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भारत में कृषि रसायनों का आयात तो बढ़ा लेकिन निर्यात से कई गुना ज्यादा क्यों? - मेक इन इंडिया

केंद्र सरकार मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने की बात कहती है जबकि आंकड़े इससे अलग ही आंकड़े कुछ और ही कर रहे हैं. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में कृषि रसायनों का आयात 37 फीसद तक बढ़ गया है. वहीं कृषि आयात की विकास दर 31 फीसद है जबकि निर्यात की विकास दर मात्र 6 प्रतिशत है.

कृष्णबीर चौधरी
कृष्णबीर चौधरी
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Published : May 16, 2021, 8:40 PM IST

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री मोदी ने मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने की बात कही और कृषि क्षेत्र और उनसे जुड़े उद्योगों पर सरकार विशेष ध्यान देने की बात कहती है लेकिन सरकार के आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां करते हैं. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में कृषि रसायनों का आयात 37 फीसद तक बढ़ गया है. वहीं कृषि आयात की विकास दर 31 फीसद है जबकि निर्यात की विकास दर मात्र 6 प्रतिशत है.

वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में वर्ष 2020-21 में कृषि रसायनों का आयात रु 9,096 करोड़ से बढ़कर 12,418 करोड़ रुपये हो गया है. यह पिछले वर्षों की तुलना में 37 फीसद की बढ़ोतरी है. वहीं यदि निर्यात की बात करें तो बढ़ोतरी आयात से बहुत नीचे है. वर्ष 2020-21 में निर्यात 23,757 करोड़ से बढ़ कर 26,513 करोड़ रुपये का हुआ है. यह बढ़ोतरी 12 फीसद है.

साथ ही वर्ष 2019-20 और 2020-21 को शामिल करें तो कृषि आयात की विकास दर 31 फीसद है जबकि निर्यात की विकास दर महज 6 फीसद है.

भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी से बातचीत
ऐसे में सवाल उठते हैं की यदि देश में कृषि रसायनों का आयात बढ़ता है तो क्या यह किसानों के लिए बेहतर है या देश में बने कृषि रसायनों का ही पर्याप्त उत्पादन कृषि क्षेत्र के लिए विकल्प बन सकते हैं ?

इस विषय पर ईटीवी भारत ने किसान नेता और भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी से बातचीत की है. इस पर उनका कहना था कि भारत में कृषि रसायनों के आयात में हुई अप्रत्याशित बढ़ोतरी एक अच्छा ट्रेंड नहीं है. उनका कहना है कि इतनी बड़ी मात्रा में आयात की कोई आवश्यकता नहीं है. भारत के कृषि रसायनों की बेहतर गुणवत्ता और किफायती कीमत के कारण कई देशों में आज भारी मांग है.

इसके बावजूद बहुराष्ट्रीय कंपनियों और भारत में कृषि रसायन आयात करने वालों की लॉबी देश में बने कृषि रसायनों का दुष्प्रचार कर उन्हें बदनाम करते हैं. ऐसी अफवाह उड़ाई गई की इनके गुणवत्ता में नकली दवाइयों का प्रतिशत 30 फीसद तक है जबकि देश की संसद में केंद्रीय कृषि मंत्री ने खुद कहा था कि बड़े स्तर पर सैंपल की जांच में पता चला कि केवल 2 फीसद ही उत्पाद ऐसे हैं जो मानकों पर खरे नहीं उतरे.

पढ़ें - हिमाचल के सेब कारोबार पर कोरोना और खराब मौसम की दोहरी मार

किसान नेता कृष्णबीर चौधरी मानते हैं कि हमें अपने देश में बन रहे कृषि रसायनों पर ही भरोसा करना चाहिए और उनके उत्पादन और विकास को बढ़ावा देना चाहिए. कुछ एनजीओ और उनके लॉबी से जुड़े तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता भारत में बने कृषि रसायनों को बदनाम करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं और इनकी आड़ में कृषि रसायनों के आयात में बढ़ोतरी कर बहुराष्ट्रीय कम्पनियां और आयातकों की लॉबी मुनाफाखोरी करती है.

