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SPECIAL: बेटियों की शादी की न्यूनतम उम्र सीमा बढ़ाने से कितना पड़ेगा असर, जानिए लोगों की राय

भारत में केंद्र सरकार लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल से 21 करने पर विचार कर रही है. छत्तीसगढ़ के शहरी और ग्रामीण अंचल में सरकार के इस फैसले से क्या प्रभाव पड़ेगा, इसे लेकर ETV भारत ने समाजिक कार्यकर्ता, वकील, डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मी से बात की है.

Considering the minimum age of marriage of girls 18 to 21 years
लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल से 21 करने पर विचार
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Published : Sep 13, 2020, 11:02 PM IST

Updated : Sep 14, 2020, 9:51 AM IST

रायपुर: भारत में शादी की न्यूनतम उम्र लड़कों के लिए 21 और लड़कियों के लिए 18 है. केंद्र सरकार इसमें बदलाव करने जा रही है. अब सरकार लड़कियों के लिए इस सीमा को बढ़ाकर 21 करने पर विचार कर रही है. सांसद जया जेटली की अध्यक्षता में 10 सदस्यों के टास्क फोर्स का गठन किया गया है, जो इस पर अपने सुझाव जल्द ही नीति आयोग को देगा. इस स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान करने के बाद ये मुद्दा फिर सामने आ गया है. छत्तीसगढ़ में इस फैसले से क्या प्रभाव पड़ेगा, इसे लेकर ETV भारत ने समाजिक कार्यकर्ता, वकील और स्वास्थ्यकर्मी से बात की है.

लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल से 21 करने पर विचार

छत्तीसगढ़ में ज्यादातर जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. ऐसे में यह फैसला छत्तीसगढ़ की आबादी के लिए छत्तीसगढ़ के समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण होने वाला है. छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है. प्रदेश में बड़ी संख्या में आदिवासी रहते हैं. केंद्र सरकार अगर लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 करने के फैसले पर मुहर लगाती है, तो ये सरकार का ये फैसला आदिवासियों के रीति-रिवाजों के आड़े भी आ सकता है. आदिवासी वर्ग लड़कियों की शादी कम उम्र में कर देते हैं. आने वाले समय में इसे लेकर विरोध भी देखा जा सकता है.

ग्रामीण और शहरी इलाकों में अलग हैं हालात

भारत के बड़े शहरों में लड़कियों की पढ़ाई और करियर के प्रति बदलती सोच की बदौलत उनकी शादी अमूमन 21 साल की उम्र के बाद ही होती है. ग्रामीण अंचल के मुकाबले शहरी क्षेत्रों की बात करें तो यहां तस्वीरें बिलकुल विपरित है. आज शहरी इलाकों की लड़कियां करियर ओरिएंडेट है. माता-पिता भी पढ़ाई-लिखाई पूरी होने के बाद ही उनकी शादी के बारे में सोचते हैं. यानि देखा जाए तो लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 करने पर इसका सबसे ज्यादा असर छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में रहने वाले लोगों पर पड़ेगा.

ज्यादातर ग्रामीण अंचल में लड़कियों की पढ़ाई, स्वास्थ्य, रहन-सहन और मानसिक विकास पर कम ध्यान दिया जाता है. ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले माता-पिता भी अपनी बेटियों के स्कूल पास करने के बाद ही शादी के फेरे लगवाकर विदा कर देते हैं.

'शादी के लिए बराबर होनी चाहिए लड़के-लड़कियों की न्यूनतम उम्र'

समाज सेविका मंजीत कौर बाल ने कहा कि ये सरकार का अच्छा फैसला है. वे कहती हैं कि भेदभाव वहीं से शुरू हो जाता है जब लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र लड़कों से कम रखी जाती है. यही से तस्वीरें साफ हो जाती है की लड़कियों को हमेशा से दोयम दर्जा दिया जा रहा. आज भी ज्यादातर परिवारों में लड़कियों की उम्र 14 साल होने से ही शादी की तैयारियां शुरू कर दी जाती है. वे कहती हैं कि जब लड़कियों को करियर की चिंता करनी थी, उस समय उन्हें शादी करने की चिंता दे दी जाती है. लड़कियां जीवन में आगे बढ़ने के लिए सोच ही नहीं पाती.

