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सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या केस: 34वें दिन हिंदू पक्ष ने पेश की दलीलें, 18 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी करने पर जोर

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Published : Sep 30, 2019, 11:18 PM IST

Updated : Oct 2, 2019, 4:30 PM IST

अयोध्या मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज एक बार इस बात पर जोर दिया है कि मामले की सुनवाई 18 अक्टूबर तक पूरी कर ली जाए. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ ने स्पष्ट किया है कि जरूरत पड़ने पर शनिवार को भी सुनवाई की जा सकती है. जानें पूरा विवरण

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में एक हिंदू पक्षकार ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि भगवान राम के अलावा अयोध्या में विवादित स्थल पर उनके जन्म स्थान को भी विधिक अधिकार प्राप्त माना जा सकता है और वह उस भूमि पर दावा करने के लिए मुकदमा करने में सक्षम है.

राम लला विराजमान का प्रतिनिधित्व कर रहे एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने मुस्लिम पक्षकारों की आपत्तियों पर जवाब देते हुए यह कहा.

दरअसल, मुस्लिम पक्षकारों ने दलील दी है कि देवता के जन्म स्थान को न्यायिक कार्यवाही से जुड़ा दर्जा नहीं दिया जा सकता क्योंकि हिंदुओं की यह याचिका राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर मुसलमानों के और उनके किसी कानूनी दावे के अधिकार को छीन लेगी.

वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरन ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा, यदि भगवान राम का जन्म स्थान माने जाने वाली इस भूमि को हिंदू श्रद्धापूर्ण मानते हैं और उन्होंने इस तरह की मान्यताओं को लेकर वहां पूजा अर्चना करना चाहा है, तो इस भूमि को उस प्रतिमा के साथ विधिक अधिकार प्राप्त माना जा सकता है.

परासरन ने कहा कि इस भूमि को स्पष्ट रूप से भगवान राम की माना जा सकता है.

वहीं, ‘राम लला विराजमान की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने इस मामले के सौहार्द्रपूर्ण हल के लिए मध्यस्थता के बारे में मीडिया में आई कुछ खबरों का जिक्र किया और कहा कि वह इसमें आगे भाग लेना नहीं चाहते हैं तथा पीठ से एक न्यायिक फैसला चाहेंगे.

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक शुरूआती मध्यस्थता प्रक्रिया नाकाम हो जाने के बाद दशकों पुराने इस संवेदनशील मामले की छह अगस्त से प्रतिदिन कार्यवाही शुरू करने के बाद आज 34 वें दिन भी सुनवाई की.

हालांकि, शीर्ष अदालत ने 18 सितंबर को कहा था कि वह मामले की प्रतिदिन सुनवाई जारी रखेगी और इस बीच विभिन्न पक्ष विवाद के हल के लिए मध्यस्थता प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं.

पीठ ने कहा था कि उसे तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति का नेतृत्व कर रहे शीर्ष न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला का एक पत्र प्राप्त हुआ है, जिसमें कहा गया है कि कुछ पक्षकारों ने उनसे मध्यस्थता प्रक्रिया बहाल करने का अनुरोध किया है.

न्यायालय ने कहा था कि पक्षकार ऐसा करते हैं और मध्यस्थता समिति के समक्ष प्रक्रिया गोपनीय बनी रह सकती है.

शीर्ष अदालत ने कहा था कि मामले में सुनवाई आखिरी चरण में है और वह 18 अक्टूबर तक कार्यवाही पूरा करना चाहती है.

पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं.

पीठ ने सुनवाई 18 अक्टूबर तक पूरा करने के अपने संकल्प को भी दोहराया.

न्यायालय ने यह भी कहा, यदि जरूरत पड़ी तो हम शनिवार को भी बैठेंगे

शीर्ष न्यायालय प्रतिदिन शाम चार बजे के बजाय शाम पांच बजे तक अयोध्या मामले की सुनवाई कर रहा है.

पीठ ने निर्मोही अखाड़ा के वकील से कहा, 'हम आपकी ओर से दलील देने के लिए एक वकील को इजाजत देंगे...हमारे पास समय नहीं है. क्या आप नहीं चाहते कि हम आदेश जारी करें,'

न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन को शुक्रवार को दलीलें पेश करने को भी कहा,वह मुस्लिम पक्षों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

इससे पहले शीर्ष अदालत ने आध्यात्मिक गुरु एवं आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता एवं जाने माने मध्यस्थ श्रीराम पंचू की सदस्यता वाली तीन सदस्यीय समिति की इस रिपोर्ट पर भी गौर किया था कि करीब चार महीने चली मध्यस्थता प्रक्रिया में कोई अंतिम समाधान नहीं निकला.