उनका कहना है की इस प्रक्रिया में नौकरशाहों की भूमिका भी कहीं न कहीं संलिप्त होती है. सरकार की मंशा बेशक ठीक हो लेकिन नौकरशाहों और लॉबी के कारण ही आज कृषि प्रधान देश भारत में कृषि रसायन आयात ज्यादा और निर्यात कम हो रहा है.

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री मोदी ने मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने की बात कही और कृषि क्षेत्र और उनसे जुड़े उद्योगों पर सरकार विशेष ध्यान देने की बात कहती है लेकिन सरकार के आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां करते हैं. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में कृषि रसायनों का आयात 37 फीसद तक बढ़ गया है. वहीं कृषि आयात की विकास दर 31 फीसद है जबकि निर्यात की विकास दर मात्र 6 प्रतिशत है.

वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में वर्ष 2020-21 में कृषि रसायनों का आयात रु 9,096 करोड़ से बढ़कर 12,418 करोड़ रुपये हो गया है. यह पिछले वर्षों की तुलना में 37 फीसद की बढ़ोतरी है. वहीं यदि निर्यात की बात करें तो बढ़ोतरी आयात से बहुत नीचे है. वर्ष 2020-21 में निर्यात 23,757 करोड़ से बढ़ कर 26,513 करोड़ रुपये का हुआ है. यह बढ़ोतरी 12 फीसद है.

साथ ही वर्ष 2019-20 और 2020-21 को शामिल करें तो कृषि आयात की विकास दर 31 फीसद है जबकि निर्यात की विकास दर महज 6 फीसद है.

भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी से बातचीत
ऐसे में सवाल उठते हैं की यदि देश में कृषि रसायनों का आयात बढ़ता है तो क्या यह किसानों के लिए बेहतर है या देश में बने कृषि रसायनों का ही पर्याप्त उत्पादन कृषि क्षेत्र के लिए विकल्प बन सकते हैं ?

इस विषय पर ईटीवी भारत ने किसान नेता और भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी से बातचीत की है. इस पर उनका कहना था कि भारत में कृषि रसायनों के आयात में हुई अप्रत्याशित बढ़ोतरी एक अच्छा ट्रेंड नहीं है. उनका कहना है कि इतनी बड़ी मात्रा में आयात की कोई आवश्यकता नहीं है. भारत के कृषि रसायनों की बेहतर गुणवत्ता और किफायती कीमत के कारण कई देशों में आज भारी मांग है.

इसके बावजूद बहुराष्ट्रीय कंपनियों और भारत में कृषि रसायन आयात करने वालों की लॉबी देश में बने कृषि रसायनों का दुष्प्रचार कर उन्हें बदनाम करते हैं. ऐसी अफवाह उड़ाई गई की इनके गुणवत्ता में नकली दवाइयों का प्रतिशत 30 फीसद तक है जबकि देश की संसद में केंद्रीय कृषि मंत्री ने खुद कहा था कि बड़े स्तर पर सैंपल की जांच में पता चला कि केवल 2 फीसद ही उत्पाद ऐसे हैं जो मानकों पर खरे नहीं उतरे.

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किसान नेता कृष्णबीर चौधरी मानते हैं कि हमें अपने देश में बन रहे कृषि रसायनों पर ही भरोसा करना चाहिए और उनके उत्पादन और विकास को बढ़ावा देना चाहिए. कुछ एनजीओ और उनके लॉबी से जुड़े तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता भारत में बने कृषि रसायनों को बदनाम करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं और इनकी आड़ में कृषि रसायनों के आयात में बढ़ोतरी कर बहुराष्ट्रीय कम्पनियां और आयातकों की लॉबी मुनाफाखोरी करती है.

उनका कहना है की इस प्रक्रिया में नौकरशाहों की भूमिका भी कहीं न कहीं संलिप्त होती है. सरकार की मंशा बेशक ठीक हो लेकिन नौकरशाहों और लॉबी के कारण ही आज कृषि प्रधान देश भारत में कृषि रसायन आयात ज्यादा और निर्यात कम हो रहा है.

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