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VIDEO: आप होली मना रहे हैं लेकिन यहां के लोगों का त्योहार 150 साल से फीका है

खरहरी गांव में पिछले एक दो नहीं बल्कि डेढ़ सौ साल से होली न तो जलाई गई और न ही खेली गई. गांववाले इसके पीछे की वजह दैविय प्रकोप को बताते हैं.

खरहरी
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Published : Mar 21, 2019, 8:32 AM IST

Updated : Mar 21, 2019, 11:45 PM IST

कोरबा: एक ओर जहां पूरा प्रदेश होली के रंग में सराबोर है, चारों ओर रंग और गुलाल उड़ रहे हैं और उमंग ने समां बांध रखा है, वहीं कोरबा जिले की पुरेना ग्राम पंचायत के आश्रित गांव खरहरी में न तो होली की उमंग है न रंगों का हुड़दंग, न भांग का प्रसाद है न गुझिया की मिठास. दरअसल इस गांव में पिछले एक दो नहीं बल्कि डेढ़ सौ साल से होली न तो जलाई गई और न ही खेली गई.

गांव में होली न मनाने की मान्यता जितनी पुरानी है वजह उनती ही खास. गांव के बुजुर्गों का कहना है कि कई साल पहले होलिका दहन के दौरान आग ने गांव को अपनी चपेट में ले लिया था और तभी से यहां होलिका दहन नहीं किया जाता. गांववाले इसके पीछे की वजह दैविय प्रकोप को बताते हैं.

वीडियो

होली खेलने पर होता है अपशगुन
बुजुर्ग महेत्तर सिंह ने बताया कि 'एक बार गांव का युवक का बुजुर्गों की बात को नज़रअंदाज़ कर पड़ोस के गांव से होली खेल कर आ गया और गांव वापस लौटने पर उसे उसी दिन उसे चेचक की बीमारी और उसकी मौत हो गई.

शरीर पर नहीं पड़ना चाहिए रंग
ग्रामीणों का कहना है कि 'रोज़ की तरह होली के दिन भी कुछ खास नहीं करते हैं. गांव में किसी भी तरह रंग, गुलाल और पिचकारी जैसी सामग्री लाना भी दोष है. ग्रामीण उस दिन भी अपनी सामान्य दिनचर्या अपनाते हैं और होली के दिन कहीं भी बाहर जाने से बचते हैं क्योंकि मान्यता के मुताबिक शहीर पर रंग का एक भी कड़ नहीं पड़ना चाहिए.

कोरबा: एक ओर जहां पूरा प्रदेश होली के रंग में सराबोर है, चारों ओर रंग और गुलाल उड़ रहे हैं और उमंग ने समां बांध रखा है, वहीं कोरबा जिले की पुरेना ग्राम पंचायत के आश्रित गांव खरहरी में न तो होली की उमंग है न रंगों का हुड़दंग, न भांग का प्रसाद है न गुझिया की मिठास. दरअसल इस गांव में पिछले एक दो नहीं बल्कि डेढ़ सौ साल से होली न तो जलाई गई और न ही खेली गई.

गांव में होली न मनाने की मान्यता जितनी पुरानी है वजह उनती ही खास. गांव के बुजुर्गों का कहना है कि कई साल पहले होलिका दहन के दौरान आग ने गांव को अपनी चपेट में ले लिया था और तभी से यहां होलिका दहन नहीं किया जाता. गांववाले इसके पीछे की वजह दैविय प्रकोप को बताते हैं.

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होली खेलने पर होता है अपशगुन
बुजुर्ग महेत्तर सिंह ने बताया कि 'एक बार गांव का युवक का बुजुर्गों की बात को नज़रअंदाज़ कर पड़ोस के गांव से होली खेल कर आ गया और गांव वापस लौटने पर उसे उसी दिन उसे चेचक की बीमारी और उसकी मौत हो गई.

शरीर पर नहीं पड़ना चाहिए रंग
ग्रामीणों का कहना है कि 'रोज़ की तरह होली के दिन भी कुछ खास नहीं करते हैं. गांव में किसी भी तरह रंग, गुलाल और पिचकारी जैसी सामग्री लाना भी दोष है. ग्रामीण उस दिन भी अपनी सामान्य दिनचर्या अपनाते हैं और होली के दिन कहीं भी बाहर जाने से बचते हैं क्योंकि मान्यता के मुताबिक शहीर पर रंग का एक भी कड़ नहीं पड़ना चाहिए.

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Last Updated : Mar 21, 2019, 11:45 PM IST
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