पटना: लखनऊ की इकाना मैदान में 25 मार्च को योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद के लिए शपथ ले रहे थे. इस शपथ ग्रहण समारोह के लिए जो मंच सजा था, उस पर देश की तमाम वैसी राजनीतिक हस्तियां मौजूद थी. जो देश में सबसे मजबूत सत्ता के आधार और स्तंभ भी हैं. उसमें एक दिलचस्प चेहरा और बड़ा नाम भी मंच पर था, उस भरोसे के साथ कि शपथ में वह साथ देने आए हैं. लेकिन, जब बीजेपी उत्तर प्रदेश में '2022 में हुकूमत की जंग' की तैयारी कर रही थी, उस समय यह तय नहीं था कि परिणाम के बाद शपथ का जो मंच सजेगा, उस पर वह किस रूप में होंगे. जी हां बात हो रही है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की.
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योगी के शपथ ग्रहण में नीतीश: नीतीश कुमार योगी आदित्यनाथ के 2022 के दूसरे वाले शपथ समारोह (CM Yogi Oath Ceremony) में मौजूद थे और जब प्रधानमंत्री का अभिवादन किया तो राजनीतिक गलियारे में इस बात की चर्चा शुरू हो गई. यह जीत वाले जख्म के मंच पर मन के कौन से भाव हैं, जिसमें बीजेपी विपक्ष को हराकर जीती है या फिर नीतीश कुमार हारकर बहुत कुछ जीते हैं. राजनीति में इस बात की चर्चा इसलिए भी जोरों से है कि उत्तर प्रदेश के 2022 के चुनाव के लिए नीतीश कुमार की पार्टी पूरी तैयारी के साथ उत्तर प्रदेश में आई थी.
नीतीश ने UP में नहीं किया था प्रचार: उत्तर प्रदेश में किस सीट पर क्या बंटवारा किया गया और किसे चुनावी मैदान में उतारा गया, यह जदयू के लिए बहुत बड़ी बात नहीं थी, लेकिन पूर्वांचल में जिस तरीके से मल्हनी सीट और वहां से जदयू के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़े पूर्वांचल के बाहुबली धनंजय सिंह जदयू का परचम लहरा रहे थे. उससे एक बात साफ हो रही थी कि नीतीश कुमार बीजेपी के विरोध में उत्तर प्रदेश वाली सियासत में रहेंगे, लेकिन नीतीश कुमार बिहार से बाहर उत्तर प्रदेश आए ही नहीं. चुनाव से पहले उनकी पार्टी पहले बहुत बड़े-बड़े दावे करती रही, लेकिन नीतीश कुमार चुनाव प्रचार में उत्तर प्रदेश नहीं आए.
यूपी चुनाव में जेडीयू का फ्लॉप शो: यह माना जा रहा था कि धनंजय सिंह का जो कद है, जिस तरीके का तेवर है और पूर्वांचल में राजपूतों का जिस तरीके से वर्चस्व है. कम से कम 1 सीट जदयू के खाते में जरूर जाएगी, लेकिन यहां भी नीतीश कुमार की पार्टी को मुंह की खानी पड़ी और धनंजय सिंह भी नीतीश के खाते में जीत वाला जश्न नहीं डाल पाए. दिल्ली से लेकर पटना तक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने लगातार कहा था कि पार्टी का कैडर बेस बढ़ा हुआ है और हम इसे और बड़ा करेंगे पार्टी को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाएंगे.
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राबड़ी का सीएम नीतीश पर हमला: उत्तर प्रदेश में जदयू बहुत कुछ नहीं कर पाई, लेकिन दूसरे राज्यों में चुनाव लड़कर पार्टी ने अपने लिए यह जरूर खड़ा किया कि वह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी दावेदारी पेश करेगी, लेकिन राजनीति का राष्ट्रीय मंच जब सजेगा तो नीतीश कुमार को विपक्ष के बाद भी पक्ष वाला समझौता कैसे करना पड़ेगा, यह उत्तर प्रदेश में सजे योगी आदित्यनाथ के दूसरे शपथ ग्रहण समारोह की तस्वीरों से साफ हो गया. लखनऊ की तस्वीरें जब आप लोगों की नजर में आई तो बिहार में नीतीश की प्रमुख विपक्षी दल और उनके बड़े भाई की पत्नी राबड़ी देवी (Former CM Rabri Devi On CM Nitish) ने साफ तौर पर कह दिया कि नीतीश कुमार ने तो नरेंद्र मोदी के पैर पकड़ लिये.
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BJP के जश्न में नीतीश की मौजूदगी: सवाल यह उठ रहा है कि जीत वाले जश्न के जिस मंच पर नीतीश कुमार खड़े थे, उसमें उनके मन में उत्तर प्रदेश में हार वाली टीस तो जरूर रही होगी, क्योंकि अगर उत्तर प्रदेश में पार्टी एक भी सीट पर जीत दर्ज कर लेती तो बीजेपी पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव जरूर बन जाता कि नीतीश कुमार का हद और कद इतना बड़ा जरूर है कि दूसरे राज्य में भी नीतीश कुमार अपने नाम का लोहा मनवा सकते हैं. लेकिन, ऐसा कुछ न तो उत्तर प्रदेश में हुआ और ना ही पूर्वांचल के उन स्थानों पर जो बिहार से सटे हुए जिले हैं, जहां नीतीश कुमार के काम की बात सुनी जा सकती थी.
