कोटा : आमतौर पर लोगों को घास पर नंगे पैर चलना काफी अच्छा लगता है. लेकिन नंगे पैर घास पर चहल-कदमी करना घातक भी साबित हो सकता है, क्योंकि नंगे पैर चलने के दौरान अगर अनजाने में स्क्रब टाइफस (Scrub Typhus) के कीड़े के संपर्क में आ गए तो ये जानलेवा साबित हो सकता है. इससे संक्रमित होने वाले 20 फीसदी लोगों में मल्टी ऑर्गन फेलियर तक भी हो जाता है, जिससे लोगों की जान जा सकती है.
मौसमी बीमारियों (Seasonal Diseases) में स्क्रब टाइफस भी राजस्थान के हाड़ौती में काफी पैर पसार रही है. इस साल अभी तक हाड़ौती के चारों जिलों में करीब 15 मामले स्क्रब टाइफस के सामने आ चुके हैं. हाड़ौती से लगे हुए मध्य प्रदेश के इलाके से भी काफी मात्रा में मरीज कोटा में उपचार करवाने के लिए आते हैं.
चिकित्सकों का कहना है कि पहले इसे ग्रामीण अंचल की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब यह शहरों में भी पैर पसार रही है. चिकित्सकों का कहना है कि इस बीमारी में डरने की जरूरत नहीं है. इसका पूरा उपचार उपलब्ध है और पर्याप्त दवाइयां भी हैं. अधिकांश मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत भी नहीं पड़ती है, लेकिन इलाज में देरी होने पर उनकी तबीयत बिगड़ सकती है, जो कि कई बार जानलेवा भी साबित होता है.
माइट के लार्वा 'शिगर' से इंसानों में फैलता है स्क्रब टाइफस...
स्क्रब टाइफस झाड़ियों या घास पर पाए जाने वाले कीड़े (माइट) के लार्वा से होता है. इसे शिगर बोलते हैं. शिगर स्किन पर काट लेता है तो शिगर की लार में मौजूद बैक्टीरिया व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाता है. पहले यह बीमारी ग्रामीण एरिया में ही होती थी. खेती के कार्य के दौरान या फिर जानवरों को चराने के दौरान झाड़ियों के संपर्क में आने पर इस बीमारी के होने की आशंका रहती थी, लेकिन अब शहरी लोग भी इसकी चपेट में आ रहे हैं. माना जा रहा है कि पिकनिक मनाने के लिए जाने के दौरान घास पर नंगे पैर घूमने के दौरान इस बीमारी की चपेट में आ जाते हैं.
पालतू जानवर भी बन सकते हैं जरिया, यह बरतें सावधानी...
मेडिसिन के सीनियर प्रोफेसर डॉ. मनोज सलूजा का कहना है कि पालतू जानवर जो झाड़ियों या फिर घास में घूम कर आता है, उसके शरीर पर भी इस तरह से माइट या शिगर चिपक जाता है. जिसके जरिए वह इंसानों के भी संपर्क में आ सकता है. लार्वा शिगर व्यक्ति की स्किन पर काट लेता है, जिसके जरिए वह इंसान में भी फैल जाता. चिकित्सकों की सलाह है कि शरीर को शिगर के काटने से बचाने के लिए बरसात के सीजन और बाद में पूरे शरीर पर ढके हुए कपड़े ही पहनें. खासकर घास या झाड़ियों में जाते समय ध्यान रखें. शरीर पर अगर लाल रैशेज होने लगे तो तुरंत चिकित्सक की सलाह लें, ताकि उपचार करवाया जा सकें.
तेज बुखार, शरीर पर निशान और मांसपेशियों में दर्द...
सामान्य तौर पर स्क्रब टाइफस के मरीज के बुखार तेज आता है और मांसपेशियों में दर्द की शिकायत भी रहती है. गले में संक्रमण भी रहता है. इसके अलावा लसीका ग्रंथि में भी सूजन आ जाती है. मरीज को तेज ठंड लगती है. जहां शिगर काटता है, वहां पर काला निशान या धब्बा बन जाता है. जिसे "एस्सार" बोला जाता है. स्क्रब टाइफस हो जाने पर मरीज के शरीर पर कई जगह लाल निशान हो जाते हैं.
ब्रेन, किडनी, लीवर और हार्ट को भी कर लेता है इनवॉल्व...
डॉ. सलूजा का कहना है कि स्क्रब टाइफस का इलाज शुरू करने में देरी होने पर शरीर के कई भीतरी अंग भी इसकी चपेट में आ जाते हैं. जिससे कि मल्टी ऑर्गन फेलियर की स्थिति भी बन जाती है. अगर मरीज के लिवर इसकी चपेट में आ जाता है, तो उसे पीलिया होने लगता है. हार्ट के इंवॉल्व होने पर मायो कार्डियम की शिकायत हो जाती है. इस बीमारी के चलते ब्रेन पर भी असर हो सकता है. जिसमें दिमाग में सूजन आना और दौरे की शिकायत भी हो जाती है. यहां तक कि किडनी फेलियर के मामले भी इसमें आते हैं. यदि मरीज इलाज में देरी हो जाए तो यह जानलेवा भी साबित हो सकता है.
3 सालों में सामने आए 116 मामले...
कोटा संभाग की बात की जाए तो यहां पर बीते 3 सालों में 116 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. इसके अलावा अन्य जिलों और मध्यप्रदेश से भी उपचार करवाने के लिए इतने ही मरीज कोटा में निजी और सरकारी अस्पतालों में पहुंचे हैं. हालांकि, प्रदेश और अन्य जिलों के बाहर होने के चलते यहां पर उनकी गणना नहीं की गई है. बीते 3 सालों में कोटा जिले में 36 मामले, बूंदी जिले में 28, झालावाड़ जिले में 38 और बारां जिले में 14 मामले सामने आए हैं. इनमें से कुछ लोगों की मौत भी हुई है.