हरिद्वार: भारतीय किसान यूनियन का धर्मनगरी हरिद्वार में चल रहा किसान महाकुंभ शनिवार को समाप्त हो गया. किसान महाकुंभ में कुल 21 प्रस्ताव पारित किए गए. सबसे पहले किसानों ने हरिद्वार की लाल कोठी से अग्निपथ योजना के विरोध में चौधरी चरण सिंह घाट तक मार्च निकाला. इसमें भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने कहा कि किसान देश के सभी युवाओं के साथ खड़े हुए हैं लेकिन शांतिपूर्ण ढंग से, कोई हिंसा के साथ नहीं.
राकेश टिकैत ने कहा कि भारतीय किसान यूनियन पिछले 36 वर्षों से देश-दुनिया के खेती-किसानी के मुद्दे पर आंदोलनरत है. इस दौरान यूनियन के कार्यकर्ताओं ने कई उतार चढ़ाव भी देखे हैं. सरकारों से टकराने का मामला हो या साथ में बैठकर मुद्दा सुलझाने की बात. इन सभी में किसानों की भलाई ही सर्वोपरि रही है. 13 महीने तक दिल्ली बॉर्डर पर चलने वाला दुनिया का सबसे लंबा और विशाल किसान आंदोलन इस बात का सुबूत है कि किसान अपनी मांगों को लेकर पहले की तुलना में और सचेत व सजग हुआ है. अब वह अपने हकों के लिए सड़क पर भी आने को तैयार है.
राकेश टिकैत ने कहा कि यह किसान कुंभ कोरोना काल के बाद पूरी समर्थता के साथ ऐसे समय में हो रहा है, जब देशभर का किसान परेशान है. फसलों का सही दाम न मिलने से दुखी है. तीन कृषि बिलों की वापसी के बाद एमएसपी गारंटी कानून (MSP Guarantee Act) के लिए केंद्र सरकार की बाट जोह रहा है. किसानों की समस्याओं के बीच से ही भारतीय किसान यूनियन का उदय हुआ. ऐसे में देश-दुनिया के किसानों के साथ कृषि मजदूर भी भाकियू की ओर आस लगाए बैठा है.
भारतीय किसान यूनियन ऐसे में देश-दुनिया के किसानों मजदूरों और आदिवासियों को विश्वास दिलाती है कि वह किसानों के हितों की रक्षा के लिए सतत संघर्ष करती रहेगी. भारतीय किसान यूनियन इस महाकुंभ के माध्यम से केंद्र व राज्य सरकारों को किसान हितों में कानून बनाने की दिशा में पहल करने की बात भी पहुंचाना चाहती है. केंद्र सरकार ने एमएसपी कमेटी पर जो गतिरोध बना रखा है, उसे तोड़े और एसकेएम के साथ वार्ता कर इस दिशा में सार्थक पहल करने की भी पुरजोर वकालत करती है.
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भारतीय किसान यूनियन के हरिद्वार किसान कुंभ में पारित प्रस्ताव
- फसलों के उचित लाभकारी मूल्य के लिए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को केंद्र सरकार लागू करे. इसके लिए सी 2+50 के फॉर्मूले को लागू किया जाए.
- राजस्थान की ईस्टर्न कैनाल परियोजना को केंद्रीय योजना के अंतर्गत लाया जाए, क्योंकि यह राजस्थान के 13 जिलों की जीवन पद्धति को प्रभावित करेगी.
- युवा किसानों के लिए अलग से योजना बनाई जाए और उनको तकनीकी में दक्षता प्रदान करने के लिए ब्लॉक स्तर पर प्रशिक्षण का माइक्रो प्लान तैयार किया जाए. पंचायत स्तर पर पर्यावरण मित्र बनाकर मानदेय के आधार पर उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने का काम किया जाए.
- 7 राज्यों में किसानों को बिजली मुफ्त में देने का काम राज्य सरकारें कर रही हैं. बाकी राज्यों में भी किसानों को मुफ्त बिजली दी जाए. किसानों के नलकूप पर लगाए जा रहे बिजली के मीटर तुरंत वापस लिए जाएं.
- छोटी जोत के किसानों के लिए अलग से योजना बनाई जाए. उनके परिवारों के स्वास्थ्य और उनके बच्चों की शिक्षा का भी अलग से उचित प्रबंध हो. छोटी जोत के किसानों को उबारने के लिए कृषि ऋण को ब्याज मुक्त करने का काम किया जाए. किसान परिवारों को स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत लाया जाए.
- दूषित होते भूमिगत जल को सही करने की दिशा में ग्रामीण स्तर पर प्रयास किए जाएं. साथ ही हर घर को पेयजल योजना से जोड़ा जाए. पर्यावरण को बचाने के सार्थक प्रयास हों. खाद-बीज व कीटनाशक के क्षेत्र समेत अन्य क्षेत्रों में किसानों के नाम पर उद्योगों को दी जा रही सब्सिडी सीधे किसानों को दी जाए.