नीतीश कुमार की पार्टी जब उत्तर प्रदेश के चुनाव में जा रही थी, उसके मन में और जुबान पर यह बात जरूर थी कि नीतीश कुमार ने विकास के जितने काम किए हैं, वह उत्तर प्रदेश में बताए जाएंगे. खासतौर से बिहार में शराबबंदी कानून, दहेज बंदी और पंचायतों से लेकर के सरकारी नौकरियों में महिलाओं को जिस तरीके से आरक्षण दिया गया है, वह उत्तर प्रदेश में बदलाव की राजनीति का अहम हिस्सा होगी. बाकी अभी बीजेपी से सीट शेयरिंग को लेकर के आरसीपी सिंह बात करेंगे.
लेकिन, बात आगे इसलिए भी नहीं बन पाई कि बीजेपी किसी भी स्थिति में जदयू को अपना साझेदार बनाकर पूर्वांचल नहीं लाना चाहती थी. उसके बाद भी जदयू पार्टी उत्तर प्रदेश के चुनाव में आई, लेकिन हार कर ही गई. अब लखनऊ के जिस मंच पर नीतीश कुमार खड़े थे, उसमें बीजेपी ने जीत का डंका बजाया, जीत का जश्न मनाया, विपक्षियों को पटका और योगी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश की बागडोर दूसरी बार अपने हाथ में ले ली. सवाल यही है कि उस मंच से नीतीश कुमार जीत कर तो आ गए, लेकिन उस मंच से नीतीश कुमार क्या क्या हारे हैं.
कभी किया करते थे मोदी की खिलाफत: बीजेपी के 2013 के चुनावी तैयारी को लेकर नीतीश कुमार की बीजेपी से इसी बात की नाराजगी थी कि मोदी का नाम आगे न किया जाए, क्योंकि मोदी के नाम पर बना एनडीए बहुत दूर तक नहीं चल पाएगा और देश में इसका असर नहीं होगा. 2014 में यह विरोध नीतीश कुमार किए. उन्होंने कहा और चर्चा में भी रहा कि नरेंद्र मोदी का गुजरात का मॉडल नीतीश कुमार के विकास का मॉडल और इस मॉडल पर ज्यादा भारी नीतीश का विकास मॉडल ही रहेगा. इसलिए, बिहार में नरेंद्र मोदी की कोई जरूरत नहीं है.
नीतीश के लिए खत्म हुई प्रेशर पॉलिटिक्स: नीतीश कुमार ने यह बात कह तो जरूर दी, लेकिन 2015 में जिस पार्टी के साथ गठबंधन कर उन्होंने सरकार बनाई वह 2017 में टूट गई. 2017 में फिर बीजेपी के साथ आए. 2019 में लोकसभा चुनाव में आधे-आधे के बंटवारे पर चुनाव लड़े. लोकसभा में अपनी मजबूत दावेदारी नीतीश कुमार ने गठबंधन धर्म के साथ दे दी. लेकिन, विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और उनकी पार्टी वैसा कुछ नहीं कर पाई जो नीतीश कुमार के चेहरे और नेतृत्व पर बिहार में होना था. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं, लेकिन पार्टी तीसरे नंबर पर चली गई. मुकेश सहनी की पार्टी को बीजेपी ने अपने तरीके से अपने पक्ष में कर लिया, तो नीतीश कुमार के लिए दबाव वाली राजनीति भी खत्म हो गई.
BJP ने नीतीश को दबाव से किया मुक्त: बिहार में कम से कम नीतीश कुमार के लिए जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी जिस तरीके से बयान दिया करते थे. वो नीतीश के लिए निश्चित तौर पर गठबंधन धर्म में दबाव जरूर था, लेकिन बीजेपी ने नीतीश कुमार को इस दबाव से भी मुक्त कर दिया. उत्तर प्रदेश के योगी शपथ के मंच पर जिस तरीके से बीजेपी के पक्ष में नीतीश कुमार प्यार वाला मन बीजेपी के लिए हार कर आए हैं, वह जीत के जश्न पर कई सवाल भी खड़ा कर रहा है.
बिहार की राजनीति में नए सफर का एक नया आधार भी खड़ा कर रहा है, क्योंकि अब तो यह सब लोगों ने मान लिया है कि नरेंद्र मोदी जो चाहते हैं, लगभग वैसा ही मंच शपथ लेने के लिए खड़ा हो जाता है. यह बिहार में नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह का मामला हो या फिर लखनऊ में योगी आदित्यनाथ का अब देखने वाली बात यही होगी. इन नए गठबंधन में नीतीश कुमार जिस योग साधना का मंच साझा करके वापस लौटे हैं, इसका सियासी सफरनामा कितना मजबूत होता है.
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