पठानकोट : कोरोना महामारी ने भारत-पाकिस्तान सीमा से सटे गांवों में बच्चों की शिक्षा को प्रभावित किया है. आज हम बात कर रहे हैं पंजाब के पठानकोट जिले में सीमावर्ती गांव सिंबल सकोल की. यह गांव आज भी अपनी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. ऐसे परिदृश्य में, जब ऑनलाइन शिक्षा की आवश्यकता ने शहरों के साथ डिजिटल विभाजन को व्यापक बना दिया है.
जीरो लाइन पर बसे इस गांव में मोबाइल नेटवर्क उपलब्ध न होने के कारण बच्चों को अपनी पढ़ाई में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. बच्चों की कक्षाएं ऑनलाइन चलती हैं, लेकिन मोबाइल टावरों की कमी के कारण यहां के बच्चे ऑनलाइन क्लास नहीं कर पाते हैं.
बच्चों के माता-पिता का कहना है कि हम केवल स्कूल की फीस भर रहे हैं, क्योंकि स्कूल ऑनलाइन शिक्षा का संचालन कर रहे हैं और हमारे गांव में कोई मोबाइल टॉवर नहीं है तो हमारे बच्चे कैसे पढ़ाई करेंगे.
इस संबंध में ईटीवी भारत ने शिक्षा विभाग के अधिकारी जगजीत सिंह से बात की. इस दौरान उन्होंने कहा कि उन्हें भी इसके बारे में पता है. इसलिए, सरकार ने मोबाइल नेटवर्क नहीं होने पर टेलीविजन के माध्यम से बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास किया है.
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आजादी के 70 वर्षों के बाद भी किसी भी सरकार ने भारत के इस अंतिम गांव के लोगों पर कोई ध्यान नहीं दिया है. यहां आज भी लोगों को नदी पार करने के लिए नाव का इस्तेमाल करना पड़ता है. ऐसे में डिजिटल माध्यम से शिक्षा एक छलावा लगता है. महामारी के दौरान भी, सरकारों को देश के भविष्य के लिए जमीनी स्तर पर प्रयास करने के लिए एक वास्तविक प्रयास करने की आवश्यकता है.