- जल स्तर को ऊपर उठाने के लिए नदियों को आपस में जोड़ने की योजना का विस्तार किया जाए. वाटर रिचार्ज की स्कीम को धरातल पर उतारा जाए. इसके लिए नदियों पर चेकडेम बनाने के साथ उनकी साफ-सफाई भी कराई जाए. छोटी नहरों में रिचार्ज कूप योजना को लागू किया जाए.
- सोलर एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए रूफ टॉप सब्सिडी दी जाए और किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जाए जिससे बिजली पर गांवों की निर्भरता कम हो सके.
- भूमि अधिग्रहण की नीति को किसानों के अनुकूल बनाया जाए. गांवों के उजड़ने की कीमत पर उन सभी ग्रामीणों के उत्थान के लिए विशेष योजनाएं बनें. साथ ही बाजार भाव से जमीनों के मुआवजे के भुगतान की व्यवस्था की जाए.
- ग्रामीण युवाओं खासकर युवतियों और महिलाओं के लिए दुग्धपालन, शिल्पकला, हस्तकला व कुटीर उद्योगों के जरिए उनके समूहों को प्रशिक्षित किया जाए. उनके स्वयं सहायता समूहों को आसान किस्तों पर ऋण मिले और पंचायत स्तर पर रोजगार के साधनों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित कराई जाए.
- केंद्र सरकार की ओर से जल्द से जल्द कमेटी बने और गतिरोध को तोड़कर एसकेएम प्रतिनिधियों से वार्ता करे.
- जो फसलें एमएसपी में शामिल हैं, भारत की कुल फसल का एक तिहाई भी नहीं हैं. बाकी बची फसलों को भी एमएसपी के अंतर्गत लाया जाए. नकदी फसलों के लिए सरकार किसानों को उपयुक्त बाजार भी मुहैया कराए. देश में एक अलग से किसान आयोग का गठन किया जाए. उसमें देशभर के किसान संगठनों के प्रतिनिधियों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए.
- केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना से चार साल बाद भर्ती युवा बेरोजगार होंगे. ये न देश हित में है न समाज हित में. ऐसे में या तो केंद्र सरकार ऐसे युवाओं को चार साल बाद रोजगार की गारंटी दे या बेरोजगारी भत्ता.
- एनजीटी के नियमों में किसानों के लिए ढील देने का काम किया जाए. कृषि में काम आने वाले यंत्री व साधनों को लेकर विशेष योजना के अंतर्गत समय सीमा में छूट देने का प्रावधान किया जाए.
- किसानों को छुट्टा और आवारा पशुओं से निजात दिलाई जाए. छुट्टा पशुओं से फसलों की सुरक्षा के साथ ही नुकसान होने पर पर सरकार इसकी भरपाई करे.
- पहाड़ी राज्यों में पहाड़ी कृषि नीति के तहत स्थानीय संसाधनों और बाजार व्यवस्था को मजबूत करने का काम किया जाए. वहां के बाशिंदों को ट्रांसपोर्ट सब्सिडी मिले. विलेज टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाए. प्रदूषण रहित उद्योगों को बढ़ावा और हिल एलाउंस की व्यवस्था हो. चकबंदी कर किसानों को राहत दी जाए.
- सबसे प्रमुख मांग के तहत खेती को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से अलग किया जाए. खेती व्यापार नहीं है, यह भारत की जीवन पद्धति का एक हिस्सा है. इसे व्यापार की वस्तु न बनाया जाए.
- युद्ध के कारण गेहूं, उर्वरक और अन्य उत्पादों की किल्लत झेल रहे देशों पर से दबाव कम करना जरूरी है. इसके लिए डब्ल्यूटीओ (World Trade Organization) को खाद्य पदार्थों पर निर्यात पाबंदियों में ढील देनी चाहिए.
- मछुआरों के लिए भी सब्सिडी की व्यवस्था केंद्र सरकार और इच्छाशक्ति के साथ लागू करे. उनके परिवारों की स्वास्थ्य-शिक्षा को मुफ्त कर उनकी बसावट को भी प्राथमिकता में लाया जाए. विकसित देशों के दबाव में आकर मछुआरों को सब्सिडी से वंचित किए जाने के मसौदे पर कतई हस्ताक्षर न किए जाएं.
- आदिवासी इलाकों में जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए चल रहे आंदोलनों से सबक लेते हुए केंद्र व राज्य सरकारें आदिवासियों के कल्याण के लिए योजनाओं को धरातल पर उतारें और उन्हें उस जमीन का मालिकाना हक दिलाएं.
- प्राइवेट और कॉमर्शियल वाहनों को चाहे वह किसान के ही क्यों न हों, अलग-अलग वर्गों में विभाजित कर किलोमीटर के हिसाब से उनकी मियाद की गारंटी को निर्धारित किया जाए.