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पति के अंतिम संस्कार के लिए गिरवी रखा राशन कार्ड, दर्द से भरी है छत बाई की कहानी - रमन सिंह

कोरबा में रहने वाली छत बाई को पति के अंतिम संस्कार के लिए राशन कार्ड तक गिरवी रखने पर मजबूर होना पड़ा.

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Published : May 16, 2019, 12:00 AM IST

Updated : May 16, 2019, 11:35 AM IST

कोरबा: छत बाई के पति की करीब एक साल पहले सांस बीमारी की वजह से मौत हो गई थी. छतबाई पर गरीबी ऐसे कहर बनकर टूटी कि उसके पास अंतिम संस्कार तक के लिए पैसे नहीं थे. ऐसे हालात में उसे महज 1800 रुपये में अपना राशन कार्ड गिरवी रखना पड़ा. वहीं मामले में गांव के सरपंच का कहना है कि उनकी ओर से तो नाम भेज दिया गया है, लेकिन ऊपर से लिस्ट में एंट्री नहीं हुई है.

स्टोरी पैकेज


छत बाई को वापस दिलाया राशन कार्ड
छत बाई ने राशन कार्ड गिरवी रखकर पति का अंतिम संस्कार कराया है, इस बात की जानकारी जब सोशल नेटवर्किंग एप के जरिए सामाजिक कार्यकर्ता मनीष अग्रवाल को लगी तो वो खुद ही उसके गांव पहुंचे और देनदार को 1800 रुपये वापस देकर राशन कार्ड छतबाई को वापस दिलाया.


आर्थिक स्थिति है बेहद खराब
बता दें कि छतबाई को एक बेटी और एक बेटा है. गरीबी की वजह से बेटी नानी के घर रहकर पढ़ाई करती है. हालत कितनी दयनीय है इसका अंदाजा आप छत पाई के मासूम बेटे को देखकर खुद ही लगा सकते हैं. एक ओर सरकारें आवाम की भलाई का ढिंढोरा पीटती हैं, वहीं दूसरी ओर छतबाई जैसे लोगों को महज अंतिम संस्कार के लिए राशन कार्ड तक गिरवी रखना पड़ता है. ऐसे में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाएं धरातल में कितनी कारगर साबित हो रही हैं.

कोरबा: छत बाई के पति की करीब एक साल पहले सांस बीमारी की वजह से मौत हो गई थी. छतबाई पर गरीबी ऐसे कहर बनकर टूटी कि उसके पास अंतिम संस्कार तक के लिए पैसे नहीं थे. ऐसे हालात में उसे महज 1800 रुपये में अपना राशन कार्ड गिरवी रखना पड़ा. वहीं मामले में गांव के सरपंच का कहना है कि उनकी ओर से तो नाम भेज दिया गया है, लेकिन ऊपर से लिस्ट में एंट्री नहीं हुई है.

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छत बाई को वापस दिलाया राशन कार्ड
छत बाई ने राशन कार्ड गिरवी रखकर पति का अंतिम संस्कार कराया है, इस बात की जानकारी जब सोशल नेटवर्किंग एप के जरिए सामाजिक कार्यकर्ता मनीष अग्रवाल को लगी तो वो खुद ही उसके गांव पहुंचे और देनदार को 1800 रुपये वापस देकर राशन कार्ड छतबाई को वापस दिलाया.


आर्थिक स्थिति है बेहद खराब
बता दें कि छतबाई को एक बेटी और एक बेटा है. गरीबी की वजह से बेटी नानी के घर रहकर पढ़ाई करती है. हालत कितनी दयनीय है इसका अंदाजा आप छत पाई के मासूम बेटे को देखकर खुद ही लगा सकते हैं. एक ओर सरकारें आवाम की भलाई का ढिंढोरा पीटती हैं, वहीं दूसरी ओर छतबाई जैसे लोगों को महज अंतिम संस्कार के लिए राशन कार्ड तक गिरवी रखना पड़ता है. ऐसे में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाएं धरातल में कितनी कारगर साबित हो रही हैं.

