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गाय से संबंधित इम्तिहान के एलान के बाद गर्माने लगी राजनीति

2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी तभी गायों को लेकर नीति-निर्देश बनने लगे थे. वहीं, अब कामधेनु आयोग के एलान के बाद विपक्षी पार्टियों ने गाय पर राजनीति शुरू कर दी है.

cow politics again on political platform
बीजेपी ने बताए गाय से संबंधित फायदे
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Published : Jan 6, 2021, 7:24 PM IST

नई दिल्ली : 1 साल पहले मोदी सरकार द्वारा बनाए गए कामधेनु आयोग को लेकर एक बार फिर राजनीति शुरू हो गई है. आयोग ने एलान किया है कि देश में 25 फरवरी को गाय से संबंधित इम्तिहान कराया जाएगा. इस एलान के बाद गाय पर राजनीति गर्मा गई है.

विपक्षी पार्टियों ने इस एलान के बाद कामधेनु आयोग पर भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप जड़ दिया. वहीं, भारतीय जनता पार्टी और विश्लेषकों का मानना है कि पुरातन काल से ही गाय, व्यक्तियों के लिए आत्मनिर्भरता का साधन रही है, लेकिन लोगों को इसकी जानकारी बहुत कम है और इसी उद्देश्य से इस परीक्षा का आयोजन किया जा रहा है.

2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार आई थी तभी केंद्र सरकार ने गायों से संबंधित नीति-निर्देश बनाने शुरू कर दिए थे. वहीं, जब उत्तर प्रदेश में चुनाव था तब भी यह मसला काफी उछाला गया था. हालांकि, भारतीय जनता पार्टी ने गाय के संरक्षण को लेकर बातें अपने संकल्प पत्र में भी लिखी थी. इससे जुड़े तमाम मुद्दों को विपक्ष ने जमकर राजनीतिक रंग भी दिया था लेकिन कामधेनु आयोग के द्वारा देश में गाय से संबंधित परीक्षा कराए जाने की घोषणा के बाद से एक बार फिर गाय पर राजनीति की शुरुआत हो गई है.

परीक्षा पास करने वालों को मिलेगी सरकारी नौकरी में वरीयता

गाय विज्ञान जागरुकता परीक्षा के नाम से एनिमल हसबेंडरी मंत्रालय के तहत आने वाले राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने इस बात की घोषणा की है कि गाय से संबंधित परीक्षा में उत्तीर्ण छात्रों को आगे सरकारी नौकरियों में भी ग्रेस नंबर के साथ-साथ वरीयता भी दी जाएगी. इससे इतर आयोग ने दावा किया है कि 800 मरीजों पर क्लीनिकल ट्रायल किया गया और यह पाया गया कि गौ मूत्र से बनने वाली दवा और पंचगव्य से 96% मरीज कोविड-19 से ठीक हो गए. यह अपने आप में एक चौंकाने वाली खबर थी. जिसके बाद विपक्षी पार्टियों ने इसे बीजेपी का एजेंडा तक बता दिया. विपक्षियों की दलील थी कि भारतीय जनता पार्टी के राम मंदिर और धारा 370 एजेंडा अब खत्म हो चुका है और अब बंगाल चुनाव को देखते हुए सरकार अपने मंत्रालय के सहारे गाय का एजेंडा चलाना चाहती है.

बीजेपी नेता ने दिया बयान

इस पर भारतीय जनता पार्टी के नेता सुदेश वर्मा का कहना है कि यह कोई भारतीय जनता पार्टी के लिए एजेंडा नहीं है. गाय के संरक्षण की बात भारतीय जनता पार्टी ने अपने 2014 के ही संकल्प पत्र में की थी और उसी के तहत यह सारे कदम उठाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि गोमूत्र से बनने वाली दवाइयां और गाय के दूध के फायदे पूरी दुनिया जानती है. गोमूत्र को पेटेंट करवाने के लिए दूसरे देश भी आगे आ रहे हैं. ऐसे में अपने देश के ही विपक्षी पार्टी के लोग उसे राजनीतिक एजेंडा बता रहे हैं जबकि गाय भारतीय जनता पार्टी के लिए कोई राजनीतिक एजेंडा कभी नहीं रही है और गौ सेवा हमेशा से मानव जीवन के लिए सर्वोपरि रहा है.

