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गोपालगंज में किन्नर जी रहे बेहतर और इज्जतदार जिंदगी, मूर्तियां बनाकर करते हैं गुजारा

देवी-देवताओं की मूर्ति बनाने वाली वैशाली कहती हैं कि दस वर्ष पहले मैंने नाच गाना छोड़ कर मूर्ति बनाने की कला सीखी थी. तब से लेकर आज तक मूर्ति बनाती हूं. जितनी इज्जत मुझे इस काम में मिली, उतनी मुझे नाच-गाने में नहीं मिली.

किन्नर जी रहे बेहतर और इज्जतदार जिंदगी
किन्नर जी रहे बेहतर और इज्जतदार जिंदगी
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Published : Dec 29, 2019, 6:54 PM IST

Updated : Dec 29, 2019, 7:21 PM IST

गोपालगंज: किन्नरों के बारे में सोचते ही मन में एक अलग ही सोच उमड़ पड़ती है. ज्यादातर दूसरों की खुशियों पर बधाई मांगने और अश्लील डांस के लिए किन्नरों की जो छवि समाज में बनी हुई है. उससे सभी रूबरू हैं. लेकिन बिहार के गोपालगंज में इन सबके परे किन्नरों का एक ग्रुप आज इज्जत की जिंदगी जी रहा है. ऐसा हम नहीं, खुद किन्नर कह रहे हैं.

गोपालगंज के सिधवलिया प्रखंड के जलालपुर गांव में करीब दस सालों से किन्नरों का समूह मूर्ति बनाकर जीविकोपार्जन कर रहा है. यही नहीं, मूर्तियों से इन किन्नरों की अच्छी खासी आमदनी हो रही है. इज्जत के साथ जी रहे ये किन्नर नाच गाना और बधाई देने वाले काम को अपने जिंदगी के पन्नों से मिटा चुके हैं.

ऐसे बनाते हैं मूर्तियां
ऐसे बनाती हैं मूर्तियां

'अब अच्छा लगता है'
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए किन्नर वैशाली और सोना कहते हैं कि पहले की लाइफ के बारे में सोचते हैं तो अब बेहतर लगता है. मेहनत कर मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं. लोग हमारी मूर्तियों को खरीदते भी हैं. इससे अच्छी आमदनी हो रही है.

कहां से सीखी ये कला?
इस बाबत वैशाली ने बताया कि उन्होंने यूपी के बलिया में रहने वाले अपने गुरु से मूर्ति बनाने की कला सीखी. अब वो बेहतरीन माटी की मूर्तियों का निर्माण करती है. वहीं, सोना की माने तो वो दिल्ली से बिहार आयी हैं. अगर अन्य किन्नर चाहेंगे तो वो उन्हें भी ये कला सिखाएंगी.

गोपालगंज से अटल बिहारी पांडेय की रिपोर्ट

'ऊपर वाले की मर्जी को नकार नहीं सकते'
देवी-देवताओं की मूर्ति बनाने वाली वैशाली कहती है कि दस वर्ष पहले मैंने नाच गाना छोड़ कर मूर्ति बनाने की कला सीखी थी. तब से लेकर आज तक मूर्ति बनाती हूं. जितनी इज्जत मुझे इस काम में मिली, उतनी मुझे नाच-गाने में नहीं मिली. ईश्वर ने मुझे चाहे जैसे बनाया हो, वो उनकी मर्जी थी. लेकिन मैं अपनी जिंदगी कैसे बिताऊं, उसमें मेरी मर्जी है. इसलिए मैं चाहती हूं कि मैं अपनी जिंदगी इज्जत से बिताऊं.

मूर्ति बनाती वैशाली
मूर्ति बनाती वैशाली

यह भी पढ़ें- बिहार के लाल ने SAT में किया टॉप: कैलिफोर्निया में पढ़ेगा Astro Physics, साइंटिस्ट बन करेगा देश सेवा

गांव वाले करते हैं सपोर्ट
किन्नरों के इस काम को देखते हुए स्थानीय काफी खुश नजर आते हैं. वहीं, जललापुर गांव के लोग भी इनका काफी सपोर्ट कर रहे हैं. जमीन की जरूरत हो या इनके काम में आने वाली मुसीबतों की. स्थानीय लोग इनका काफी सहयोग करते हैं. इस बाबत इरफान बताते हैं कि सीजन के अनुसार मूर्तियां बनाकर ये लोग अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं. इनकी मदद कर, अच्छा लगता है.