पढ़ें- अयोध्या केस: कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से कहा, ASI रिपोर्ट कोई साधारण राय नहीं

न्यायालय की कार्यवाही के दौरान कुछ मुस्लिम वादियों की ओर से पेश हुए अधिवक्ता निजाम पाशा ने हिंदू पक्षकारों की इन दलीलों का विरोध किया कि शरिया और कुरान के कानूनों के मुताबिक बाबरी मस्जिद (का ढांचा) एक वैध मस्जिद नहीं थी और बाबर एक गुनाहगार था.

पीठ ने कहा कि वह यहां इस बारे में फैसला करने के लिए नहीं बैठी है कि शासक (बाबर) गुनाहगार था या नहीं.

सुनवाई के बाद हिंदू महासभा के अधिवक्ता विष्णु शंकर ने कहा कि बुधवार को गांधी जयंती के अवसर पर अदालत को बंद कर दिया जाएगा.

विष्णु शंकर

उन्होंने निर्मोही अखाड़े का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील जैन को अपनी दलीलें पेश करने के लिए एक घंटे का समय दिया जाएगा. इससे पहले हिंदुओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पीएन मिश्रा ने भी समय मांगा था लेकिन सीजेआई ने इसे अस्वीकार कर दिया था.

क्या है पूरा मामला
बता दें कि उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था. इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपील दायर की गयी थीं जिन पर इस समय संविधान पीठ सुनवाई कर रही हैं.

नई दिल्ली: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में एक हिंदू पक्षकार ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि भगवान राम के अलावा अयोध्या में विवादित स्थल पर उनके जन्म स्थान को भी विधिक अधिकार प्राप्त माना जा सकता है और वह उस भूमि पर दावा करने के लिए मुकदमा करने में सक्षम है.

राम लला विराजमान का प्रतिनिधित्व कर रहे एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने मुस्लिम पक्षकारों की आपत्तियों पर जवाब देते हुए यह कहा.

दरअसल, मुस्लिम पक्षकारों ने दलील दी है कि देवता के जन्म स्थान को न्यायिक कार्यवाही से जुड़ा दर्जा नहीं दिया जा सकता क्योंकि हिंदुओं की यह याचिका राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर मुसलमानों के और उनके किसी कानूनी दावे के अधिकार को छीन लेगी.

वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरन ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा, यदि भगवान राम का जन्म स्थान माने जाने वाली इस भूमि को हिंदू श्रद्धापूर्ण मानते हैं और उन्होंने इस तरह की मान्यताओं को लेकर वहां पूजा अर्चना करना चाहा है, तो इस भूमि को उस प्रतिमा के साथ विधिक अधिकार प्राप्त माना जा सकता है.

परासरन ने कहा कि इस भूमि को स्पष्ट रूप से भगवान राम की माना जा सकता है.

वहीं, ‘राम लला विराजमान की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने इस मामले के सौहार्द्रपूर्ण हल के लिए मध्यस्थता के बारे में मीडिया में आई कुछ खबरों का जिक्र किया और कहा कि वह इसमें आगे भाग लेना नहीं चाहते हैं तथा पीठ से एक न्यायिक फैसला चाहेंगे.

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक शुरूआती मध्यस्थता प्रक्रिया नाकाम हो जाने के बाद दशकों पुराने इस संवेदनशील मामले की छह अगस्त से प्रतिदिन कार्यवाही शुरू करने के बाद आज 34 वें दिन भी सुनवाई की.

हालांकि, शीर्ष अदालत ने 18 सितंबर को कहा था कि वह मामले की प्रतिदिन सुनवाई जारी रखेगी और इस बीच विभिन्न पक्ष विवाद के हल के लिए मध्यस्थता प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं.

पीठ ने कहा था कि उसे तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति का नेतृत्व कर रहे शीर्ष न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला का एक पत्र प्राप्त हुआ है, जिसमें कहा गया है कि कुछ पक्षकारों ने उनसे मध्यस्थता प्रक्रिया बहाल करने का अनुरोध किया है.

न्यायालय ने कहा था कि पक्षकार ऐसा करते हैं और मध्यस्थता समिति के समक्ष प्रक्रिया गोपनीय बनी रह सकती है.

शीर्ष अदालत ने कहा था कि मामले में सुनवाई आखिरी चरण में है और वह 18 अक्टूबर तक कार्यवाही पूरा करना चाहती है.

पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं.