Intro:एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार सबका साथ सबका विकास की बात करती है, तो दूसरी ओर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष गरीबों के साथ न्याय करने की बात करते हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां भाषणों में घोषणाएं और योजनाएं बताती हैं लेकिन जुबान से निकली बात जमीन पर कम ही खड़ी दिखती है। यही कारण है कि एक दिव्यांग पत्नी को अपने दिव्यांग पति की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार के लिए राशन कार्ड गिरवी रखना पड़ गया।


Body:जिले के बाल्को क्षेत्र से महज 5 किलोमीटर दूर ग्राम दोन्द्रो में छत बाई अपनी 10 साल की बेटी और 2 साल के बेटे के साथ रहती है। 1 वर्ष पहले सांस की बीमारी से छत बाई के पति होरी लाल की मृत्यु हो गई। लेकिन गरीबी की ऐसी मार कि पति के अंतिम संस्कार के लिए भी रकम नहीं था। पति के अंतिम संस्कार के लिए महज 18 सौ रुपए में अपना राशन कार्ड गिरवी रखना पड़ गया। होरीलाल की मृत्यु के बाद से उस घर में बांस की मेड़ से घिरा हुआ घर, खाली बर्तन और एक खटिया ही दिखाई देती है। छतबाई बताती हैं कि पति की मृत्यु से पहले करीब 10 दिन वह जिला अस्पताल में भर्ती थे। लेकिन इस दौरान ना मायके के से ना ससुराल से कोई मदद मिली। छतबाई की उम्र महज 35 साल है और अब उसके जीने का सहारा उसकी 10 साल की बेटी और महज 2 साल का बेटा संतोष है।
छतबाई द्वारा राशन कार्ड गिरवी रखकर अंतिम संस्कार कराया गया इस बात की जानकारी जब व्हाट्सएप के जरिए सामाजिक कार्यकर्ता मनीष अग्रवाल को पता चली, तो उन्होंने स्वयं उसके घर पहुंचकर छतबाई का राशन कार्ड उन्हें वापस दिलवाया और 18 सौ की रकम अदा की।
छतबाई बेहद ही दयनीय स्थिति में अपना जीवन व्यापन कर रही हैं। मात्र 350 रुपए सरकारी पेंशन और दान में मिले चावल से किसी तरह गुजारा चल रहा है। हालांकि एक साल जब छतबाई के पास राशन कार्ड नहीं था तब आस-पड़ोस के लोग कुछ राशन दान कर दिया करते थे।
गांव के सरपंच बंधन सिंह कंवर ने बताया कि छतबाई दिव्यांग हैं इसलिए कुछ काम नहीं कर पाती हैं। जब उनके पति की मृत्यु हुई तो मैंने अपने तरफ से भी ₹2000 की मदद की और 50 किलो चावल भी दिया। सरपंच ने बताया कि उन्होंने अपनी तरफ से उसके लिए एक कमरे का पक्का मकान बनवा दिया और सरकार की ओर से सरकारी शौचालय भी बना कर दिया गया।
सरकारें जन्म से लेकर मृत्यु तक लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाएं चलाने की बात करती हैं, लेकिन छत भाई जैसी महिला जो योजनाओं की असली हकदार हैं उन तक ये योजनाएं नहीं पहुंच पाती हैं। किसी तरह दया भावना में आकर कुछ सामाजिक लोग मदद कर देते हैं। इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी जब एक महिला के पास अपने पति के अंतिम संस्कार के लिए ही पैसे नहीं हैं।
बाइट- छतबाई
बाइट- मनीष अग्रवाल, सामाजिक कार्यकर्ता
बाइट- बंधन सिंह कंवर, सरपंच, दोन्द्रो


Conclusion:
Last Updated : May 16, 2019, 11:35 AM IST
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