  • देश में सरस्वती पूजा धूमधाम से मनायी जाती है. इस वक्त किन्नरों का समूह सरस्वती पूजा के लिये मां सरस्वती की मूर्ति बनाने की तैयारी कर रहा है. इनके हाथ से बनी मूर्तियों की डिमांड बढ़ गई है.

गोपालगंज: किन्नरों के बारे में सोचते ही मन में एक अलग ही सोच उमड़ पड़ती है. ज्यादातर दूसरों की खुशियों पर बधाई मांगने और अश्लील डांस के लिए किन्नरों की जो छवि समाज में बनी हुई है. उससे सभी रूबरू हैं. लेकिन बिहार के गोपालगंज में इन सबके परे किन्नरों का एक ग्रुप आज इज्जत की जिंदगी जी रहा है. ऐसा हम नहीं, खुद किन्नर कह रहे हैं.

गोपालगंज के सिधवलिया प्रखंड के जलालपुर गांव में करीब दस सालों से किन्नरों का समूह मूर्ति बनाकर जीविकोपार्जन कर रहा है. यही नहीं, मूर्तियों से इन किन्नरों की अच्छी खासी आमदनी हो रही है. इज्जत के साथ जी रहे ये किन्नर नाच गाना और बधाई देने वाले काम को अपने जिंदगी के पन्नों से मिटा चुके हैं.

ऐसे बनाते हैं मूर्तियां
ऐसे बनाती हैं मूर्तियां

'अब अच्छा लगता है'
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए किन्नर वैशाली और सोना कहते हैं कि पहले की लाइफ के बारे में सोचते हैं तो अब बेहतर लगता है. मेहनत कर मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं. लोग हमारी मूर्तियों को खरीदते भी हैं. इससे अच्छी आमदनी हो रही है.

कहां से सीखी ये कला?
इस बाबत वैशाली ने बताया कि उन्होंने यूपी के बलिया में रहने वाले अपने गुरु से मूर्ति बनाने की कला सीखी. अब वो बेहतरीन माटी की मूर्तियों का निर्माण करती है. वहीं, सोना की माने तो वो दिल्ली से बिहार आयी हैं. अगर अन्य किन्नर चाहेंगे तो वो उन्हें भी ये कला सिखाएंगी.

गोपालगंज से अटल बिहारी पांडेय की रिपोर्ट

'ऊपर वाले की मर्जी को नकार नहीं सकते'
देवी-देवताओं की मूर्ति बनाने वाली वैशाली कहती है कि दस वर्ष पहले मैंने नाच गाना छोड़ कर मूर्ति बनाने की कला सीखी थी. तब से लेकर आज तक मूर्ति बनाती हूं. जितनी इज्जत मुझे इस काम में मिली, उतनी मुझे नाच-गाने में नहीं मिली. ईश्वर ने मुझे चाहे जैसे बनाया हो, वो उनकी मर्जी थी. लेकिन मैं अपनी जिंदगी कैसे बिताऊं, उसमें मेरी मर्जी है. इसलिए मैं चाहती हूं कि मैं अपनी जिंदगी इज्जत से बिताऊं.

मूर्ति बनाती वैशाली
मूर्ति बनाती वैशाली

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गांव वाले करते हैं सपोर्ट
किन्नरों के इस काम को देखते हुए स्थानीय काफी खुश नजर आते हैं. वहीं, जललापुर गांव के लोग भी इनका काफी सपोर्ट कर रहे हैं. जमीन की जरूरत हो या इनके काम में आने वाली मुसीबतों की. स्थानीय लोग इनका काफी सहयोग करते हैं. इस बाबत इरफान बताते हैं कि सीजन के अनुसार मूर्तियां बनाकर ये लोग अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं. इनकी मदद कर, अच्छा लगता है.

