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Bihar: यहां पूरा गांव पकड़ता है मछलियां, घर-घर होती है फ्री में सप्लाई, जानें क्यों?

भारत में हर राज्य, जिले में बहुत से उत्सव मनाए जाते हैं. इनमें कई अजीबोगरीब उत्सव भी शामिल हैं. आज ऐसे ही एक अनोखे उत्सव के बारे में हम आपको बता रहे हैं. जहां विभिन्न प्रजाति की मछलियों को हर घर तक पहुंचाया जाता है (Fish festival in shiekhpura) और वो भी बिल्कुल मुफ्त. पढ़ें बिहार के शेखपुरा से ये खास रिपोर्ट.

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Published : Apr 20, 2022, 5:16 PM IST

शेखपुरा: दुनिया के अलग-अलग इलाकों में लोग कई तरह के रीति-रिवाज को मानते हैं और अजीबोगरीब तरीकों से उत्सव मनाते हैं, लेकिन आज हम आपको बिहार के एक ऐसे त्योहार के बारे में बताएंगे, जिसमें पूरा गांव मिलकर मछली पकड़ता है और फिर उसे फ्री में घर घर बांटते (Fish Is Given As A Gift in shiekhpura) हैं. जी हां, इस त्योहार के बारे में जानकर आपको थोड़ा अजीब जरूर लग रहा होगा, लेकिन यह बात बिल्कुल सच है.

एक साथ मछली मारने की परंपरा : बिहार के शेखपुरा जिले के बरबीघा प्रखंड के सर्वा गांव के लोग इस त्योहार को मनाते है, जिसे 'मछली उत्सव' (Fish festival is celebrated in shiekhpura) के नाम से जाना जाता है. वर्षों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक गांव के सारे लोग, बच्चे-बुजुर्ग और पुरुष-महिलाएं मिलकर गांव के पोखर से पानी निकलते है. इसके बाद पोखर से मछली निकालते हैं. इन मछलियों को बराबर-बराबर भाग में गांव के सभी परिवारों के बीच बांटा जाता है. इतना ही यदि कोई परिवार किसी काम से गांव से बाहर गया हो तो उसके दरवाजे पर मछलियां रख दी जाती हैं.

चार दिनों तक मनाया जाता है 'मछली उत्सव' : यह उत्सव तीन से चार दिनों का होता है. सभी ग्रामीण इस उत्सव में शामिल होते हैं. गांव के लोग बताते हैं कि इस उत्सव को मनाने की परंपरा सदियों पुरानी है और गांव के लोग इस परंपरा को अब तक निभा रहे हैं. हालांकि, यह परंपरा कब शुरू हुई, किसने शुरू की, इसकी जानकारी किसी को नहीं है. मिथिला में संक्रांति के अगले दिन तालाब की सफाई का पर्व जुड़-शीतल मनाया जाता है. बता दें कि मिथिलांचल का नववर्ष यानी जुड़ शीतल का अर्थ होता है आपका जीवन शीतलता से भरा रहे. मिथिलांचल के घर-घर में आज भी यह परंपरा पूरे उत्साह के साथ निभाई जाती है.

शेखपुरा का मछली उत्सव

यह भी पढ़ें- बीच सड़क पर थम्सअप की बोतलें उठाने की मची होड़, जानें मामला

फिलहाल, शेखपुरा जिले के बरबीघा प्रखंड के सर्वा गांव में 350 बीघा में फैला यह पोखर गांव के खेतों की सिंचाई का मुख्य स्रोत है. इस आहर के कारण यहां खेतों को पानी की कमी कभी महसूस नहीं होती. ग्रामीणों के मुताबिक, इस बार पोखर में पानी ज्यादा होने से अगल-बगल के तालाब की मछलियां भी इसमें आ गई थीं, जिसके कारण उन्हें अमेरिकन रेहू, गयरा, टेंगरा, मांगुर, सिंघी, पोठिया और डोरी का स्वाद मिला है. इस मछली उत्सव को लोग उत्साह से मनाते हैं.

शेखपुरा: दुनिया के अलग-अलग इलाकों में लोग कई तरह के रीति-रिवाज को मानते हैं और अजीबोगरीब तरीकों से उत्सव मनाते हैं, लेकिन आज हम आपको बिहार के एक ऐसे त्योहार के बारे में बताएंगे, जिसमें पूरा गांव मिलकर मछली पकड़ता है और फिर उसे फ्री में घर घर बांटते (Fish Is Given As A Gift in shiekhpura) हैं. जी हां, इस त्योहार के बारे में जानकर आपको थोड़ा अजीब जरूर लग रहा होगा, लेकिन यह बात बिल्कुल सच है.

एक साथ मछली मारने की परंपरा : बिहार के शेखपुरा जिले के बरबीघा प्रखंड के सर्वा गांव के लोग इस त्योहार को मनाते है, जिसे 'मछली उत्सव' (Fish festival is celebrated in shiekhpura) के नाम से जाना जाता है. वर्षों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक गांव के सारे लोग, बच्चे-बुजुर्ग और पुरुष-महिलाएं मिलकर गांव के पोखर से पानी निकलते है. इसके बाद पोखर से मछली निकालते हैं. इन मछलियों को बराबर-बराबर भाग में गांव के सभी परिवारों के बीच बांटा जाता है. इतना ही यदि कोई परिवार किसी काम से गांव से बाहर गया हो तो उसके दरवाजे पर मछलियां रख दी जाती हैं.

चार दिनों तक मनाया जाता है 'मछली उत्सव' : यह उत्सव तीन से चार दिनों का होता है. सभी ग्रामीण इस उत्सव में शामिल होते हैं. गांव के लोग बताते हैं कि इस उत्सव को मनाने की परंपरा सदियों पुरानी है और गांव के लोग इस परंपरा को अब तक निभा रहे हैं. हालांकि, यह परंपरा कब शुरू हुई, किसने शुरू की, इसकी जानकारी किसी को नहीं है. मिथिला में संक्रांति के अगले दिन तालाब की सफाई का पर्व जुड़-शीतल मनाया जाता है. बता दें कि मिथिलांचल का नववर्ष यानी जुड़ शीतल का अर्थ होता है आपका जीवन शीतलता से भरा रहे. मिथिलांचल के घर-घर में आज भी यह परंपरा पूरे उत्साह के साथ निभाई जाती है.

शेखपुरा का मछली उत्सव

यह भी पढ़ें- बीच सड़क पर थम्सअप की बोतलें उठाने की मची होड़, जानें मामला

फिलहाल, शेखपुरा जिले के बरबीघा प्रखंड के सर्वा गांव में 350 बीघा में फैला यह पोखर गांव के खेतों की सिंचाई का मुख्य स्रोत है. इस आहर के कारण यहां खेतों को पानी की कमी कभी महसूस नहीं होती. ग्रामीणों के मुताबिक, इस बार पोखर में पानी ज्यादा होने से अगल-बगल के तालाब की मछलियां भी इसमें आ गई थीं, जिसके कारण उन्हें अमेरिकन रेहू, गयरा, टेंगरा, मांगुर, सिंघी, पोठिया और डोरी का स्वाद मिला है. इस मछली उत्सव को लोग उत्साह से मनाते हैं.

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