पीठ ने सुनवाई 18 अक्टूबर तक पूरा करने के अपने संकल्प को भी दोहराया.

न्यायालय ने यह भी कहा, यदि जरूरत पड़ी तो हम शनिवार को भी बैठेंगे

शीर्ष न्यायालय प्रतिदिन शाम चार बजे के बजाय शाम पांच बजे तक अयोध्या मामले की सुनवाई कर रहा है.

पीठ ने निर्मोही अखाड़ा के वकील से कहा, 'हम आपकी ओर से दलील देने के लिए एक वकील को इजाजत देंगे...हमारे पास समय नहीं है. क्या आप नहीं चाहते कि हम आदेश जारी करें,'

न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन को शुक्रवार को दलीलें पेश करने को भी कहा,वह मुस्लिम पक्षों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

इससे पहले शीर्ष अदालत ने आध्यात्मिक गुरु एवं आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता एवं जाने माने मध्यस्थ श्रीराम पंचू की सदस्यता वाली तीन सदस्यीय समिति की इस रिपोर्ट पर भी गौर किया था कि करीब चार महीने चली मध्यस्थता प्रक्रिया में कोई अंतिम समाधान नहीं निकला.

पढ़ें- अयोध्या केस: कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से कहा, ASI रिपोर्ट कोई साधारण राय नहीं

न्यायालय की कार्यवाही के दौरान कुछ मुस्लिम वादियों की ओर से पेश हुए अधिवक्ता निजाम पाशा ने हिंदू पक्षकारों की इन दलीलों का विरोध किया कि शरिया और कुरान के कानूनों के मुताबिक बाबरी मस्जिद (का ढांचा) एक वैध मस्जिद नहीं थी और बाबर एक गुनाहगार था.

पीठ ने कहा कि वह यहां इस बारे में फैसला करने के लिए नहीं बैठी है कि शासक (बाबर) गुनाहगार था या नहीं.

सुनवाई के बाद हिंदू महासभा के अधिवक्ता विष्णु शंकर ने कहा कि बुधवार को गांधी जयंती के अवसर पर अदालत को बंद कर दिया जाएगा.

विष्णु शंकर

उन्होंने निर्मोही अखाड़े का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील जैन को अपनी दलीलें पेश करने के लिए एक घंटे का समय दिया जाएगा. इससे पहले हिंदुओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पीएन मिश्रा ने भी समय मांगा था लेकिन सीजेआई ने इसे अस्वीकार कर दिया था.

क्या है पूरा मामला
बता दें कि उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था. इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपील दायर की गयी थीं जिन पर इस समय संविधान पीठ सुनवाई कर रही हैं.

Intro:The Supreme Court asserted again today on completion of the Ayodhya dispute case by October 18 which was set as the deadline by the 5 judge constitution bench headed by the Chief Justice Of India Ranjan Gogoi. While discussing the time with the advocates of both, the muslim and the hindu party, the CJI said that, "we don't have the time".


Body:The court has given time till thursday for the hindu parties to submit their rejoinder. On Wednesday the court will be closed on the occassion of Gandhi Jayanti which gives the Hindu parties 2 days. Senior Advocate Sushil Jain representing Nirmohi Akhara would be given one hour for his submissions. Senior Advocate PN Mishra appearing for Hindus had also asked for time but was declined by the CJI.

Senior Advocate, Rajeev Dhawan, appearing for the muslims will resume his submissions on friday now.

Today Shekhar Naphde resumed his arguments after friday when CJI had said that the hearing was not going as per the schedule.

Advocate Nizam Pasha appearing for the muslims said that Babur was a soverign and the soverign did nor recognise the quran as the law. He might be tested as a sinner based on it but the legality of his actions could not be tested based on it.

Referring to the first mosque built by the Prophet and also a mosque built by Humayun, Pasha said that a mosque could be without minarets and there was no specific architecture for it. He also said that wuzu was not necessary for a mosque and the Sharif suggested to go home for wuzu.

On the Hindus argument that food and kitchen could not be inside the mosque, Pasha contended that people travelled to preach and the mosque had all such arrangements for them inside the mosque. He also cited that Hadith says ,"we used to eat meat in the mosque".

Senior Advocate Prasaran appearing for Ramlalla also gave reply to Dr Dhawan's arguments today and emphasized on the juristic character attached to the land.


Conclusion:The court heard the matter till 5pm today and said that it may hear it on saturday. Advocate Vishnu Shanker from Hindu mahasabha said that the hearings would be completed before 18th october.
Last Updated : Oct 2, 2019, 4:30 PM IST
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