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अमेरिका की अदालत ने केयर्न-भारत कानूनी मामले में समयसीमा तय की

वाशिंगटन की एक संघीय अदालत ने ब्रिटेन की केयर्न एनर्जी के एक मुकदमे को खारिज करने की मांग वाली भारत सरकार की याचिका पर जवाब देने के लिए समयसीमा तय की है.

केयर्न-भारत
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Published : Aug 27, 2021, 10:26 PM IST

नई दिल्ली : वाशिंगटन की एक संघीय अदालत ने ब्रिटेन की केयर्न एनर्जी के एक मुकदमे को खारिज करने की मांग वाली भारत सरकार की याचिका पर जवाब देने के लिए समयसीमा तय की है.

गौरतलब है कि एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने भारत सरकार को केयर्न को 1.2 अरब डॉलर का भुगतान करने का आदेश दिया था. इस आदेश को लागू करवाने के लिए ब्रिटिश ऊर्जा कंपनी ने अमेरिका की अदालत में मुकदमा दायर किया है.

डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया की अमेरिकी जिला अदालत के न्यायाधीश रिचर्ड जे लियोन ने केयर्न को सरकार की 'मोशन टू डिसमिस' (मुकदमा निरस्त करने की याचिका) याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए 10 सितंबर तक का समय दिया है.

इसके बाद भारत सरकार एक अक्टूबर तक अपनी याचिका के समर्थन में जवाब दाखिल कर सकती है.

अदालत के 25 अगस्त के आदेश के अनुसार, केयर्न इसके बाद 20 अक्टूबर तक जवाब दे सकती है और फिर भारत सरकार को अपने याचिका के समर्थन में अपना जवाब दाखिल करने के लिए और दो महीने का समय दिया गया है.

केयर्न ने इस साल मई में एक अमेरिकी संघीय अदालत में मामला दायर कर मध्यस्थता न्यायाधिकरण के फेसले के मुताबिक एयर इंडिया को उसे 1.26 अरब डॉलर देने के आदेश का पालन करने के लिए आदेश दिये जाने का आग्रह किया. अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने दिसंबर, 2020 में केयर्न के पक्ष में यह आदेश दिया था.

सरकार ने 13 अगस्त को डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया की अमेरिकी जिला अदालत में एक 'मोशन टू डिसमिस' याचिका दायर की, जिसमें कहा कि केयर्न और भारतीय कर प्राधिकरण के बीच विवाद उसके न्यायाधिकार क्षेत्र में नहीं आता.

पढ़ें - भारत समेत सभी देशों के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं : तालिबान के प्रवक्ता

इससे पहले भारत की संसद ने इस महीने की शुरुआत में एक संशोधन कानून पारित कर 2012 के पूर्व तिथि से कर लगाने संबंधी कानून के प्रावधान को निरस्त कर दिया गया. इस कानून के तहत सरकार को 50 साल पुराने मामले में भी कर लगाने की ताकत दी गयी थी. ऐसे मामले जहां विदेशों में बैठकर कंपनियों के मालिकाना हक में बदलाव हुआ और पूंजीगत लाभ की प्राप्त हुई लेकिन ऐसी कंपनियों का ज्यादातर कारोबार भारत में था.

वर्ष 2012 के इस कानून का इस्तेमाल केयर्न एनर्जी पर 10,247 करोड़ रुपये सहित 17 कंपनियों पर कुल मिलाकर 1.10 लाख करोड़ रुपये का कर लगाने के लिये किया गया था.

अधिकारियों ने कहा कि ऐसी कर मांगों को वापस लेने के लिए नियम बनाए जाने की प्रक्रिया चल रही है.

एक अधिकारी ने कहा, "पूर्वव्यापी कर मांगों को छोड़ने की जरूरतों में से एक यह है कि संबंधित पक्षों को सरकार/कर विभाग के खिलाफ सभी मामलों को वापस लेने के लिए शपथ पत्र देना होगा. इसलिए, जब यह सब प्रक्रियारत है, सरकार को किसी भी कानूनी मामले में जवाब देना होगा, जहां ऐसा करने के लिए समयसीमा है.

आयकर विभाग ने केयर्न की उसकी पूर्व भारतीय इकाई में 10 प्रतिशत हिस्सेदारी को बेच दिया, उसके 1,140 करोड़ रुपये के लाभांश को भी जब्त कर लिया. साथ ही 1,590 करोड़ रुपये के कर रिफंड को भी रोक लिया गया था.