समाज सेविका मंजीत कहती हैं कि कम उम्र में शादी करने से लड़कियों का ठीक तरह से शारीरिक विकास भी नहीं हो पाता है. 18-19 साल में लड़कियां कम मैच्योर होती हैं. 19 या 20 साल में कुपोषित मां बनती हैं और बच्चे भी कुपोषित होते हैं. मंजीत कहती हैं कि उन्हें संवैधानिक रूप से इस बात पर भी आश्चर्य होता है कि सरकार ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल करने का फैसला अब तक क्यों नहीं लिया है.

'मुद्दा शादी का नहीं बल्कि सामान अधिकार का होना चाहिए'

वकील प्रियंका शुक्ला ने इस मामले पर कहा कि उम्र पर जब फैसले की बात हो रही है, तो हमें दोनों तरफ से देखने की जरूरत है. जब शादी की उम्र 18 साल थी, तो क्या हम बाल विवाह को रोक पाने में कामयाब हो पाए थे ? इसमें कमी जरूर आई, लेकिन हम बाल विवाह को रोक पाने में सफल न हो सके. प्रियंका कहती हैं कि इसमें दूसरा पक्ष यह भी है कि आज भी हमारे समाज में लड़कियां भले ही पढ़-लिख रही हैं, लेकिन आज भी अपने लिए फैसले नहीं ले पा रही है.

प्रियंका शुक्ला का कहना है कि 18 साल की होने के बाद भी लड़कियों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं. उन्हें उनके सवालों के जवाब देने वाला भी कोई नहीं होता. वे कहती हैं कि मुद्दा शादी का नहीं होना चाहिए मुद्दा बराबरी का होना चाहिए कि कैसे लड़के और लड़कियों को सामान अधिकार दिया जाए.

'21 साल की उम्र तक मैच्योर हो जाती हैं लड़कियां'

छत्तीसगढ़ महिला हेल्पलाइन 181 की मैनेजर मनीषा तिवारी कहती हैं कि लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र में पहले ही बदलाव हो जाने थे. कानून 18 साल से एक दिन के भी कम इंसान को नाबालिग मानता है. वे कहती हैं कि 18 साल के होते ही कोई भी शख्स कैसे मैच्योर हो जाता है. इसलिए सरकार का आने वाला यह फैसला सकारात्मक है. लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 करने से उनकी सोचने समझने की मानसिकता विकसित हो जाती है. वे शारीरिक रूप से भी शादी के लिए तैयार हो जाएंगी. वे कहती हैं कि शादी के उम्र 21 करने को लेकर डॉक्टरों से भी बात किया जाना चाहिए कि क्या 21 साल में लड़कियां शादी के बाद होने वाले शारीरिक और मानसिक बदलाव को सह पाएंगी.

हालांकि सामाजिक जानकार इस बदलाव को आसान नहीं मानते. प्रोफेसर और साहित्यकार डॉक्टर सुभद्रा राठौर कहती हैं कि शादी इंसान के सामाजिक सांस्कृतिक पहलू का हिस्सा है और ऐसे में इस पर कानून बनाकर उसे लागू करना आसान नहीं होगा. शादी का सवाल परिवारों की पृष्ठभूमि, उनकी जाति, पेशे जैसे तमाम पहलुओं से जुड़ा है. जो गांव के लोग हैं, कम-पढ़े लिखे, कमजोर तबके के लोग हैं. वे आज भी 15-16 साल की उम्र में लड़कियों की शादी कर देते हैं. हालांकि शहरों में संपन्न वर्गों में 18-19 साल की उम्र से पहले शादी नहीं होती है, लेकिन आज भी बहुत सारी जगहों पर कम उम्र में भी शादी हो रही है.

