नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें अदालत ने भारती एयरटेल को जुलाई से सितंबर 2017 तक जीएसटी के रूप में चुकाए गए अतिरिक्त 923 करोड़ रुपये को वापस करने के लिए कहा था. शीर्ष अदालत ने कहा कि गलतियों और चूक को सुधारने की अनुमति केवल शुरुआती चरणों में है.
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने उच्च न्यायालय के पांच मई 2020 के फैसले के खिलाफ केंद्र की अपील को स्वीकार किया. हाई कोर्ट ने एयरटेल को फॉर्म जीएसटीआर-3बी, जीएसटी सारांश रिटर्न फॉर्म को सुधारने की अनुमति दी थी.
न्यायालय ने कहा कि एक करदाता को फॉर्म जीएसटीआर-3बी में इलेक्ट्रॉनिक रूप से जमा किए गए अपने रिटर्न को एकतरफा तरीके से सुधारने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, क्योंकि इससे अन्य हितधारकों के दायित्व और देनदारियां प्रभावित होंगी.
पीठ ने कहा, 'कानून केवल फॉर्म जीएसटीआर 1 और जीएसटीआर 3 के प्रारंभिक चरणों में गलतियों और चूक को सुधारने की अनुमति देता है, लेकिन एक तय तरीके से.' शीर्ष अदालत ने कहा कि आयुक्त (जीएसटी) द्वारा 29 दिसंबर 2017 को जारी परिपत्र संख्या 26/26/2017 जीएसटी को चुनौती टिकाऊ नहीं है. न्यायालय ने हालांकि रिट याचिका पर विचार करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बारे में केंद्र की दलील को खारिज कर दिया.
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फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय एयरटेल ने कहा कि यह मामला 2017 का है, जब जीएसटी को पेश ही किया गया था, और कंपनी ने उपलब्ध इनपुट टैक्स क्रेडिट का उपयोग करने के बजाय जीएसटी के लिए 923 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि का भुगतान कर दिया. कंपनी ने एक बयान में कहा, 'आज के आदेश में माननीय उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि कंपनी को बाद के रिटर्न में इनपुट टैक्स क्रेडिट के रूप में 923 करोड़ रुपये की राशि पाने की आजादी है, जिसे कंपनी ने विधिवत पूरा किया था.'
(पीटीआई-भाषा)