होना चाहिए गाय का संरक्षण

इस मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि सबसे पहले तो वह यह बताना चाहेंगे कि गाय का जो पंचगव्य होता है उसी पर एक इंसान बड़ा होता है और पुरातन काल में भी जब बच्चे बीमार होते थे तो गाय के घी को नाक पर लगा दिया जाता था और उससे सर्दी दूर हो जाती थी. देसी गाय के दूध की जो क्वालिटी होती है वह काफी उच्च स्तर की होती है और वह विदेशों में बहुत ही ऊंची कीमत पर बेची जाती है. गाय को हमारे देश में मोबाइल क्लीनिक भी माना गया है और उसे चलता फिरता अस्पताल भी बोला जाता है. उन्होंने कहा कि संविधान में भी गांधी जी का यह बहुत बड़ा उद्देश्य था कि गाय का संवर्धन और संरक्षण होना चाहिए.

कोलकाता में की गई थी स्लॉटर हाउस की शुरुआत

निगम का कहना है कि गांधी जी ने यह मुहिम शुरू की थी और संविधान में भी जो हमारा अनुच्छेद 48 है उसमें भी यह साफ किया हुआ है कि कॉउ स्लॉटर या गाय को मारने पर सजा का प्रावधान हो सकता है मगर इसकी जानकारी लोगों को कम है. उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने सबसे पहले स्लॉटर हाउस की शुरुआत की थी जो कोलकाता में की गई थी और हजारों की संख्या में गायों को मारना शुरू किया था. इससे हमारी इकोनॉमी पर असर पड़ा था क्योंकि गाय एक आत्मनिर्भरता का साधन थी ग्रामीण अंचल में गाय के सहारे लोग जीवन यापन करते थे इसलिए इसकी जानकारी देने की लोगों को जरूरत है और यह सभी के लिए मान्य नहीं है बल्कि यह आप पर निर्भर रखा गया है कि आप परीक्षा दे सकते हैं या नहीं दे सकते हैं इसलिए यह एक सरकार की अच्छी पहल मानी जानी चाहिए.

गाय के दूध के कई फायदे

राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम का यह भी कहना है कि गो विज्ञान की जो प्रचार-प्रसार और तरीका सरकार ने जो अपनाया है. इससे गो विज्ञान के बारे में जानकारी लोगों को अपने देश में आगे बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि वो कई ऐसे मुस्लिम परिवारों को भी जानते हैं जिनमें बच्चा मां के दूध के बाद गाय के दूध पर ही पला बढ़ा है और वह भी इस बात को मानते हैं क्योंकि गाय के दूध के फायदे हैं बच्चों के लिए और यह किसी भी राजनीतिक दल से ऊपर की बात है चाहे वह कांग्रेस हो चाहे भारतीय जनता पार्टी हो इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बताया जाना चाहिए.

पढ़ें: गौ विज्ञान पर ऑनलाइन होगा राष्ट्रीय परीक्षा का आयोजन : कामधेनु आयोग

नहीं करनी चाहिए ओछी राजनीति

निगम ने कहा कि बीजेपी ने यह बात अपने संकल्प पत्र में ही कह दी थी और इस संकल्प पत्र के माध्यम से ही जनता ने उन्हें इतनी भारी संख्या में सीट दिला कर जिताया था और गाय के संरक्षण की बात तभी जनता ने उनके संकल्प पत्र को मान लिया था इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि अगर कोई राजनीतिक पार्टी संकल्प पत्र में कोई बात देकर भूल जाए तो वह गलत है लेकिन पार्टी ने गाय के संरक्षण की बात को अपने संकल्प पत्र में दिया था और उसे वह पूरा करके दिखा रही है. उन्होंने कहा कि गाय के दूध या गाय से बनी चीजें जीवन की पद्धति है इसे क्या बीजेपी क्या कांग्रेस सभी के लोग घर में इस्तेमाल करते हैं तो इसे एक राजनीतिक मुद्दा करार दिया जाना कहीं से भी सही नहीं है और सरकार की मैं इसे एक बड़ी और अच्छी पहल मानूंगा क्योंकि अमेरिका में लोग गोमूत्र को पेटेंट करवा रहे हैं अमेरिका में गोमूत्र को तीन अलग-अलग नामों से पेटेंट कराया गया है तो फिर इन चीजों की इस विज्ञान की जानकारी भारतीयों को क्यों नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि इससे कैंसर विरोधी दवाएं बन रही हैं और इसलिए इस पर ओछी राजनीति नहीं की जानी चाहिए.

