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सुप्रीम काेर्ट ने इलाहाबाद हाई काेर्ट के इस आदेश पर जताई नाराजगी

उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) द्वारा आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिकाएं खारिज किये जाने और उन्हें लंबे समय तक गिरफ्तारी से संरक्षण दिये जाने के आदेश पर सोमवार को नाखुशी जताई.

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Published : Jul 5, 2021, 11:04 PM IST

नई दिल्ली : प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना (Chief Justice NV Ramana) की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हम इस तरह के आदेशों की निंदा करते हैं. हमने देखा है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 90 दिनों के लिए संरक्षण देने का आदेश जारी किया है.

शीर्ष न्यायालय ने यह टिप्पणी दो महिलाओं की अपील पर सुनवाई करने के दौरान की, जो एक दहेज हत्या मामले में आरोपी हैं. दोनों महिलाओं ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 12 जनवरी के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें अग्रिम जमानत की उनकी याचिकाएं खारिज कर दी गई थीं. हालांकि, उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस को उनके खिलाफ 90 दिनों तक कोई कठोर कार्रवाई करने से रोक दिया था और यह स्पष्ट किया था कि संरक्षण की अवधि समाप्त होने के बाद जांचकर्ता कोई कठोर कार्रवाई कर सकते हैं.

न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की सदस्यता वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी में दर्ज दहेज हत्या के मामले में लीलावती देवी उर्फ लीलावती और राधा देवी की अपील पर राज्य सरकार को नोटिस भी जारी किया तथा कठोर कार्रवाई से उनका संरक्षण चार हफ्तों के लिए बढ़ा दिया.

न्यायालय ने कहा कि चार हफ्तों में जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया जाए. साथ ही, हाथ से नोटिस पहुंचाने की अनुमति दी जाती है. सरकारी वकील को उप्र सरकार के लिए भी पैरवी करने की अनुमति दी जाती है. इस बीच, आज से चार हफ्तों के लिए याचिकाकर्ताओं को अंतरिम संरक्षण दिया जाए. पीठ ने महिलाओं से जांच में सहयोग करने को कहा और याचिका को चार हफ्ते बाद के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

इसे भी पढ़ें : इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम काेर्ट में चुनौती, एनसीबी की हुई खिंचाई

बता दें कि उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा था कि याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत पाने के लिए हकदार नहीं हैं. मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ताओं के वकील के अनुरोध पर यह निर्देश दिया जाता है कि आज से 90 दिनों के अंदर याचिकाकार्ता उपस्थित हों और अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करें और जमानत की अर्जी दें. तब तक याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाए.
(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना (Chief Justice NV Ramana) की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हम इस तरह के आदेशों की निंदा करते हैं. हमने देखा है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 90 दिनों के लिए संरक्षण देने का आदेश जारी किया है.

शीर्ष न्यायालय ने यह टिप्पणी दो महिलाओं की अपील पर सुनवाई करने के दौरान की, जो एक दहेज हत्या मामले में आरोपी हैं. दोनों महिलाओं ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 12 जनवरी के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें अग्रिम जमानत की उनकी याचिकाएं खारिज कर दी गई थीं. हालांकि, उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस को उनके खिलाफ 90 दिनों तक कोई कठोर कार्रवाई करने से रोक दिया था और यह स्पष्ट किया था कि संरक्षण की अवधि समाप्त होने के बाद जांचकर्ता कोई कठोर कार्रवाई कर सकते हैं.

न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की सदस्यता वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी में दर्ज दहेज हत्या के मामले में लीलावती देवी उर्फ लीलावती और राधा देवी की अपील पर राज्य सरकार को नोटिस भी जारी किया तथा कठोर कार्रवाई से उनका संरक्षण चार हफ्तों के लिए बढ़ा दिया.

न्यायालय ने कहा कि चार हफ्तों में जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया जाए. साथ ही, हाथ से नोटिस पहुंचाने की अनुमति दी जाती है. सरकारी वकील को उप्र सरकार के लिए भी पैरवी करने की अनुमति दी जाती है. इस बीच, आज से चार हफ्तों के लिए याचिकाकर्ताओं को अंतरिम संरक्षण दिया जाए. पीठ ने महिलाओं से जांच में सहयोग करने को कहा और याचिका को चार हफ्ते बाद के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

इसे भी पढ़ें : इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम काेर्ट में चुनौती, एनसीबी की हुई खिंचाई

बता दें कि उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा था कि याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत पाने के लिए हकदार नहीं हैं. मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ताओं के वकील के अनुरोध पर यह निर्देश दिया जाता है कि आज से 90 दिनों के अंदर याचिकाकार्ता उपस्थित हों और अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करें और जमानत की अर्जी दें. तब तक याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाए.
(पीटीआई-भाषा)

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