फतेहाबाद : ऑस्ट्रेलिया में हरियाणा से पहले काउंसलर बनने वाले सुरेंद्र पाल इन दिनों भारत आए हुए हैं. जींद के टोहाना गांव के निवासी सुरेंद्र पाल अपने दोस्तों के साथ वक्त बिता रहे हैं.
दरअसल सुरेंद्र पाल काउंसलर बनने के बाद पहली बार भारत यात्रा पर आएं हैं, इसलिए उनसे मिलने वालों का लगातार तांता लगा हुआ है.
2007 में जींद छोड़कर गए थे ऑस्ट्रेलिया
सुरेंद्र पाल ने बताया कि वो 2007 में जींद छोड़कर कुछ सपने लेकर ऑस्ट्रेलिया गए थे. उन्हें खुद इस बात का अंदाजा नहीं थी कि ऑस्ट्रेलिया में उन्हें इतना मान सम्मान मिलेगा. उन्होंने बताया कि वो पहली बार चुनाव लड़े और पहली बार में ही सफल हुए.
तय किया टैक्सी ड्राइवर से काउंसलर तक का सफर
सुरेंद्र पाल जब ऑस्ट्रेलिया पहुंचे थे तो वहां उन्होंने टैक्सी ड्राइवर के तौर पर अपनी आजीविका शुरू की थी. इस दौरान टैक्सी ड्राइवर्स से जुड़ी मांगों को लेकर उन्होंने आंदोलन में भागीदारी की. इसके बाद उन्होंने कई आंदोलनों में हिस्सा लिया और वो देखते ही देखते वहां के लोगों के बीच चर्चित नाम बन गए.
सुरेंद्र पाल को मिला स्थानीय लोगों का प्यार
सुरेंद्र पाल बेहद गर्व से बताते हैं कि वो साउथ ऑस्ट्रेलिया में पहले हरियाणवी काउंसलर बने हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें स्थानीय निवासियों का बेहद सहयोग मिला, जिस एरिया में उन्होंने चुनाव लड़ा, वहां 90 प्रतिशत स्थानीय और 10 प्रतिशत ही दूसरे देश से आकर बसे हुए लोग हैं. बता दें कि सुरेंद्र पाल मूल रूप से हरियाणा के जींद जिले के जाजनवास के रहने वाले हैं.
ऑस्ट्रेलिया के प्रति लगाव, लेकिन नहीं भुलाया अपना गांव
सुरेंद्र पाल ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया से उन्हें वहां की व्यवस्था के चलते बेहद लगाव हो चुका है. उन्हें वहां की स्थायी नागरिकता भी प्राप्त है, लेकिन वो अपना गांव भी नहीं भूले हैं. उन्होंने अपनी गाड़ी पर अपने गांव झाझवन के नाम की प्लेट को बकायदा रजिस्टर्ड करके लगवाई हुई है.
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कैसे काम करते हैं वहां के जनप्रतिनिधि ?
सुरेंद्र पाल बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में राजनीतिक जनप्रतिनिधि का वीआईपी कल्चर नहीं है. वहां पर विशेष अवसरों को छोड़कर चुने हुए जनप्रतिनिधि अपनी गाड़ी भी खुद ही ड्राइव करते हैं. उनके आने-जाने पर कोई रोड जाम नहीं होती उन से आमजन आसानी से संपर्क कर सकता है.