अदालत में शादी के हैं तीन प्रकार

भारत में कानूनी तौर पर शादी के तीन प्रकार माने गए हैं.

  1. वॉइड मैरिज जिसे शून्य विवाह कहा जाता है. ये एक ऐसी परिस्थिति है, जिसमें हुई शादी पूरी तरह अमान्य होती है. इसका कोई कानूनी आधार नहीं होता है. बाल विवाह इसी के तहत आते हैं.
  2. वैलिड मैरिज या मान्य विवाह-कानूनी तौर पर सारी जरूरतों को पूरा कर रहीं शादियां इसके तहत आती हैं.
  3. तीसरा स्वरूप वॉइडेबल मैरिज यानी अमान्यकरणीय विवाह. ये एक ऐसी परिस्थिति होती है, जिसमें विवाह के आधार शून्य विवाह वाले हो सकते हैं. लेकिन परिस्थितियों को देखने के बाद कोर्ट तय करता है कि यह वॉइड मैरिज है या वैलिड मैरिज है.

जब पहली बार तय हई थी शादी की न्यूनतम उम्र

  • 1860 में बने इंडियन पीनल कोड में 10 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ शारीरिक संबंध बनाना गैरकानूनी बताया गया. लेकिन शादी को लेकर इसमें कोई जिक्र नहीं था.
  • भारत में शादी की उम्र को लेकर पहले धर्म के आधार पर कानून बनाए गए थे.
  • इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872 में ईसाइयों के लिए लड़के की न्यूनतम उम्र 16 साल और लड़की की न्यूनतम उम्र 13 साल तय की गई है.
  • 1875 में आए मेजोरिटी एक्ट में पहली बार बालिग होने की उम्र 18 साल तय की गई थी.
  • इसमें लड़के और लड़की दोनों की उम्र 18 साल थी. लेकिन शादी की न्यूनतम उम्र को लेकर इसमें कोई जिक्र नहीं था.
  • 1927 में 'एज ऑफ कंसेट बिल' लाया गया, जिसमें 12 साल से कम उम्र की लड़की की शादी को प्रतिबंधित कर दिया गया.
  • 1929 में पहली बार शादी की उम्र को लेकर कानून बनाया गया. इस कानून को बाल विवाह निरोधक कानून 1929 के नाम से जाना जाता है.
  • इस कानून के मुताबिक शादी के लिए लड़के की न्यूनतम आयु 18 साल और लड़की की न्यूनतम आयु 16 साल तय की गई.

यह भी जानें

  • विश्व के ज्यादातर देशों में लड़के और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 ही है.
  • भारत में 1929 के शारदा कानून के तहत शादी की न्‍यूनतम उम्र लड़कों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 14 साल तय की गई थी.
  • 1978 में संशोधन के बाद लड़कों के लिए ये सीमा 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल हो गई.
  • वर्ष 2006 में बाल विवाह रोकथाम कानून ने इन्हीं सीमाओं को अपनाते हुए और कुछ बेहतर प्रावधान शामिल कर, इस कानून की जगह ली.
  • 18 से कम उम्र में विवाह के सबसे ज्यादा मामले उप-सहारा अफ़्रीका (35%) और फिर दक्षिण एशिया (30%) में हैं.
  • यूनिसेफ के मुताबिक 18 साल से कम उम्र में शादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
  • इससे लड़कियों की पढ़ाई छूटने, घरेलू हिंसा का शिकार होने और प्रसव के दौरान मृत्यु होने का खतरा बढ़ जाता है.
  • इसी परिवेश में सरकार के टास्क फोर्स को लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने पर फैसला उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के हित को ध्यान में रखते हुए करना है.

