ETV Bharat / state

WORLD DANCE DAY: 'लाल आतंक' के गलियारे में बह रही शास्त्रीय संगीत की बयार, गूंज रही कथक की थाप - undefined

लाल आतंक के गलियारे में शास्त्रीय संगीत की बयार बह रही है. भारतीय शास्त्रीय नृत्य कथक की थाप गूंज रही है. इस नृत्य से शांति का पैगाम दिया जा रहा है.

world dance day
author img

By

Published : Apr 29, 2019, 11:51 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

जगदलपुर: बस्तर के लाल आतंक के गलियारे में शास्त्रीय संगीत की बयार बह रही है. भारतीय शास्त्रीय नृत्य कथक की थाप गूंज रही है. इस नृत्य से शांति का पैगाम दिया जा रहा है. जी हा, आपको सुनने में अजीब जरूर लग रहा होगा, लेकिन यह सौ प्रतिशत सत्य है. शास्त्रीय कला के क्षेत्र में बस्तर में पहचान बना चुके राजमोहन मलिक बस्तर के विश्व प्रसिद्ध लोक नृत्य के साथ ही कथक की छटा बिखेर रहे हैं.

'लाल आतंक' के गलियारे में गूंज रही कथक की थाप

आदिवासी बच्चों को सिखा रहे
लाल आतंक के गढ़ में आदिवासी बच्चों को कथक सिखा रहे हैं. जगदलपुर शहर के राजमोहन मलिक 20 साल से शास्त्रीय कला से जुड़कर बस्तर के बच्चों को कत्थक नृत्य सिखा रहे हैं. उन्होंने अब तक 1 हजार से अधिक बच्चों को कथक नृत्य सिखा चुके हैं. करीब 2 दर्जन से अधिक बच्चे राष्ट्रीय स्तर पर कत्थक की प्रस्तुति भी दे चुके हैं. वहीं इसी डिग्री के आधार पर दर्जन भर बच्चे नौकरी भी कर रहे हैं. मलिक बस्तर के अंदरूनी इलाके के लोक नर्तकों के बीच पहुंचकर उन्हें लोक नृत्य के साथ कत्थक भी सिखा रहे हैं, जिससे एक नया फ्यूजन तैयार हो सके.

की संगीत संस्था की शुरुआत
कथक नर्तक राजमोहन मलिक ने सबसे पहले घुंघरू नामक संगीत संस्था की शुरुआत की. बच्चों को कत्थक का तालीम देना शुरू किया और 1999 से लेकर आज तक 1 हजार से अधिक बच्चों को कथक नृत्य, शास्त्रीय संगीत और तबला सिखा चुके हैं. मलिक 11 राज्यों में कथक नर्तक की प्रस्तुति दे चुके हैं. सुधा चंद्रन के साथ भी उन्होंने अपनी प्रस्तुति दी है. वे अपनी विद्या में गोल्ड मेडलिस्ट हैं. शास्त्रीय कला के क्षेत्र में उन्हें कई सम्मान से नवाजा चुका है.

उन्होंने बताया कि आदिवासी लोक नृत्य में पूरी तरह से एक ठेठपन दिखता है. इसमें प्रयोग करते हुए लोक नृत्य को कत्थक से जोड़ दिया जाए तो प्रस्तुति और भी बेहतर हो सकती है. जिस तरह कथक में चेहरे और दूसरे अंगों के हाव-भाव से नृत्य नाटिका की प्रस्तुति की जाती है, अगर इसे लोक नृत्य में भी लागू किया जाए, तो निश्चित रूप से लोकप्रियता बढ़ेगी.

पारंपरिक नृत्य से जोड़ने की चाह
चिकित्सा के क्षेत्र में सेवा दे रही डॉ. आरती जैन ने कहा कि कथक नृत्य ट्रेडिशनल नृत्य है. बचपन से ही उन्हें इस नृत्य के प्रति काफी रुचि है और वे भी अपने गुरु मलिक की तरह इस कथक में महारथ हासिल कर उनकी तरह बनना चाहती हैं. आधुनिक युग में हिप हॉप डांस की जगह लोगों को शास्त्रीय कला और पारंपरिक नृत्य से जोड़ना चाहती है.

