पटना: चाय की चुस्कियां और अखबारों की खबरों पर नजर, फिर चर्चा और चुस्कियां. कभी राजनीतिक चर्चा तो कभी जेब खर्ची की चिंता. कुछ ऐसा ही दृश्य होता है चाय की टपरी यानी दुकान पर. लेकिन आज जब लोग घरों में कैद हैं, तो चाय की ये दुकानें बंद हैं. ऐसे में चायवाले चाचा हो या भईया, सभी परेशान हैं. ईटीवी भारत ने पटना के कई चाय वालों से उनका दर्द जाना.
दिहाड़ी मजदूरों के साथ-साथ दिहाड़ी व्यापार पर भी कोरोना का ग्रहण लगा हुआ है. रोजाना चाय पत्ती, चीनी और दूध की खरीद कर चाय वाले अपने इस लघु व्यापार को चलाते हैं. लागू लॉकडाउन के बाद इनके व्यापार ठप पड़ा हुआ है. सदा गुलजार रहने वाली चाय की दुकानें आज बंद हैं. यहां मौजूद भट्ठियां ठंडी पड़ी हुई हैं.
क्या करें साहब?
पटना के गोलंबर चौहारा हो या स्टेशन के आस पास की चाय की दुकानें, सभी बंद हैं. यहां चाय वाले बताते हैं कि रोजाना 250 से 1 हजार रुपया तक की आमदनी हो जाती थी. ऐसे में पहले लॉकडाउन तक तो ठीक था, लेकिन दूसरा लॉकडाउन शुरू होते ही जोड़े गए रुपये भी खर्च हो गए हैं. अब खाने के लाले पड़ गये हैं. कर्ज मांग-मांगकर घर चला रहे हैं.
चाय की टपरी बनी आशियाना
अचानक लागू हुए लॉकडाउन में जो जहां था वहीं फंस गया. पटना में ऐसे कई चाय वाले हैं, जो दूसरे जिलों से आए हुए हैं. लिहाजा, लॉकडाउन लागू होने के बाद वो अपने घर नहीं जा सके. इसके चलते उन्होंने चाय की अपनी टपरी को ही आशियाना बना लिया है. बांटे जा रहे फूड पैकेट खा-खाकर गुजर बसर कर रहे हैं.
कुछ चाय वाले बताते हैं कि सरकारी मदद उन्हें नहीं मिल रही है और कुछ का कहना है कि सीएम नीतीश कुमार के भेजे गए एक हजार रुपया उनके पास पहुंच गये हैं. वहीं, उन्हें सरकार से खाने पीने से लेकर आर्थिक मदद तक की आस है. चाय वाले कहते हैं कि अब चाय बनाने के लिए जो लागत लगेगी, उसके लिए भी पास में रुपया नहीं है, हालत बड़ी खराब हो चली है.