शिमला: 1 जून को हिमाचल प्रदेश में होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है. इन दिनों प्रदेश में दोनों पार्टियों के स्टार प्रचारक चुनावी रैलियां कर लोगों के वोट बटोरने में लगे हैं. बीजेपी जहां इस बार भी चारों लोकसभा सीटों पर जीत का दावा कर रही है. वहीं, कांग्रेस प्रदेश में सुक्खू सरकार के नेतृत्व में बीते दो लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार को भुलाकर इस बार पार्टी के हक में अच्छे रिजल्ट की उम्मीद लगाए हुए है.
अगर शिमला संसदीय सीट की बात करें तो यह प्रदेश की एकमात्र एससी सीट है. वहीं, प्रदेश की राजधानी भी है. ऐसे में यहां मुकाबला दोनों पार्टियों के लिए खास है. इस सीट में शिमला, किन्नौर, सोलन और सिरमौर जिले के अधिकतर विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इस सीट से बीजेपी ने अपने सीटिंग सांसद सुरेश कश्यप पर भरोसा जताते हुए उन्हें दोबारा टिकट दिया है. वहीं, कांग्रेस ने कसौली विधानसभा सीट से अपने सीटिंग विधायक विनोद सुल्तानपुरी को लोकसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाया है.
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बीजेपी प्रत्याशी सुरेश कश्यप का चुनावी सफर:
बीजेपी प्रत्याशी सुरेश कश्यप भारतीय वायुसेना में 16 साल तक सेवाएं दे चुके हैं. उनका चुनावी सफर बीडीसी सदस्य के रूप में शुरू हुआ था. साल 2007 में वह बीजेपी के टिकट पर पच्छाद विधानसभा सीट से चुनाव हार गए थे. इसके बाद 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में वह बीजेपी के टिकट पर लगातार दो बार विधायक चुने गए. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बनाया और उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता धनी राम शांडिल को 3,27,514 वोटों से एकतरफा मात दी.
कांग्रेस प्रत्याशी विनोद सुल्तानपुरी का चुनावी सफर:
कांग्रेस ने कसौली विधानसभा सीट से अपने मौजूदा विधायक विनोद सुल्तानपुरी को शिमला सीट से टिकट दिया है. विनोद सुल्तानपुरी 2012 और 2017 में लगातार दो बार कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव हार गए थे. साल 2022 के विधानसभा चुनाव में वह पहली बार विधायक बने और अब लोकसभा के रण में उतरे हैं. विनोद सुल्तानपुरी के परिवार का राजनीतिक बैकग्राउंड प्रदेश में जाना-पहचाना है. उनके पिता केडी सुल्तानपुरी शिमला लोकसभा सीट से लगातार 6 बार सांसद रहे जो एक रिकॉर्ड है.
शिमला के रण में कौन है किस पर भारी:
सियासी जानकारों के मुताबिक कांग्रेस ने शिमला सीट पर विनोद सुल्तानपुरी के परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि को देखते हुए उन्हें अपना प्रत्याशी बनाकर शानदार दांव चला है लेकिन इस दांव को जीत में बदलना बड़ी चुनौती हो सकता है. वहीं, सांसद सुरेश कश्यप साल 2007 में केवल एक बार विधानसभा चुनाव हारे थे. उनका राजनीतिक अनुभव ज्यादा है और उन्हें मोदी मैजिक का भी सहारा मिल सकता है.
शिमला लोकसभा सीट थी कांग्रेस का गढ़:
कभी शिमला लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी. बीते 15 सालों से इस सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की है. साल 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर धनी राम शांडिल ने यहां पर अंतिम बार चुनाव जीता था. साल 2009 और 2014 में वीरेंद्र कश्यप ने बतौर बीजेपी के टिकट पर इस सीट पर दो बार लोकसभा चुनाव जीता. वहीं, साल 2019 में सुरेश कश्यप ने इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी धनीराम शांडिल को करीब 3 लाख 27 हजार के रिकॉर्ड मतों से हराया.
शिमला लोकसभा सीट का परिचय
शिमला संसदीय क्षेत्र के तहत 17 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. यहां पर कुल 13,54,665 मतदाता हैं. इनमें 6,99,007 पुरुष मतदाता हैं. वहीं, महिला वोटर्स की संख्या 6,55,646 है. इसके अलावा 12 मतदाता थर्ड जेंडर हैं.
शिमला लोकसभा सीट के मुद्दे:
शिमला लोकसभा सीट को हिमाचल की सेब बेल्ट भी कहा जाता है. हिमाचल के कुल सेब उत्पादन का करीब 84 प्रतिशत उत्पादन इसी संसदीय सीट से होता है. ऐसे में इस सीट पर सेब बागवानों के मुद्दे हर चुनाव में चर्चा का विषय रहते हैं. यहां लंबे वक्त से बागवान विदेश से आने वाले सेब पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाकर 100 फीसदी करने की मांग कर रहे हैं. वहीं, सेब का सीजन बरसात के दौरान जोर पकड़ता है. बरसात में अक्सर लैंडस्लाइड होते हैं जिससे शिमला व किन्नौर में सड़कें प्रभावित होती हैं. ऐसे में सड़कों को बहाल कर सेब को समय रहते मंडियों तक पहुंचाना भी यहां बागवानों के बीच बड़ा मुद्दा है. ऐसे में सड़कों की हालत को लेकर अक्सर बागवानों की सरकारों से शिकायत रहती है. इसके अलावा यहां पर सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र के लोगों को हाटी समुदाय का दर्जा दिलवाने का भी मुद्दा है. फिलहाल इस पर कोर्ट ने रोक लगाई है.
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