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मल्टीनेशनल कंपनी का ऑफर छोड़ गांव में शुरू किया मछली पालन, मुआयना करने पहुंचेंगे CM नीतीश

पश्चिमी चंपारण के 2 भाईयों ने अपने गांव में मछली पालन शुरू कर मिसाल पेश की है. दरअसल, वे एक ऐसी विधि से मछली पालन कर रहे हैं, जिसमें तालाब की जरुरत नहीं है. सीएम नीतीश कुमार खुद उनके इस तरीके को देखने उनके गांव पहुंच रहे हैं.

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मछली पालन
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Published : Dec 1, 2019, 11:42 PM IST

बेतिया: जिले के मझौलिया के बघम्बरपुर के 2 भाईयों ने इंजीनियरिंग कर मल्टीनेशनल कंपनी के लाखों के पैकेज को छोड़कर गांव में मछली पालन की शुरुआत की है. बायोफ्लॉक विधि से दोनों भाईयों के मछली पालन को देखने के लिए खुद सीएम नीतीश कुमार 3 दिसंबर को इस गांव में आ रहे हैं. मछली पालन की यह विधि जल-जीवन-हरियाली योजना से भी जोड़ी जा सकती है.

गांव के लड़कों ने पेश की मिसाल
यह कहानी बघम्बरपुर गांव के रहने वाले 2 भाई देवानंद सिंह और विवेक सिंह की है. काफी कम जगह में बिना तालाब के, सिर्फ टैंक की मदद से गांव में ही रहते हुए मछली पालन कर दोनों भाईयों ने मिसाल पेश की है. उन्होंने टंकी में मछली पालन के लिए बायोफ्लॉक विधि का इस्तेमाल किया है.
इन टैंकों में मछली पालन करने से आर्थिक रूप से काफी मुनाफा है. इन टैंकों में कैट फिशेज प्रजाति की मछलियां मांगूर, पंगेशियस, सिंगी आदि का उत्पादन किया जा सकता है. इतना ही नहीं, इन टैंकों में साल में 2 बार मछलियों का उत्पादन किया जाता है.

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टैंक में मछली पालन

क्या हैं इस विधि के फायदे?
बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन करने की सबसे खास बात यह है कि इसमें तालाबों में मछली पालन से 75% कम खर्च आता है. यानी तालाब जितनी लागत में औसतन 4 टैंक में मछली पालन कर 3 लाख से ज्यादा की आमदनी कर सकते हैं. एक 10 हजार लीटर के टैंक में एक बार में 5 क्विंटल मछली का उत्पादन होता है. इस टैंक के निर्माण में 25 हजार रुपये का खर्च आता है. मछली पालन का यह एक ऑर्गेनिक तरीका है. इजरायल, इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया में इसी तरह मछली पालन किया जाता है. इंडोनेशिया में इस तकनीक को सबसे ज्यादा अपनाया जाता है.

पेश है रिपोर्ट

इस विधि में ध्यान रखने वाली बातें-
मछली पालन की इस विधि में इस बात का ध्यान रखना होता है कि मछली का बीज थोड़ा बड़ा होना चाहिए. साथ ही मछलियों को पूरी मात्रा में भोजन और ऑक्सीजन मिलने के लिए 24 घंटे बिजली की जरूरत होगी. हालांकि आधे से एक घंटे तक बिजली की कटौती होने पर मछलियों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा.
यह भी पढ़ें-
अब ऑनलाइन माध्यम से मिलेगा किसानों को बीज, जानें क्या है प्रक्रिया?

डीएम ने की तारीफ
इस तकनीक की तारीफ करते हुए डीएम डॉ. नीलेश ने जिला के किसान और मछली पालकों को पारंपरिक तरीके के साथ-साथ इस नई तकनीक को भी अपनाने का आग्रह किया. उन्होंने जल-जीवन-हरियाली मिशन से जोड़ते हुए कहा कि बायोफ्लॉक विधि से किसान कम पानी और कम जगह में ज्यादा मछली का पालन कर सकते हैं.

बेतिया: जिले के मझौलिया के बघम्बरपुर के 2 भाईयों ने इंजीनियरिंग कर मल्टीनेशनल कंपनी के लाखों के पैकेज को छोड़कर गांव में मछली पालन की शुरुआत की है. बायोफ्लॉक विधि से दोनों भाईयों के मछली पालन को देखने के लिए खुद सीएम नीतीश कुमार 3 दिसंबर को इस गांव में आ रहे हैं. मछली पालन की यह विधि जल-जीवन-हरियाली योजना से भी जोड़ी जा सकती है.

गांव के लड़कों ने पेश की मिसाल
यह कहानी बघम्बरपुर गांव के रहने वाले 2 भाई देवानंद सिंह और विवेक सिंह की है. काफी कम जगह में बिना तालाब के, सिर्फ टैंक की मदद से गांव में ही रहते हुए मछली पालन कर दोनों भाईयों ने मिसाल पेश की है. उन्होंने टंकी में मछली पालन के लिए बायोफ्लॉक विधि का इस्तेमाल किया है.
इन टैंकों में मछली पालन करने से आर्थिक रूप से काफी मुनाफा है. इन टैंकों में कैट फिशेज प्रजाति की मछलियां मांगूर, पंगेशियस, सिंगी आदि का उत्पादन किया जा सकता है. इतना ही नहीं, इन टैंकों में साल में 2 बार मछलियों का उत्पादन किया जाता है.