शादी के लिए 21 साल की उम्र सही?

शादी के बाद जहां लड़की को अपने ससुराल और पति की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है. वहीं एक बच्चे को जन्म देकर उसका पालन पोषण भी करना होता है. ऐसे में डॉक्टरों का मानना है कि लड़की के लिए 21 साल के बाद स्वस्थ रूप से गर्भ धारण करने की उम्र होती है. पॉपुलेशन काउंसिल के एक सर्वे के मुताबिक 15 से 19 साल के बीच में 30 प्रतिशत लड़कियों की शादी हो जाती है, लेकिन मां बनने के लिए 20-21 साल के बाद की उम्र ही ठीक होती है, क्योंकि लड़कियों का पेल्विस 18 की उम्र के बाद ही पूरा विकसित होता है और 21 तक उसका पूरा विकास होता है. तो मां बनने के लिए कम से कम 22-23 साल की उम्र तो होनी ही चाहिए.

पढ़ें- SPECIAL: लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 हो या 21? जानिए छत्तीसगढ़ की बेटियों और समाज के लोगों की राय

ऐसा पहली बार नहीं है जब शादी की उम्र को लेकर बहस शुरू हुई हो. शादी की उम्र भारत में पहले भी बहस का मुद्दा रही है. 2018 में लॉ कमीशन ने भी तर्क दिया था कि शादी की उम्र में अंतर रखना पति के उम्र में बड़े और पत्नी के छोटे होने के रूढ़िवाद को बढ़ावा देता है. इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.

पढ़ें- SPECIAL: कम उम्र में लड़कियों की शादी से शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और प्रजनन दर पर पड़ता है बुरा प्रभाव

15 अगस्त 2020 के दिन लाल किले से पीएम मोदी ने कहा था कि सरकार लड़कियों के भविष्य को देखते हुए उनकी शादी की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने के बारे में सोच रही है. अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि लड़कियों को वैवाहिक बलात्कार से बचाने के लिए बाल विवाह को पूरी तरह अवैध माना जाना चाहिए. कोर्ट ने लड़कियों की शादी की उम्र तय करने को लेकर फैसला सरकार पर छोड़ दिया है. जिसके बाद ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि लोकसभा के मानसून सत्र में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 करने का बिल पारित किया जा सकता है.

रायपुर: भारत में शादी की न्यूनतम उम्र लड़कों के लिए 21 और लड़कियों के लिए 18 है. केंद्र सरकार इसमें बदलाव करने जा रही है. अब सरकार लड़कियों के लिए इस सीमा को बढ़ाकर 21 करने पर विचार कर रही है. सांसद जया जेटली की अध्यक्षता में 10 सदस्यों के टास्क फोर्स का गठन किया गया है, जो इस पर अपने सुझाव जल्द ही नीति आयोग को देगा. इस स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान करने के बाद ये मुद्दा फिर सामने आ गया है. छत्तीसगढ़ में इस फैसले से क्या प्रभाव पड़ेगा, इसे लेकर ETV भारत ने समाजिक कार्यकर्ता, वकील और स्वास्थ्यकर्मी से बात की है.

लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल से 21 करने पर विचार

छत्तीसगढ़ में ज्यादातर जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. ऐसे में यह फैसला छत्तीसगढ़ की आबादी के लिए छत्तीसगढ़ के समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण होने वाला है. छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है. प्रदेश में बड़ी संख्या में आदिवासी रहते हैं. केंद्र सरकार अगर लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 करने के फैसले पर मुहर लगाती है, तो ये सरकार का ये फैसला आदिवासियों के रीति-रिवाजों के आड़े भी आ सकता है. आदिवासी वर्ग लड़कियों की शादी कम उम्र में कर देते हैं. आने वाले समय में इसे लेकर विरोध भी देखा जा सकता है.