जगदलपुर: बस्तर के लाल आतंक के गलियारे में शास्त्रीय संगीत की बयार बह रही है. भारतीय शास्त्रीय नृत्य कथक की थाप गूंज रही है. इस नृत्य से शांति का पैगाम दिया जा रहा है. जी हा, आपको सुनने में अजीब जरूर लग रहा होगा, लेकिन यह सौ प्रतिशत सत्य है. शास्त्रीय कला के क्षेत्र में बस्तर में पहचान बना चुके राजमोहन मलिक बस्तर के विश्व प्रसिद्ध लोक नृत्य के साथ ही कथक की छटा बिखेर रहे हैं.

'लाल आतंक' के गलियारे में गूंज रही कथक की थाप

आदिवासी बच्चों को सिखा रहे
लाल आतंक के गढ़ में आदिवासी बच्चों को कथक सिखा रहे हैं. जगदलपुर शहर के राजमोहन मलिक 20 साल से शास्त्रीय कला से जुड़कर बस्तर के बच्चों को कत्थक नृत्य सिखा रहे हैं. उन्होंने अब तक 1 हजार से अधिक बच्चों को कथक नृत्य सिखा चुके हैं. करीब 2 दर्जन से अधिक बच्चे राष्ट्रीय स्तर पर कत्थक की प्रस्तुति भी दे चुके हैं. वहीं इसी डिग्री के आधार पर दर्जन भर बच्चे नौकरी भी कर रहे हैं. मलिक बस्तर के अंदरूनी इलाके के लोक नर्तकों के बीच पहुंचकर उन्हें लोक नृत्य के साथ कत्थक भी सिखा रहे हैं, जिससे एक नया फ्यूजन तैयार हो सके.

की संगीत संस्था की शुरुआत
कथक नर्तक राजमोहन मलिक ने सबसे पहले घुंघरू नामक संगीत संस्था की शुरुआत की. बच्चों को कत्थक का तालीम देना शुरू किया और 1999 से लेकर आज तक 1 हजार से अधिक बच्चों को कथक नृत्य, शास्त्रीय संगीत और तबला सिखा चुके हैं. मलिक 11 राज्यों में कथक नर्तक की प्रस्तुति दे चुके हैं. सुधा चंद्रन के साथ भी उन्होंने अपनी प्रस्तुति दी है. वे अपनी विद्या में गोल्ड मेडलिस्ट हैं. शास्त्रीय कला के क्षेत्र में उन्हें कई सम्मान से नवाजा चुका है.

उन्होंने बताया कि आदिवासी लोक नृत्य में पूरी तरह से एक ठेठपन दिखता है. इसमें प्रयोग करते हुए लोक नृत्य को कत्थक से जोड़ दिया जाए तो प्रस्तुति और भी बेहतर हो सकती है. जिस तरह कथक में चेहरे और दूसरे अंगों के हाव-भाव से नृत्य नाटिका की प्रस्तुति की जाती है, अगर इसे लोक नृत्य में भी लागू किया जाए, तो निश्चित रूप से लोकप्रियता बढ़ेगी.

पारंपरिक नृत्य से जोड़ने की चाह
चिकित्सा के क्षेत्र में सेवा दे रही डॉ. आरती जैन ने कहा कि कथक नृत्य ट्रेडिशनल नृत्य है. बचपन से ही उन्हें इस नृत्य के प्रति काफी रुचि है और वे भी अपने गुरु मलिक की तरह इस कथक में महारथ हासिल कर उनकी तरह बनना चाहती हैं. आधुनिक युग में हिप हॉप डांस की जगह लोगों को शास्त्रीय कला और पारंपरिक नृत्य से जोड़ना चाहती है.

Intro:जगदलपुर। शास्त्रीय कला के क्षेत्र में बस्तर में अपनी पहचान बना चुके राजमोहन मलिक इन दिनों बस्तर के विश्व प्रसिद्ध लोक नृत्य में कथक की छटा बिखेरने आदिवासियों के बीच पहुंचकर उन्हें बस्तर के आदिवासी नृत्य में कथक सिखा रहे हैं ।दरअसल शास्त्रीय कला के कद्रदान अब बहुत कम ही बचे हैं ऐसे में जगदलपुर शहर के रहने वाले राजमोहन मलिक 20 साल से शास्त्रीय कला से जुड़कर बस्तर के बच्चों को कत्थक नृत्य सिखा रहे हैं और अब तक उन्होंने 1000 से अधिक बच्चों को कथक नृत्य सिखाया है । और उन्ही में से करीब 2 दर्जन से अधिक बच्चे राष्ट्रीय स्तर के मंचों पर कत्थक की प्रस्तुति दे चुके हैं। वहीं इसी डिग्री के आधार पर दर्जन भर बच्चे नौकरी भी कर रहे हैं। इसके साथ ही वे बस्तर के अंदरूनी इलाकों के लोक नर्तको के बीच पहुंचकर उन्हें लोक नृत्य के साथ कत्थक भी सिखा रहे हैं जिससे एक नया फ्यूजन तैयार हो सके और लोकनृत्य में कत्थक की छाप देखने को मिले। वही बस्तर में कत्थक को जीवित रखने और छोटे बच्चों में इसके प्रति रुचि जगाने में मलिक एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।