नई दिल्ली : 1 साल पहले मोदी सरकार द्वारा बनाए गए कामधेनु आयोग को लेकर एक बार फिर राजनीति शुरू हो गई है. आयोग ने एलान किया है कि देश में 25 फरवरी को गाय से संबंधित इम्तिहान कराया जाएगा. इस एलान के बाद गाय पर राजनीति गर्मा गई है.

विपक्षी पार्टियों ने इस एलान के बाद कामधेनु आयोग पर भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप जड़ दिया. वहीं, भारतीय जनता पार्टी और विश्लेषकों का मानना है कि पुरातन काल से ही गाय, व्यक्तियों के लिए आत्मनिर्भरता का साधन रही है, लेकिन लोगों को इसकी जानकारी बहुत कम है और इसी उद्देश्य से इस परीक्षा का आयोजन किया जा रहा है.

2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार आई थी तभी केंद्र सरकार ने गायों से संबंधित नीति-निर्देश बनाने शुरू कर दिए थे. वहीं, जब उत्तर प्रदेश में चुनाव था तब भी यह मसला काफी उछाला गया था. हालांकि, भारतीय जनता पार्टी ने गाय के संरक्षण को लेकर बातें अपने संकल्प पत्र में भी लिखी थी. इससे जुड़े तमाम मुद्दों को विपक्ष ने जमकर राजनीतिक रंग भी दिया था लेकिन कामधेनु आयोग के द्वारा देश में गाय से संबंधित परीक्षा कराए जाने की घोषणा के बाद से एक बार फिर गाय पर राजनीति की शुरुआत हो गई है.

परीक्षा पास करने वालों को मिलेगी सरकारी नौकरी में वरीयता

गाय विज्ञान जागरुकता परीक्षा के नाम से एनिमल हसबेंडरी मंत्रालय के तहत आने वाले राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने इस बात की घोषणा की है कि गाय से संबंधित परीक्षा में उत्तीर्ण छात्रों को आगे सरकारी नौकरियों में भी ग्रेस नंबर के साथ-साथ वरीयता भी दी जाएगी. इससे इतर आयोग ने दावा किया है कि 800 मरीजों पर क्लीनिकल ट्रायल किया गया और यह पाया गया कि गौ मूत्र से बनने वाली दवा और पंचगव्य से 96% मरीज कोविड-19 से ठीक हो गए. यह अपने आप में एक चौंकाने वाली खबर थी. जिसके बाद विपक्षी पार्टियों ने इसे बीजेपी का एजेंडा तक बता दिया. विपक्षियों की दलील थी कि भारतीय जनता पार्टी के राम मंदिर और धारा 370 एजेंडा अब खत्म हो चुका है और अब बंगाल चुनाव को देखते हुए सरकार अपने मंत्रालय के सहारे गाय का एजेंडा चलाना चाहती है.

बीजेपी नेता ने दिया बयान

इस पर भारतीय जनता पार्टी के नेता सुदेश वर्मा का कहना है कि यह कोई भारतीय जनता पार्टी के लिए एजेंडा नहीं है. गाय के संरक्षण की बात भारतीय जनता पार्टी ने अपने 2014 के ही संकल्प पत्र में की थी और उसी के तहत यह सारे कदम उठाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि गोमूत्र से बनने वाली दवाइयां और गाय के दूध के फायदे पूरी दुनिया जानती है. गोमूत्र को पेटेंट करवाने के लिए दूसरे देश भी आगे आ रहे हैं. ऐसे में अपने देश के ही विपक्षी पार्टी के लोग उसे राजनीतिक एजेंडा बता रहे हैं जबकि गाय भारतीय जनता पार्टी के लिए कोई राजनीतिक एजेंडा कभी नहीं रही है और गौ सेवा हमेशा से मानव जीवन के लिए सर्वोपरि रहा है.