ग्रामीण और शहरी इलाकों में अलग हैं हालात

भारत के बड़े शहरों में लड़कियों की पढ़ाई और करियर के प्रति बदलती सोच की बदौलत उनकी शादी अमूमन 21 साल की उम्र के बाद ही होती है. ग्रामीण अंचल के मुकाबले शहरी क्षेत्रों की बात करें तो यहां तस्वीरें बिलकुल विपरित है. आज शहरी इलाकों की लड़कियां करियर ओरिएंडेट है. माता-पिता भी पढ़ाई-लिखाई पूरी होने के बाद ही उनकी शादी के बारे में सोचते हैं. यानि देखा जाए तो लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 करने पर इसका सबसे ज्यादा असर छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में रहने वाले लोगों पर पड़ेगा.

ज्यादातर ग्रामीण अंचल में लड़कियों की पढ़ाई, स्वास्थ्य, रहन-सहन और मानसिक विकास पर कम ध्यान दिया जाता है. ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले माता-पिता भी अपनी बेटियों के स्कूल पास करने के बाद ही शादी के फेरे लगवाकर विदा कर देते हैं.

'शादी के लिए बराबर होनी चाहिए लड़के-लड़कियों की न्यूनतम उम्र'

समाज सेविका मंजीत कौर बाल ने कहा कि ये सरकार का अच्छा फैसला है. वे कहती हैं कि भेदभाव वहीं से शुरू हो जाता है जब लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र लड़कों से कम रखी जाती है. यही से तस्वीरें साफ हो जाती है की लड़कियों को हमेशा से दोयम दर्जा दिया जा रहा. आज भी ज्यादातर परिवारों में लड़कियों की उम्र 14 साल होने से ही शादी की तैयारियां शुरू कर दी जाती है. वे कहती हैं कि जब लड़कियों को करियर की चिंता करनी थी, उस समय उन्हें शादी करने की चिंता दे दी जाती है. लड़कियां जीवन में आगे बढ़ने के लिए सोच ही नहीं पाती.

समाज सेविका मंजीत कहती हैं कि कम उम्र में शादी करने से लड़कियों का ठीक तरह से शारीरिक विकास भी नहीं हो पाता है. 18-19 साल में लड़कियां कम मैच्योर होती हैं. 19 या 20 साल में कुपोषित मां बनती हैं और बच्चे भी कुपोषित होते हैं. मंजीत कहती हैं कि उन्हें संवैधानिक रूप से इस बात पर भी आश्चर्य होता है कि सरकार ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल करने का फैसला अब तक क्यों नहीं लिया है.

'मुद्दा शादी का नहीं बल्कि सामान अधिकार का होना चाहिए'

वकील प्रियंका शुक्ला ने इस मामले पर कहा कि उम्र पर जब फैसले की बात हो रही है, तो हमें दोनों तरफ से देखने की जरूरत है. जब शादी की उम्र 18 साल थी, तो क्या हम बाल विवाह को रोक पाने में कामयाब हो पाए थे ? इसमें कमी जरूर आई, लेकिन हम बाल विवाह को रोक पाने में सफल न हो सके. प्रियंका कहती हैं कि इसमें दूसरा पक्ष यह भी है कि आज भी हमारे समाज में लड़कियां भले ही पढ़-लिख रही हैं, लेकिन आज भी अपने लिए फैसले नहीं ले पा रही है.

प्रियंका शुक्ला का कहना है कि 18 साल की होने के बाद भी लड़कियों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं. उन्हें उनके सवालों के जवाब देने वाला भी कोई नहीं होता. वे कहती हैं कि मुद्दा शादी का नहीं होना चाहिए मुद्दा बराबरी का होना चाहिए कि कैसे लड़के और लड़कियों को सामान अधिकार दिया जाए.

