नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रदत समानता का अधिकार इसका दावा करने वाले व्यक्ति के पक्ष में निहित अधिकार है, साथ ही यह सरकार एवं उसके तंत्रों के खिलाफ लागू करने योग्य है.
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि समानता एक निश्चित अवधारणा है जिसमें संवैधानिक गारंटी की प्रकृति से उत्पन्न एक अंतर्निहित सीमा है.
न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की पीठ ने अब बंद हो चुके आजम जाही मिल्स के 318 पूर्व कर्मचारियों द्वारा दायर अपील को अनुमति प्रदान कर दी, जिसमें 134 पूर्व कर्मचारियों के साथ समानता की मांग की गई थी. मिल के 134 पूर्व कर्मचारियों को 200 वर्ग गज के भूखंड नि:शुल्क आवंटित किये गये थे.
पीठ ने कहा, 'उपरोक्त को देखते हुए और ऊपर बताए गए कारणों से, ये दोनों अपीलें स्वीकार की जाती हैं. हैदराबाद में तेलंगाना उच्च न्यायालय द्वारा 19 फरवरी, 2020 को दिये गये इस विवादित निर्णय और आदेश को निरस्त किया जाता है तथा एकल न्यायाधीश द्वारा पारित निर्णय और आदेश को बहाल किया जाता है.'
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शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि काकतीया शहरी विकास प्राधिकरण (कुडा) और राज्य सरकार के शहरी विकास विभाग तत्कालीन आजम जाही मिल्स के शेष 318 पूर्व कर्मचारियों को भी उन 134 पूर्व कर्मचारियों के समान माने और उनकी अर्जी पर विचार करे, जिन्हें 2007 के सरकारी आदेशानुसार 200 वर्ग मीटर की भूखंड नि:शुल्क आवंटित किया गया था.
पीठ ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रदत समानता का अधिकार इसका दावा करने वाले व्यक्ति के पक्ष में निहित है और यह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्तियों के प्रयोग में सरकार एवं इसके साधनों के खिलाफ लागू करने योग्य है.
(पीटीआई-भाषा)