविंद केजरीवाल ने भी पूर्व मुख्यमंत्रियों की तर्ज पर बहू निकाय प्रशासनिक व्यवस्था व केंद्रीय हस्तक्षेप की आलोचना शुरू की. उन्होंने पूर्ण राज्य की मांग को नए सिरे से उठाया. केजरीवाल ने पूर्ण राज्य की मांग को लेकर बकायदा एक अभियान भी चलाया था.
मगर अभी तक इस बार विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने में महज 10 दिन शेष बचे हैं. लेकिन ना ही आम आदमी पार्टी और ना ही बीजेपी और ना ही कांग्रेस ने घोषणा पत्र लाया है और ना ही पूर्ण राज्य के मुद्दे को अभी जनसभाओं में रोड शो में इसका जिक्र हो रहा है.
बता दें कि पूर्ण आज का मुद्दा भी दिल्ली विधानसभा के लिए अब तक के 6 चुनावों में छाया रहा है. इसके बावजूद इसको लेकर यहां कभी कोई जन आंदोलन नहीं हुआ. बीजेपी ने छह में से चार चुनाव इसी मुद्दे के आधार पर लड़ा. लेकिन उसे सत्ता नसीब नहीं हुई.