'21 साल की उम्र तक मैच्योर हो जाती हैं लड़कियां'

छत्तीसगढ़ महिला हेल्पलाइन 181 की मैनेजर मनीषा तिवारी कहती हैं कि लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र में पहले ही बदलाव हो जाने थे. कानून 18 साल से एक दिन के भी कम इंसान को नाबालिग मानता है. वे कहती हैं कि 18 साल के होते ही कोई भी शख्स कैसे मैच्योर हो जाता है. इसलिए सरकार का आने वाला यह फैसला सकारात्मक है. लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 करने से उनकी सोचने समझने की मानसिकता विकसित हो जाती है. वे शारीरिक रूप से भी शादी के लिए तैयार हो जाएंगी. वे कहती हैं कि शादी के उम्र 21 करने को लेकर डॉक्टरों से भी बात किया जाना चाहिए कि क्या 21 साल में लड़कियां शादी के बाद होने वाले शारीरिक और मानसिक बदलाव को सह पाएंगी.

हालांकि सामाजिक जानकार इस बदलाव को आसान नहीं मानते. प्रोफेसर और साहित्यकार डॉक्टर सुभद्रा राठौर कहती हैं कि शादी इंसान के सामाजिक सांस्कृतिक पहलू का हिस्सा है और ऐसे में इस पर कानून बनाकर उसे लागू करना आसान नहीं होगा. शादी का सवाल परिवारों की पृष्ठभूमि, उनकी जाति, पेशे जैसे तमाम पहलुओं से जुड़ा है. जो गांव के लोग हैं, कम-पढ़े लिखे, कमजोर तबके के लोग हैं. वे आज भी 15-16 साल की उम्र में लड़कियों की शादी कर देते हैं. हालांकि शहरों में संपन्न वर्गों में 18-19 साल की उम्र से पहले शादी नहीं होती है, लेकिन आज भी बहुत सारी जगहों पर कम उम्र में भी शादी हो रही है.

अदालत में शादी के हैं तीन प्रकार

भारत में कानूनी तौर पर शादी के तीन प्रकार माने गए हैं.

  1. वॉइड मैरिज जिसे शून्य विवाह कहा जाता है. ये एक ऐसी परिस्थिति है, जिसमें हुई शादी पूरी तरह अमान्य होती है. इसका कोई कानूनी आधार नहीं होता है. बाल विवाह इसी के तहत आते हैं.
  2. वैलिड मैरिज या मान्य विवाह-कानूनी तौर पर सारी जरूरतों को पूरा कर रहीं शादियां इसके तहत आती हैं.
  3. तीसरा स्वरूप वॉइडेबल मैरिज यानी अमान्यकरणीय विवाह. ये एक ऐसी परिस्थिति होती है, जिसमें विवाह के आधार शून्य विवाह वाले हो सकते हैं. लेकिन परिस्थितियों को देखने के बाद कोर्ट तय करता है कि यह वॉइड मैरिज है या वैलिड मैरिज है.

जब पहली बार तय हई थी शादी की न्यूनतम उम्र

  • 1860 में बने इंडियन पीनल कोड में 10 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ शारीरिक संबंध बनाना गैरकानूनी बताया गया. लेकिन शादी को लेकर इसमें कोई जिक्र नहीं था.
  • भारत में शादी की उम्र को लेकर पहले धर्म के आधार पर कानून बनाए गए थे.
  • इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872 में ईसाइयों के लिए लड़के की न्यूनतम उम्र 16 साल और लड़की की न्यूनतम उम्र 13 साल तय की गई है.
  • 1875 में आए मेजोरिटी एक्ट में पहली बार बालिग होने की उम्र 18 साल तय की गई थी.
  • इसमें लड़के और लड़की दोनों की उम्र 18 साल थी. लेकिन शादी की न्यूनतम उम्र को लेकर इसमें कोई जिक्र नहीं था.
  • 1927 में 'एज ऑफ कंसेट बिल' लाया गया, जिसमें 12 साल से कम उम्र की लड़की की शादी को प्रतिबंधित कर दिया गया.
  • 1929 में पहली बार शादी की उम्र को लेकर कानून बनाया गया. इस कानून को बाल विवाह निरोधक कानून 1929 के नाम से जाना जाता है.
  • इस कानून के मुताबिक शादी के लिए लड़के की न्यूनतम आयु 18 साल और लड़की की न्यूनतम आयु 16 साल तय की गई.

