रायपुर: शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा का दिन होता है. ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है. मां का ये रूप अपने भक्तों को अनंत फल देने वाला है. इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है. ब्रह्मचारिणी माता तपस्या और त्याग की देवी हैं. हमें अपने जीवन में उदारता के साथ त्याग, तपस्या और ब्रम्हचर्य के व्रत का निश्चित ही पालन करना चाहिए. नवरात्रि के शुभ द्वितीया पर्व पर ब्रह्मचारिणी माता का विशेष महत्व है. इस दिन ब्रह्मचारिणी माता की कथा सुनने, व्रत करने और उपवास करने का विशेष विधान है.Worship of maa Brahmacharini
कुंवारी कन्याओं को मिलता है अच्छा वर: माता ब्रह्मचारिणी हर पल हमें महान तप और महान कर्म करने के लिए प्रेरित करती हैं. आज के दिन व्रत उपवास करने पर कठिन से कठिन समय पर भी विजय प्राप्त होती है. असाध्य लक्ष्य भी प्राप्त किए जा सकते हैं. ऐसे जातक जिनके पारिवारिक जीवन में थोड़ा बहुत मनमुटाव हो. दोनों पति पत्नियों को सौभाग्यवती माता की श्रद्धा से उपासना करनी चाहिए. कुंवारी कन्याएं जिन के विवाह में लंबे अंतराल से बाधा आ रही हो. उन्हें भी ब्रह्मचारिणी माता का व्रत और पूजन करना चाहिए.
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मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि: इस दिन सुबह उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद आसन पर बैठकर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें. मां को फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पित करने के साथ ही दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से स्नान कराएं. मां को भोग लगाएं. फिर उन्हें पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें. फिर मां के मंत्रों को पढ़ें- या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।। दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। अर्थात- हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे आपको मेरा बारम्बार नमस्कार है. जो अपने एक हाथ में कमण्डल और दूसरे हाथ में अक्षमाला धारण करती हैं, जो सदैव अपने भक्तों पर कृपा करती हैं और संपूर्ण कष्ट दूर करके अभीष्ट कामनाओं की पूर्ती करती हैं. इसके अतिरिख्त मां के इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं- ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥ Worship method of Maa Brahmacharini
भगवान शिव की प्राप्ति के लिए की थीं घनघोर तपस्या: ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती ने अभीष्ट शिव की प्राप्ति के लिए घनघोर तपस्या की. जंगल में पाए जाने वाले शाक और पत्रों का भी सेवन करना त्याग दिया था. तब से ही माता अपर्णा नाम से सुशोभित हुई. माता ने यह कार्य महर्षि नारद के उपदेश से ही किया था. नवरात्रि की दूज को सिद्ध करने पर कुंडलिनी जागरण होता है और स्वाधिष्ठान चक्र का जागरण होता है. जिससे मनुष्य की असीमित शक्तियां जागृत हो जाती हैं. द्वितीया नवरात्रि की उपासना से भगवती का विशेष आशीर्वाद मिलता है.