Body:वो1- कथक नर्तक राजमोहन मलिक ने बताया कि उन्होंने चंडीगढ़ के प्राचीन कला केंद्र से भास्कर यानी कत्थक में एम ए के समकक्ष और खैरागढ़ विश्वविद्यालय से एम. डांस की पढ़ाई की और करीब 1999 में वे बस्तर आ गए यहां उन्होंने घुंघरू नामक संगीत संस्था की शुरुआत की और बच्चों को कत्थक सिखाना शुरू कर दिया। और 1999 से लेकर आज तक 1 हजार से अधिक बच्चों को कथक नृत्य शास्त्रीय संगीत और तबला सिखा चुके हैं। और इन्ही बच्चों में से 2 दर्जन से अधिक बच्चे राष्ट्रीय स्तर के मंच पर अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं । और इसी डिग्री के आधार पर दर्जनभर बच्चे नौकरी भी कर रहे हैं । राजमोहन मलिक बताते हैं कि वह अपने कथक नर्तक का 11 राज्यों में प्रस्तुति दे चुके हैं। और सुधा चंद्रन के साथ भी उन्होंने अपनी प्रस्तुति दी है, और वे गोल्ड मेडलिस्ट हैं। शास्त्रीय कला के क्षेत्र में उन्हें कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है । वर्तमान में 100 से अधिक बच्चे उनके पास अलग अलग समय पर कथक नृत्य, शास्त्रीय संगीत और तबला वादन सीख रहे हैं । उनका कहना है कि भारत की संस्कृति में शास्त्रीय कला की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है । और वे पिछले 20 सालों से इस कला से जुड़कर बच्चों को इस कला के गुण सिखा रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने बताया कि आदिवासी लोक नृत्य में पूरी तरह से एक ठेठपन दिखता है। इसमें प्रयोग करते हुए इन लोक नृत्य को कत्थक से जोड़ा जाए तो प्रस्तुति और ज्यादा बेहतर हो सकती है ।कथक में जिस तरह से चेहरे और दूसरे अंगों के हाव भाव से किसी नृत्य नाटिका की प्रस्तुति दी जाती है अगर इसे लोक नृत्य में भी लागू किया जाए तो निश्चित रूप से लोकप्रियता बढ़ेगी। और इसी उद्देश्य वह गर्मी के समय में बस्तर के अलग-अलग अंचलों में जाकर आदिवासी लोक नर्तको को उनके नृत्य में कथक सिखा रहे हैं और आदिवासी बच्चे समेत आदिवासी लोक नर्तक भी काफी रुचि लेकर उनसे यह कथक नृत्य सीख रहे है।

बाईट1- राजमोहन मलिक, कत्थक नर्तक

वो2- इस कथक नृत्य से बच्चियों के साथ साथ अलग अलग क्षेत्र में काम कर रहे युवतियां भी जुड़ रहे हैं ।चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी सेवा दे रही डॉ आरती जैन ने कहा कि कथक नृत्य ट्रेडिशनल नृत्य है और बचपन से ही उन्हें इस नृत्य के प्रति काफी रुचि है और वे भी अपने गुरु मलिक सर की तरह इस कथक नृत्य में महारथी हासिल कर उनकी तरह बनना चाहती है । आधुनिक युग में जिस तरह हिप हॉप डांस का चलन है ऐसे में शास्त्रीय कला के प्रति और कथक नृत्य के प्रति ज्यादा से ज्यादा लोगों को भारत की पारंपरिक नृत्य से जोड़ना चाहती है।

बाईट2- डॉ आरती जैन, शिष्या


Conclusion:
Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

For All Latest Updates

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.