यह भी जानें

  • विश्व के ज्यादातर देशों में लड़के और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 ही है.
  • भारत में 1929 के शारदा कानून के तहत शादी की न्‍यूनतम उम्र लड़कों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 14 साल तय की गई थी.
  • 1978 में संशोधन के बाद लड़कों के लिए ये सीमा 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल हो गई.
  • वर्ष 2006 में बाल विवाह रोकथाम कानून ने इन्हीं सीमाओं को अपनाते हुए और कुछ बेहतर प्रावधान शामिल कर, इस कानून की जगह ली.
  • 18 से कम उम्र में विवाह के सबसे ज्यादा मामले उप-सहारा अफ़्रीका (35%) और फिर दक्षिण एशिया (30%) में हैं.
  • यूनिसेफ के मुताबिक 18 साल से कम उम्र में शादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
  • इससे लड़कियों की पढ़ाई छूटने, घरेलू हिंसा का शिकार होने और प्रसव के दौरान मृत्यु होने का खतरा बढ़ जाता है.
  • इसी परिवेश में सरकार के टास्क फोर्स को लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने पर फैसला उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के हित को ध्यान में रखते हुए करना है.

शादी के लिए 21 साल की उम्र सही?

शादी के बाद जहां लड़की को अपने ससुराल और पति की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है. वहीं एक बच्चे को जन्म देकर उसका पालन पोषण भी करना होता है. ऐसे में डॉक्टरों का मानना है कि लड़की के लिए 21 साल के बाद स्वस्थ रूप से गर्भ धारण करने की उम्र होती है. पॉपुलेशन काउंसिल के एक सर्वे के मुताबिक 15 से 19 साल के बीच में 30 प्रतिशत लड़कियों की शादी हो जाती है, लेकिन मां बनने के लिए 20-21 साल के बाद की उम्र ही ठीक होती है, क्योंकि लड़कियों का पेल्विस 18 की उम्र के बाद ही पूरा विकसित होता है और 21 तक उसका पूरा विकास होता है. तो मां बनने के लिए कम से कम 22-23 साल की उम्र तो होनी ही चाहिए.

पढ़ें- SPECIAL: लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 हो या 21? जानिए छत्तीसगढ़ की बेटियों और समाज के लोगों की राय

ऐसा पहली बार नहीं है जब शादी की उम्र को लेकर बहस शुरू हुई हो. शादी की उम्र भारत में पहले भी बहस का मुद्दा रही है. 2018 में लॉ कमीशन ने भी तर्क दिया था कि शादी की उम्र में अंतर रखना पति के उम्र में बड़े और पत्नी के छोटे होने के रूढ़िवाद को बढ़ावा देता है. इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.

पढ़ें- SPECIAL: कम उम्र में लड़कियों की शादी से शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और प्रजनन दर पर पड़ता है बुरा प्रभाव

15 अगस्त 2020 के दिन लाल किले से पीएम मोदी ने कहा था कि सरकार लड़कियों के भविष्य को देखते हुए उनकी शादी की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने के बारे में सोच रही है. अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि लड़कियों को वैवाहिक बलात्कार से बचाने के लिए बाल विवाह को पूरी तरह अवैध माना जाना चाहिए. कोर्ट ने लड़कियों की शादी की उम्र तय करने को लेकर फैसला सरकार पर छोड़ दिया है. जिसके बाद ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि लोकसभा के मानसून सत्र में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 करने का बिल पारित किया जा सकता है.

Last Updated : Sep 14, 2020, 9:51 AM IST
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