  • देश में सरस्वती पूजा धूमधाम से मनायी जाती है. इस वक्त किन्नरों का समूह सरस्वती पूजा के लिये मां सरस्वती की मूर्ति बनाने की तैयारी कर रहा है. इनके हाथ से बनी मूर्तियों की डिमांड बढ़ गई है.
Intro:कभी दुसरो के घर बधाई देने व अश्लील डांस करने वाली किन्नर जी रही है इज्जत की जिंदगी
---दस वर्षों से देवी देवताओं की मूर्ति बनाकर करते है जीविकोपार्जन

गोपालगंज। कभी दुसरो के यहां बधाई देने व अश्लील डांस करने वाली यह किन्नर आज समाज में इज्जत की जिंदगी जी रहे है। सिधवलिया प्रखण्ड के जलालपुर गाँव मे कतिब दस वर्षों से यहां किन्नर मूर्ति बनाकर अच्छी आमदनी के साथ इज्जत पा रहे है। अब ये किन्नर दुबारा नाच गाना व बधाईयाँ देने वाले काम को पीछे छोड़ चुके है। स्थनीय लोग इन्हें सम्मान व इज्जत भरी निगाहों से देखते है।





Body:जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर जलालपुर गांव में रहने वाली किन्नर वैशाली, सोना ना सिर्फ इस समाज मे इज्जत की जिंदगी जी रहे है। बल्कि अपने समाज के अन्य किन्नरो के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है। बलिया जिले के रहने वाली वैशाली किन्नर 10 वर्ष पूर्व अपने गुरु से मूर्ति बनाने की कला सिख कर अपनी कला को प्रदर्शित कर आज समाज मे लोगो के बीच एक अलग पहचान बना ली है। यहां रहने वाली सोना किन्नर बताती है कि पहले लोग हमें गलत निगाह से देखते थे। हमारा मजाक उड़ाया जाता था । लेकिन जब से नाच गाना छोड़ कर कला से जुड़ गई तब से लोग इज्जत देते है। मुझे यहां के लोग बहुत अच्छे लगते है। मैं चाहती हु की इसी तरह अन्य किन्नर भी इज्जत की जिंदगी जिये ताकि समाज में उन्हें सही नजरिये से लोग देखे।

बाइट-सोना किन्नर,

वही वैशाली किन्नर कहती है कि दस वर्ष पहले मैंने नाच गाना छोड़ कर मूर्ति बनाने की कला सीखी थी। तब से लेकर आज तक मूर्ति बनाती हूँ। जितना इज्जत मुझे इस काम मे मिला उतना मुझे नाच गाना में नही मिलता। ईश्वर ने मुझे चाहे जैसे बनाया वो उनकी मर्जी थी लेकिन मैं अपना जिंदगी कैसे बिताऊँ उसमे मेरी मर्जी है। इसलिए मैं चाहती हूं कि मैं अपना जिंदगी इज्जत से बिताऊँ। अगर कोई किन्नर नाच गाना छोड़ कर मूर्ति बनाने की कला सीखे तो मैं उसे जरूर सिखाऊंगी। बहरहाल वैशाली स्वीटी व सोना जैसी किन्नरो को गंदी नजर से देखने वाले लोगों की नजरों में भी इनका इज्जत बढ़ गई है।

बाइट-वैशाली किन्नर, मूर्ति बनाते हुए(काला कपड़ा)

वही स्थानीय निवासी इरफान ने बताया कि ये किन्नर काफी दिनों से यहां मूर्ति बनाते है हम लोग भी इन्हें काफी स्पोर्ट करते है जमीन की जरूरत होने पर हम लोग अपने जमीन को देकर इनके कार्य को बल देने की कोशिश करते है।इनके द्वारा किये गए कार्य काफी सराहनीय है अब ये किन्नर नाच गाना नही करते है बल्कि इसी तरह सीजन के अनुसार मूर्तिया बनाकर अपना जीविकोपार्जन करते है। साथ जी ये आपने समाज के लोगो को नाच गाना छोड़ कर इज्जत किं जिन्दगी जीने के लिए प्रेरित करते है।

बाइट-इरफान


Conclusion: पूरे देश में सरस्वती पूजा धूमधाम से मनाया जाता है जिसमे अपनी सहभागिता के लिए ये किन्नर भी जुट गई है। इनके द्वारा बनाई गई मूर्तियो का डिमाण्ड भी काफी बढ़ जाता है जिसको लेकर पहले।से ही ये मूर्तियों को बनाने में जुट गई है।

Last Updated : Dec 29, 2019, 7:21 PM IST
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