केयर्न ने मामले को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण में चुनौती दी जिसने पिछले साल दिसंबर में सरकार के कदम को गलत करार दिया और पूरी राशि लौटाने का आदेश दिया.

नई दिल्ली : वाशिंगटन की एक संघीय अदालत ने ब्रिटेन की केयर्न एनर्जी के एक मुकदमे को खारिज करने की मांग वाली भारत सरकार की याचिका पर जवाब देने के लिए समयसीमा तय की है.

गौरतलब है कि एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने भारत सरकार को केयर्न को 1.2 अरब डॉलर का भुगतान करने का आदेश दिया था. इस आदेश को लागू करवाने के लिए ब्रिटिश ऊर्जा कंपनी ने अमेरिका की अदालत में मुकदमा दायर किया है.

डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया की अमेरिकी जिला अदालत के न्यायाधीश रिचर्ड जे लियोन ने केयर्न को सरकार की 'मोशन टू डिसमिस' (मुकदमा निरस्त करने की याचिका) याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए 10 सितंबर तक का समय दिया है.

इसके बाद भारत सरकार एक अक्टूबर तक अपनी याचिका के समर्थन में जवाब दाखिल कर सकती है.

अदालत के 25 अगस्त के आदेश के अनुसार, केयर्न इसके बाद 20 अक्टूबर तक जवाब दे सकती है और फिर भारत सरकार को अपने याचिका के समर्थन में अपना जवाब दाखिल करने के लिए और दो महीने का समय दिया गया है.

केयर्न ने इस साल मई में एक अमेरिकी संघीय अदालत में मामला दायर कर मध्यस्थता न्यायाधिकरण के फेसले के मुताबिक एयर इंडिया को उसे 1.26 अरब डॉलर देने के आदेश का पालन करने के लिए आदेश दिये जाने का आग्रह किया. अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने दिसंबर, 2020 में केयर्न के पक्ष में यह आदेश दिया था.

सरकार ने 13 अगस्त को डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया की अमेरिकी जिला अदालत में एक 'मोशन टू डिसमिस' याचिका दायर की, जिसमें कहा कि केयर्न और भारतीय कर प्राधिकरण के बीच विवाद उसके न्यायाधिकार क्षेत्र में नहीं आता.

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इससे पहले भारत की संसद ने इस महीने की शुरुआत में एक संशोधन कानून पारित कर 2012 के पूर्व तिथि से कर लगाने संबंधी कानून के प्रावधान को निरस्त कर दिया गया. इस कानून के तहत सरकार को 50 साल पुराने मामले में भी कर लगाने की ताकत दी गयी थी. ऐसे मामले जहां विदेशों में बैठकर कंपनियों के मालिकाना हक में बदलाव हुआ और पूंजीगत लाभ की प्राप्त हुई लेकिन ऐसी कंपनियों का ज्यादातर कारोबार भारत में था.

वर्ष 2012 के इस कानून का इस्तेमाल केयर्न एनर्जी पर 10,247 करोड़ रुपये सहित 17 कंपनियों पर कुल मिलाकर 1.10 लाख करोड़ रुपये का कर लगाने के लिये किया गया था.

अधिकारियों ने कहा कि ऐसी कर मांगों को वापस लेने के लिए नियम बनाए जाने की प्रक्रिया चल रही है.

एक अधिकारी ने कहा, "पूर्वव्यापी कर मांगों को छोड़ने की जरूरतों में से एक यह है कि संबंधित पक्षों को सरकार/कर विभाग के खिलाफ सभी मामलों को वापस लेने के लिए शपथ पत्र देना होगा. इसलिए, जब यह सब प्रक्रियारत है, सरकार को किसी भी कानूनी मामले में जवाब देना होगा, जहां ऐसा करने के लिए समयसीमा है.

आयकर विभाग ने केयर्न की उसकी पूर्व भारतीय इकाई में 10 प्रतिशत हिस्सेदारी को बेच दिया, उसके 1,140 करोड़ रुपये के लाभांश को भी जब्त कर लिया. साथ ही 1,590 करोड़ रुपये के कर रिफंड को भी रोक लिया गया था.

केयर्न ने मामले को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण में चुनौती दी जिसने पिछले साल दिसंबर में सरकार के कदम को गलत करार दिया और पूरी राशि लौटाने का आदेश दिया.

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