जगदलपुर: बस्तर के लाल आतंक के गलियारे में शास्त्रीय संगीत की बयार बह रही है. भारतीय शास्त्रीय नृत्य कथक की थाप गूंज रही है. इस नृत्य से शांति का पैगाम दिया जा रहा है. जी हा, आपको सुनने में अजीब जरूर लग रहा होगा, लेकिन यह सौ प्रतिशत सत्य है. शास्त्रीय कला के क्षेत्र में बस्तर में पहचान बना चुके राजमोहन मलिक बस्तर के विश्व प्रसिद्ध लोक नृत्य के साथ ही कथक की छटा बिखेर रहे हैं.
आदिवासी बच्चों को सिखा रहे
लाल आतंक के गढ़ में आदिवासी बच्चों को कथक सिखा रहे हैं. जगदलपुर शहर के राजमोहन मलिक 20 साल से शास्त्रीय कला से जुड़कर बस्तर के बच्चों को कत्थक नृत्य सिखा रहे हैं. उन्होंने अब तक 1 हजार से अधिक बच्चों को कथक नृत्य सिखा चुके हैं. करीब 2 दर्जन से अधिक बच्चे राष्ट्रीय स्तर पर कत्थक की प्रस्तुति भी दे चुके हैं. वहीं इसी डिग्री के आधार पर दर्जन भर बच्चे नौकरी भी कर रहे हैं. मलिक बस्तर के अंदरूनी इलाके के लोक नर्तकों के बीच पहुंचकर उन्हें लोक नृत्य के साथ कत्थक भी सिखा रहे हैं, जिससे एक नया फ्यूजन तैयार हो सके.
की संगीत संस्था की शुरुआत
कथक नर्तक राजमोहन मलिक ने सबसे पहले घुंघरू नामक संगीत संस्था की शुरुआत की. बच्चों को कत्थक का तालीम देना शुरू किया और 1999 से लेकर आज तक 1 हजार से अधिक बच्चों को कथक नृत्य, शास्त्रीय संगीत और तबला सिखा चुके हैं. मलिक 11 राज्यों में कथक नर्तक की प्रस्तुति दे चुके हैं. सुधा चंद्रन के साथ भी उन्होंने अपनी प्रस्तुति दी है. वे अपनी विद्या में गोल्ड मेडलिस्ट हैं. शास्त्रीय कला के क्षेत्र में उन्हें कई सम्मान से नवाजा चुका है.
उन्होंने बताया कि आदिवासी लोक नृत्य में पूरी तरह से एक ठेठपन दिखता है. इसमें प्रयोग करते हुए लोक नृत्य को कत्थक से जोड़ दिया जाए तो प्रस्तुति और भी बेहतर हो सकती है. जिस तरह कथक में चेहरे और दूसरे अंगों के हाव-भाव से नृत्य नाटिका की प्रस्तुति की जाती है, अगर इसे लोक नृत्य में भी लागू किया जाए, तो निश्चित रूप से लोकप्रियता बढ़ेगी.
पारंपरिक नृत्य से जोड़ने की चाह
चिकित्सा के क्षेत्र में सेवा दे रही डॉ. आरती जैन ने कहा कि कथक नृत्य ट्रेडिशनल नृत्य है. बचपन से ही उन्हें इस नृत्य के प्रति काफी रुचि है और वे भी अपने गुरु मलिक की तरह इस कथक में महारथ हासिल कर उनकी तरह बनना चाहती हैं. आधुनिक युग में हिप हॉप डांस की जगह लोगों को शास्त्रीय कला और पारंपरिक नृत्य से जोड़ना चाहती है.