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टैंक में मछली पालन

क्या हैं इस विधि के फायदे?
बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन करने की सबसे खास बात यह है कि इसमें तालाबों में मछली पालन से 75% कम खर्च आता है. यानी तालाब जितनी लागत में औसतन 4 टैंक में मछली पालन कर 3 लाख से ज्यादा की आमदनी कर सकते हैं. एक 10 हजार लीटर के टैंक में एक बार में 5 क्विंटल मछली का उत्पादन होता है. इस टैंक के निर्माण में 25 हजार रुपये का खर्च आता है. मछली पालन का यह एक ऑर्गेनिक तरीका है. इजरायल, इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया में इसी तरह मछली पालन किया जाता है. इंडोनेशिया में इस तकनीक को सबसे ज्यादा अपनाया जाता है.

पेश है रिपोर्ट

इस विधि में ध्यान रखने वाली बातें-
मछली पालन की इस विधि में इस बात का ध्यान रखना होता है कि मछली का बीज थोड़ा बड़ा होना चाहिए. साथ ही मछलियों को पूरी मात्रा में भोजन और ऑक्सीजन मिलने के लिए 24 घंटे बिजली की जरूरत होगी. हालांकि आधे से एक घंटे तक बिजली की कटौती होने पर मछलियों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा.
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डीएम ने की तारीफ
इस तकनीक की तारीफ करते हुए डीएम डॉ. नीलेश ने जिला के किसान और मछली पालकों को पारंपरिक तरीके के साथ-साथ इस नई तकनीक को भी अपनाने का आग्रह किया. उन्होंने जल-जीवन-हरियाली मिशन से जोड़ते हुए कहा कि बायोफ्लॉक विधि से किसान कम पानी और कम जगह में ज्यादा मछली का पालन कर सकते हैं.

Intro:एंकर----- बायोफ्लॉक विधि से मझौलिया के बघम्बरपुर में इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद, लाखों का पैकेज मल्टीनेशनल कंपनियों में छोड़ देवानंद सिंह और उनके भाई विवेक सिंह ने टैंक में मछली पालन की शुरुआत की है, जिसे देखने सीएम नीतीश कुमार 3 दिसंबर को इस गांव में आ रहे हैं, इस बायोफ्लॉक विधि को जल जीवन हरियाली से भी जोड़ा जा सकता है।


Body:मछली पालन के लिए ज्यादा जमीन नहीं भी हो तो आसानी से कम जगह में टैंक में बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन कर आर्थिक रूप से मत्स्य पालन समृढ़ होंगे, इन टैंकों में कैट फिशेज प्रजाति की मछलियां मांगूर, पंगेशियस,सिंगी का उत्पादन किया जा सकता है, इतना ही नहीं इन टैंकों में 1 साल में दो बार उत्पादन मछलियों का लिया जाता है, सबसे बड़ी बात यह है कि टैंक में मछलियों के पालन में तालाबों में होने वाले मछलियों के पालन से 75% कम खर्च आता है, यही कारण है कि मछली पालन औसतन चार टैंक में मछली पालन कर तीन लाख से ज्यादा की आमदनी कर सकते हैं, एक टैंक में एक बार में 5 क्विंटल मछली का उत्पादन होता है, एक 10 हजार लीटर क्षमता वाले टैंक के निर्माण में 25 हजार का खर्च आता है।

ऑर्गेनिक तरीके से यह मछली पालन किया जाता है, इजरायल तकनीक को अपनाया गया है, इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया में इस तरह से मछली पालन किया जाता है, इंडोनेशिया में सबसे ज्यादा इस तकनीक को अपनाया गया है।

बाइट- देवानंद सिंह, व्यवस्थापक
बाइट- विवेक सिंह, व्यवस्थापक


Conclusion:इस तकनीक का पश्चिमी चंपारण जिलाधिकारी डॉ. नीलेश रामचंद्र देवरे ने तारीफ करते हुए जिले के किसान व मछली पालकों को पारंपरिक परंपरा के साथ ही इस नवीन तकनीक को अपनाने का आह्वान किया है, उन्होंने जल जीवन हरियाली मिशन से जोड़ते हुए कहा कि बायोफ्लॉक विधि से कम जल और कम जगह में किसान मछली का पालन ज्यादा से ज्यादा कर सकते हैं।

बाइट- डॉ. नीलेश रामचंद्र देवरे, डीएम,पश्चिमी चंपारण

बता दें कि टैंक निर्माण में 25 हजार का खर्च आता है, इसमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि मछली का बीज थोड़ा बड़ा हो, साथ ही मछलियों को भोजन देने व उन्हें आसानी से पूरी मात्रा में ऑक्सीजन मिले इसके लिए 24 घंटे बिजली की जरूरत होगी, हालांकि आधा से 1 घंटे बिजली की कटौती होने पर भी मछलियों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता है।

जितेन्द्र कुमार गुप्ता
ईटीवी भारत, बेतिया
पीटीसी
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