दरभंगाः जिले के 15 प्रखंडों में आई बाढ़ से तकरीबन 20 लाख की आबादी प्रभावित हुई है. बाढ़ पीड़ित सैकड़ों परिवार दाने-दाने को मोहताज हैं और सड़क किनारे प्लास्टिक घेरकर रहने को मजबूर हैं. सरकार और जन प्रतिनिधि इन बाढ़ पीड़ितों की मदद के बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, लेकिन इन दावों की सच्चाई क्या है? ये इस ग्राउंड रिपोर्ट में देखिये.
20 दिनों से एनएच पर बसेरा
दरभंगा सदर प्रखंड की बिजली पंचायत के ककरघाटी गांव के 100 से ज्यादा बाढ़ पीड़ित परिवार एनएच 57 पर शरण लिए हुए हैं. तकरीबन 20 दिनों से ये लोग प्लास्टिक शीट तान कर अपने बच्चों और माल-मवेशियों के साथ यहीं रह रहे हैं. एनएच के सामने गांव में डूबे हुए इनके घर साफ दिखते हैं. इन परिवारों की तकलीफ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इनके लिए जो कम्युनिटी किचन शुरू किया गया था, वो भी एक सप्ताह से बंद है.
जन प्रतिनिधियों के खिलाफ आक्रोश
कम्युनिटी किचन बंद होने की वजह से अब खाने के भी लाले पड़ रहे हैं. इनके पशुओं के लिए चारे भी नहीं है. इन बाढ़ पीड़ितों को भगवान भरोसे सड़क पर छोड़ दिया गया है. ईटीवी भारत के संवाददाता ने एनएच 57 पर पहुंचकर बाढ़ पीड़ित परिवारों की तकलीफ जानने की कोशिश की. जहां मौजूद लोगों में सरकार और जन प्रतिनिधियों के खिलाफ काफी आक्रोश दिखा.
'मुखिया और विधायक पूछने तक नहीं आते'
स्थानीय हरखू सहनी ने कहा कि सामने ही उनका गांव डूबा हुआ है. निकलने का कोई रास्ता नहीं है. इसलिए वे लोग एनएच पर शरण लिए हुए हैं. उनको खाने-पीने की बहुत तकलीफ है. उनके पशुओं के लिए चारा भी नहीं है. मुखिया और विधायक उन्हें पूछने तक नहीं आते हैं. एक दिन विधायक जी आए और कुछ पूड़ियां बांट कर चले गए. उसके बाद फिर कोई पूछने नहीं आया.
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'कम्युनिटी किचन भी हो गया बंद'
स्थानीय कृपाल सहनी ने कहा कि खाने की सबसे ज़्यादा दिक्कत हो गई है. एक कम्युनिटी किचन चलता था. लेकिन एक सप्ताह से वह भी बंद है. अब वे लोग खुद भोजन का इंतजाम करते हैं या फिर भूखे रहते हैं. उनके गांव में जाने का कोई रास्ता नहीं है. वे लोग भगवान भरोसे यहां रह रहे हैं. स्थानीय बुधिया देवी ने कहा कि बाढ़ में उनका घर गिर गया है. इस सड़क पर एक महीना से रह रहे हैं. लेकिन कोई पूछने नहीं आता है. खाने-पीने की बहुत दिक्कत है.
'इस बार नहीं देंगे किसी को वोट'
स्थानीय सुंदरी देवी ने कहा कि छोटे-छोटे बच्चों को लेकर सड़क पर रहने में बहुत परेशानी है. हर वक्त खतरा रहता है. हमारा घर डूब गया है, खाना-पीने पर आफत है. उन्होंने कहा कि कहीं से कोई मदद नहीं मिल रही है. वहीं, स्थानीय छोटू सहनी ने कहा कि सब लोग चुनाव में वोट मांगने आ जाते हैं. लेकिन इस तकलीफ में कोई पूछने नहीं आ रहा है. लोग चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे करते हैं कि घर बना कर देंगे, हर सुविधा देंगे, लेकिन जीतने के बाद लोग लौट कर नहीं आता है. इस बार हम लोग ऐसे लोगों को वोट नहीं देंगे.
परेशान और बेहाल हजारों बाढ़ पीड़ित
बहरहाल अब इन बाढ़ पीड़ितों के कब तक इसी तरह सड़क पर रहना होगा ये इन्हें भी नहीं मालूम. प्रशासन के जरिए किए जा रहे राहत कार्य तमाम लोगों तक नहीं पहुंच रहे हैं. सैकड़ों बाढ़ पीड़ित डर के साए में एनएच पर भूखे रहकर जिंदगी गुजार रह रहे हैं. हालांकि बिहार में आने वाली हर साल इस बाढ़ का अंदाजा सरकार को प्रशासन को पहले से ही होता है. इसके बावजूद राहत सामग्री की कमी और प्रशासनिक लापरवाही के कारण हजारों बाढ़ पीड़ित परेशान और बेहाल हैं.