बेंगलुरु : कर्नाटक हाई कोर्ट ने ड्रग सेलिंग केस पर फैसले में कहा कि अगर पुलिस को किसी अपराध के होने की कोई गुप्त सूचना मिलती है तो एफआईआर दर्ज करने के पहले उस अपराध को रोकना या नियंत्रण करना ज्यादा महत्वपूर्ण है.
ड्रग सेलिंग केस के तहत न्यायिक हिरासत में चल रहे केरल के कन्नूर स्थित मूल निवासी तसलीम, हसीब और राजिक अली ने जमानत अर्जी दायर की है. इस मामले की सुनवाई के दौरान, आदेश की घोषणा श्रीनिवास हरीश कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने की.
जांच के दौरान आवेदक की ओर से पेश होने वाले वकीलों ने कहा कि पुलिस ने सूचना मिलने के बाद हमला किया, लेकिन जैसे ही जानकारी उपलब्ध हुई, एफआईआर दर्ज करनी पड़ी. हालांकि, पुलिस ने एफआईआर दर्ज किए बिना छापेमारी की है. हमले के दौरान कोई ड्रग नहीं मिला. वहीं पाए गए ड्रग की एफएसएल ने ड्रग्स की मात्रा के बारे में रिपोर्ट नहीं की है. इस प्रकार आवेदक एनडीपीएस अधिनियम पर लागू नहीं होता है. इसलिए आरोपी को जमानत दी जाए.
सरकार के अधिवक्ताओं ने तर्क दिया है कि जब पुलिस ने छापा मारा तो पीड़ितों के घर नशीले पदार्थ पाए गए. जिसपर पुलिस ने कार्यवाही की और सामान जब्त कर लिया. कोरोना स्थिति के कारण उपलब्ध दवाओं को तुरंत एफएसएल को नहीं भेजा गया था. इस प्रकार एफएसएल रिपोर्ट मिलने में देर हो गई. आरोपी दवा बेचने की गतिविधियों में शामिल हैं इसलिए उन्हें जमानत नहीं दी जानी चाहिए.
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इस मामले में हाई कोर्ट का फैसला
अपराध स्थल के बारे में जानकारी प्राप्त किए बिना किसी देरी के एफआईआर दर्ज करना पुलिस का कर्तव्य है. यदि उन्हें कोई अपराध के बारे में कोई गोपनीय जानकारी मिलती है तो पुलिस के लिए उसे रोकना ज्यादा महत्वपूर्ण है. यह सही है कि पुलिस ने एफआईआर दर्ज किए बिना नशीले पदार्थों को छापा मार कर उसे जब्त किया. इसी तरह, आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी गई.
जानिए पूरा मामला
11 जून 2020 को, सेंट्रल क्राइम डिवीजन पुलिस ने मारुति डेंटल कॉलेज के पास छापा मारा. वहां से ड्रग्स बेट रहे केरल के कन्नूर के छह युवकों को गिरफ्तार. एनडीपीएस अधिनियम की धारा 20 (बी), 8 (सी), 22 (बी), 22 (सी) के तहत शिकायत दर्ज की गई थी. पुलिस ने घटना स्थल से एलएसडी स्ट्रिप्स, मारिजुआना, एमडीएमए और एक्स्टसी गोलियां भी जब्त कीं. तीनों आरोपियों ने जमानत के लिए अर्जी दी थी.