वाराणसी : अयोध्या में विवादित स्थल को लेकर फैसला आ चुका है. फैसले से पहले देश भर में एक अजब सी बेचैनी थी. बेचैनी इस बात की यह फैसला किसके पक्ष या विपक्ष में आएगा उसके बाद क्या होगा. इसे लेकर सरकार पूरी तरह से अलर्ट मोड में रही. फैसला आने के बाद से दोनों समुदाय के लोगों को भाईचारे का संदेश देने के लिए हर कोई अपने स्तर पर प्रयास कर रहा है. इन सबके बीच हम आज उस असली तस्वीर को दिखाने जा रहे हैं, जो धर्म नगरी वाराणसी की है. यह तस्वीर है तो एक मस्जिद की, लेकिन यहां पर हिन्दू मुस्लिम एकता की एक ऐसी मिसाल है, जो शायद देश में कहीं ना देखने को मिले.
ऐसा इसलिए कि इस मस्जिद मैं मुतवल्ली की भूमिका में कोई मुस्लिम समुदाय का शख्स नहीं बल्कि एक हिन्दू समुदाय का व्यक्ति है, जो बीते 60 सालों से मस्जिद की देखरेख और सारे कार्यक्रमों को पूरा कर रहा है. क्या है इस मस्जिद से जुड़ी हिन्दू मुस्लिम एकता की अद्भुत मिसाल, जानिए इस खास खबर में.
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मस्जिद का इतिहास पुराना
मस्जिद के अंदर चार दुर्वेश है, जिनमें सैयद तारा शाह बाबा, मीरा शाह बाबा, अनार शहीद बाबा, चौखंबा बाबा के साथ 24 जिन्नात और 41 कुतुब के अलावा जिन्नातों का खेड़ा भी यहां मौजूद है. इस पवित्र स्थान पर जितनी शिद्दत से मुस्लिम समुदाय के लोग इबादत करते हैं, उतना ही हिन्दुओं का भी जुड़ाव यहां से है, लेकिन इन सबसे अलग सबसे चौंकाने वाली बात है इस मस्जिद की देखरेख किसी मुस्लिम नहीं बल्कि हिंदू के हाथों में हैं. मस्जिद के मुख्य द्वार पर ही प्लास्टिक लगाकर टीन शेड में अपना जीवन बिताने वाले बेचन बाबा 60 सालों से इस मस्जिद में हिन्दू होने के बाद भी मुतवल्ली की भूमिका में हैं.
यदुवंशी समाज में जन्मे बेचन बाबा ने पिता को देखकर इस मस्जिद में देखरेख का काम शुरू किया और घर द्वार छोड़कर मस्जिद के मेन गेट पर ही अपना जीवन बिताना शुरू कर दिया. मस्जिद से कुछ दूर पर उनके दो बेटे चाय की दुकान चलाते हैं और वह भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चल कर हिन्दू होने के बाद भी मस्जिद की पूरी तरह से देखरेख करते हैं.
बेचन बाबा के सर पर मस्जिद की जिम्मेदारियां
तीन पीढ़ियों से बेचन बाबा यहां सेवा दे रहे हैं यहां होने वाले और चांद की तारीख और अन्य मुख्य आयोजनों की जिम्मेदारी भी इन्हीं के कंधे पर होती है जिसे यह बखूबी निभाते हैं.
हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल 60 वर्षीय बेचन बाबा
घनी आबादी वाली हिन्दू बस्ती में इस मस्जिद का होना और मस्जिद में बतौर मुतवल्ली किसी मुस्लिम की जगह हिन्दू का सेवा देना निश्चित तौर पर हर किसी को चौंका देगा, लेकिन 60 वर्षों से बेचन बाबा इस भूमिका को बखूबी निभा रहे हैं और मुस्लिम समुदाय के लोग भी यहां आने के बाद उनकी बातों को मानते हैं.
इनका कहना है कि यह सब सिर्फ कही सुनी बातें हैं कि हिन्दू-मुस्लिम में एकता नहीं है बनारस का यह पवित्र स्थान इतना बड़ा संदेश दे रहा है कि सब एक हैं और फैसला अयोध्या को लेकर जो भी आए लेकिन बस यही संदेश है कि चाहे मंदिर बने या मस्जिद, हैं दोनों इबादत का स्थान, इसलिए फैसले का स्वागत सभी को करना चाहिए ताकि देश में अमन चैन कायम रहे.