होना चाहिए गाय का संरक्षण

इस मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि सबसे पहले तो वह यह बताना चाहेंगे कि गाय का जो पंचगव्य होता है उसी पर एक इंसान बड़ा होता है और पुरातन काल में भी जब बच्चे बीमार होते थे तो गाय के घी को नाक पर लगा दिया जाता था और उससे सर्दी दूर हो जाती थी. देसी गाय के दूध की जो क्वालिटी होती है वह काफी उच्च स्तर की होती है और वह विदेशों में बहुत ही ऊंची कीमत पर बेची जाती है. गाय को हमारे देश में मोबाइल क्लीनिक भी माना गया है और उसे चलता फिरता अस्पताल भी बोला जाता है. उन्होंने कहा कि संविधान में भी गांधी जी का यह बहुत बड़ा उद्देश्य था कि गाय का संवर्धन और संरक्षण होना चाहिए.

कोलकाता में की गई थी स्लॉटर हाउस की शुरुआत

निगम का कहना है कि गांधी जी ने यह मुहिम शुरू की थी और संविधान में भी जो हमारा अनुच्छेद 48 है उसमें भी यह साफ किया हुआ है कि कॉउ स्लॉटर या गाय को मारने पर सजा का प्रावधान हो सकता है मगर इसकी जानकारी लोगों को कम है. उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने सबसे पहले स्लॉटर हाउस की शुरुआत की थी जो कोलकाता में की गई थी और हजारों की संख्या में गायों को मारना शुरू किया था. इससे हमारी इकोनॉमी पर असर पड़ा था क्योंकि गाय एक आत्मनिर्भरता का साधन थी ग्रामीण अंचल में गाय के सहारे लोग जीवन यापन करते थे इसलिए इसकी जानकारी देने की लोगों को जरूरत है और यह सभी के लिए मान्य नहीं है बल्कि यह आप पर निर्भर रखा गया है कि आप परीक्षा दे सकते हैं या नहीं दे सकते हैं इसलिए यह एक सरकार की अच्छी पहल मानी जानी चाहिए.

गाय के दूध के कई फायदे

राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम का यह भी कहना है कि गो विज्ञान की जो प्रचार-प्रसार और तरीका सरकार ने जो अपनाया है. इससे गो विज्ञान के बारे में जानकारी लोगों को अपने देश में आगे बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि वो कई ऐसे मुस्लिम परिवारों को भी जानते हैं जिनमें बच्चा मां के दूध के बाद गाय के दूध पर ही पला बढ़ा है और वह भी इस बात को मानते हैं क्योंकि गाय के दूध के फायदे हैं बच्चों के लिए और यह किसी भी राजनीतिक दल से ऊपर की बात है चाहे वह कांग्रेस हो चाहे भारतीय जनता पार्टी हो इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बताया जाना चाहिए.

पढ़ें: गौ विज्ञान पर ऑनलाइन होगा राष्ट्रीय परीक्षा का आयोजन : कामधेनु आयोग

नहीं करनी चाहिए ओछी राजनीति

निगम ने कहा कि बीजेपी ने यह बात अपने संकल्प पत्र में ही कह दी थी और इस संकल्प पत्र के माध्यम से ही जनता ने उन्हें इतनी भारी संख्या में सीट दिला कर जिताया था और गाय के संरक्षण की बात तभी जनता ने उनके संकल्प पत्र को मान लिया था इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि अगर कोई राजनीतिक पार्टी संकल्प पत्र में कोई बात देकर भूल जाए तो वह गलत है लेकिन पार्टी ने गाय के संरक्षण की बात को अपने संकल्प पत्र में दिया था और उसे वह पूरा करके दिखा रही है. उन्होंने कहा कि गाय के दूध या गाय से बनी चीजें जीवन की पद्धति है इसे क्या बीजेपी क्या कांग्रेस सभी के लोग घर में इस्तेमाल करते हैं तो इसे एक राजनीतिक मुद्दा करार दिया जाना कहीं से भी सही नहीं है और सरकार की मैं इसे एक बड़ी और अच्छी पहल मानूंगा क्योंकि अमेरिका में लोग गोमूत्र को पेटेंट करवा रहे हैं अमेरिका में गोमूत्र को तीन अलग-अलग नामों से पेटेंट कराया गया है तो फिर इन चीजों की इस विज्ञान की जानकारी भारतीयों को क्यों नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि इससे कैंसर विरोधी दवाएं बन रही हैं और इसलिए इस पर ओछी राजनीति नहीं की जानी चाहिए.

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