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कैसे खाक में मिल गया बिहार में खास स्थान रखने वाला पेपर मिल ?

समस्तीपुर पेपर मिल की स्थापना राम विनोद शर्मा ने किया था. इसमें 49 फीसदी राज्य सरकार का भी शेयर था. वैसे प्रबंधक और मजदूर यूनियन के बीच चले टकराव के वजह से पहली बार 1972 मे यह मिल बंद हो गया. उसके बाद यह मशहूर उधोगपति डालमिया और बीके झुनझुनवाला के हाथों में इसका बागडोर दिया गया. वैसे मिल का हालात बिगड़ते चला गया.

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पेपर मिल
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Published : Oct 27, 2020, 6:55 PM IST

समस्तीपुर: चुनावी दंगल के बीच पेपर मिल का जिक्र किया गया जो कभी सूबे में एक खास स्थान रखता था. समस्तीपुर विधानसभा क्षेत्र के अतंर्गत आने वाला यह मिल 1979 में बंद हो गया. कई सरकारें आई और गई, लेकिन इस मिल को बचाने के लिए कोई पहल नहीं किया गया. बहरहाल,पेपर मिल का अस्तित्व पूरी तरह खाक में मिल गया है.

पेपर मिल का अस्तित्व खत्म
सरकारों के दावों के बावजूद समस्तीपुर विधानसभा क्षेत्र के जितवारपुर स्थित पेपर मिल का हाल जरूर देखिए. कैसे लचर सियासी इच्छाशक्ति के वजह से उधोग का एक बड़ा केंद्र खंडहर होकर पूरी तरह खाक में मिल गया है. उधोग का वह केंद्र जो कभी हजारों लोगों के रोजगार का जरिया था, जिस मिल में बनने वाले कागज की मांग दिल्ली, कोलकाता , मुंबई जैसे कई राज्यों में हुआ करता था. आज उस मिल के अस्तित्व के नाम पर महज कुछ ईंट के टुकड़े शेष बचे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

जानें पेपर मील के बारें में
स्थानीय लोगों का माने तो पेपर मिल की स्थापना राम विनोद शर्मा ने किया था. इसमें 49 फीसदी राज्य सरकार का भी शेयर था. वैसे प्रबंधक और मजदूर यूनियन के बीच चले टकराव के वजह से पहली बार 1972 मे यह मिल बंद हो गया. उसके बाद यह मशहूर उधोगपति डालमिया और बीके झुनझुनवाला के हाथों में इसका बागडोर दिया गया. वैसे मिल का हालात बिगड़ते चला गया.

पेपर मिल का 49 एकड़ जमीन हुई निलाम
बहरहाल इसको चलाने के लिए स्थानीय स्तर पर श्रमिक संघ का गठन किया गया, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद 1979 में इस मिल पर ताला लटका दिया गया. वैसे उसके बाद कई सरकार आयी और गई. इस ओर ध्यान नहीं गया. धरातल पर कड़वी सच्चाई यह है कि इस मिल का अस्तित्व तक ढूंढने से नहीं मिलने वाला है. बीते कुछ दशकों के अंदर विभिन्न नियमावली के तहत इस पेपर मिल के करीब 49 एकड़ से भी ज्यादा जमीन की निलामी हो गई. वैसे मिल के नाम पर अभी भी कुछ ईंट-पत्थर बचे हैं , जो जिले में उधोग के खाक होती कहानी का गवाह हैं.

समस्तीपुर: चुनावी दंगल के बीच पेपर मिल का जिक्र किया गया जो कभी सूबे में एक खास स्थान रखता था. समस्तीपुर विधानसभा क्षेत्र के अतंर्गत आने वाला यह मिल 1979 में बंद हो गया. कई सरकारें आई और गई, लेकिन इस मिल को बचाने के लिए कोई पहल नहीं किया गया. बहरहाल,पेपर मिल का अस्तित्व पूरी तरह खाक में मिल गया है.

पेपर मिल का अस्तित्व खत्म
सरकारों के दावों के बावजूद समस्तीपुर विधानसभा क्षेत्र के जितवारपुर स्थित पेपर मिल का हाल जरूर देखिए. कैसे लचर सियासी इच्छाशक्ति के वजह से उधोग का एक बड़ा केंद्र खंडहर होकर पूरी तरह खाक में मिल गया है. उधोग का वह केंद्र जो कभी हजारों लोगों के रोजगार का जरिया था, जिस मिल में बनने वाले कागज की मांग दिल्ली, कोलकाता , मुंबई जैसे कई राज्यों में हुआ करता था. आज उस मिल के अस्तित्व के नाम पर महज कुछ ईंट के टुकड़े शेष बचे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

जानें पेपर मील के बारें में
स्थानीय लोगों का माने तो पेपर मिल की स्थापना राम विनोद शर्मा ने किया था. इसमें 49 फीसदी राज्य सरकार का भी शेयर था. वैसे प्रबंधक और मजदूर यूनियन के बीच चले टकराव के वजह से पहली बार 1972 मे यह मिल बंद हो गया. उसके बाद यह मशहूर उधोगपति डालमिया और बीके झुनझुनवाला के हाथों में इसका बागडोर दिया गया. वैसे मिल का हालात बिगड़ते चला गया.

पेपर मिल का 49 एकड़ जमीन हुई निलाम
बहरहाल इसको चलाने के लिए स्थानीय स्तर पर श्रमिक संघ का गठन किया गया, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद 1979 में इस मिल पर ताला लटका दिया गया. वैसे उसके बाद कई सरकार आयी और गई. इस ओर ध्यान नहीं गया. धरातल पर कड़वी सच्चाई यह है कि इस मिल का अस्तित्व तक ढूंढने से नहीं मिलने वाला है. बीते कुछ दशकों के अंदर विभिन्न नियमावली के तहत इस पेपर मिल के करीब 49 एकड़ से भी ज्यादा जमीन की निलामी हो गई. वैसे मिल के नाम पर अभी भी कुछ ईंट-पत्थर बचे हैं , जो जिले में उधोग के खाक होती कहानी का गवाह हैं.

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