नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने एक बच्ची के यौन उत्पीड़न के मामले में बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को लेकर पैदा हुए विवाद की गंभीरता पर विचार करते हुए मामले में सहयोग करने के लिए शुक्रवार को एक न्याय मित्र (amicus curiae) नियुक्त किया.
इस मामले में उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून के प्रावधानों के तहत बरी कर दिया था. उच्चतम न्यायालय ने अटार्नी जनरल (महान्यायवादी) द्वारा इसका उल्लेख किये जाने पर शीर्ष अदालत ने बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के 19 जनवरी के फैसले पर 27 जनवरी को रोक लगा दी थी तथा अपील दायर करने की अनुमति दी थी.
न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि इस मामले में विवाद की गंभीरता को देखते हुए न्याय मित्र नियुक्त करने की जरूरत है क्योंकि यह एक ऐसा मामला है, जहां आरोपी प्रतिनिधित्व के बगैर नहीं रह सकता.
पीठ ने कहा कि वह इस विषय को 24 अगस्त को उस दिन के प्रथम मामले के रूप में निस्तारण के लिए सूचीबद्ध करेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने ये दिया आदेश
पीठ ने अपने आदेश में कहा, हम वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे से न्यायमित्र के रूप में न्यायालय की सहायता करने का आग्रह करते हैं. रजिस्ट्री को मामले के कागजात दवे को फौरन भेजने का निर्देश दिया जाता है. अटार्नी जनरल (एजी) के. के. वेणुगोपाल द्वारा इसका उल्लेख किये जाने पर शीर्ष अदालत ने 27 जनवरी को उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी थी और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भी जारी किया था. साथ ही, वेणुगोपाल को उच्च न्यायालय के 19 जनवरी के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने की अनुमति दी थी.
पीठ ने अपने आदेश में कहा था, 'जो कुछ कहा गया है, उसके मद्देनजर हम अटार्नी जनरल को उक्त फैसले के खिलाफ उपयुक्त याचिका दायर करने की अनुमति देते हैं. इस बीच, हम पॉक्सो कानून की धारा आठ के तहत अपराध के संदर्भ में...आपराधिक अपील में आरोपी को बरी किये जाने पर रोक लगाते हैं.'
'खतरनाक उदाहरण' स्थापित होने की संभावना
वेणुगोपाल ने इस विषय का उल्लेख करते हुए दलील दी थी कि उच्च न्यायालय का फैसला अभूतपूर्व है और इससे एक 'खतरनाक उदाहरण' स्थापित होने की संभावना है. उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि किसी बच्ची के शरीर के अंग को छूने के दौरान त्वचा से त्वचा का स्पर्श नहीं होने को पॉक्सो कानून के तहत यौन उत्पीड़न नहीं करार दिया जा सकता.
'कपड़े हटाए बगैर स्पर्श यौन उत्पीड़न नहीं'
उच्च न्यायालय ने कहा था कि चूंकि व्यक्ति ने बच्ची के कपड़े हटाए बगैर उसे स्पर्श किया था, ऐसे में इस अपराध को यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता लेकिन यह भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का मामला बनता है.
उच्च न्यायालय ने एक सत्र अदालत के आदेश में संशोधन किया था, जिसने 12 साल की एक बच्ची का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन साल की कैद की सजा सुनाई थी. अभियोजन के मुताबिक बच्ची के साथ यह घटना नागपुर में दिसंबर 2016 को हुई थी, जब आरोपी, सतीश, उसे कुछ खिलाने के बहाने अपने घर ले गया था.
उच्च न्यायालय के इस फैसले व इस तरह के अन्य फैसलों को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गई हैं जिनमें एक याचिका वकीलों के संगठन यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने भी दायर की है.
पढ़ें- महिला के शरीर के किसी भी हिस्से के साथ यौनाचार जैसा कोई भी कृत्य बलात्कार : हाई कोर्ट
(पीटीआई-भाषा)